एपीजे कलाम क्यों नहीं बन सकते अंसारी

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आर.के. सिन्हा

मोहम्मद हामिद अंसारी लुटियन दिल्ली के भव्य राजसी बंगले के भीतर रहते हुए फिर कहने लग गये हैं कि भारत के मुसलमान अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। उन्होंने अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के सेमिनार में फिर वही दोहराया जो वे आजकल कहना पसंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमान 2014 के बाद से असुरक्षित महसूस करते हैं। चलिए, जिस मुल्क में बोलने की सबको पूरी आजादी हो वहां आप कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं। पर क्या वे यह सब बातें तब भी कह रहे होते अगर उन्हें उप-राष्ट्रपति के बाद राष्ट्रपति का पद भी मिल जाता? जाहिर है, यह सवाल अपने आप में कुछ लोगों को काल्पनिक लग सकता है। लेकिन, यह सवाल तो है और अहम सवाल है।

अब अंसारी साहब से देश यह भी जानने को उत्सुक है कि अपने आप रातों रात मुसलमानों का प्रवक्ता बन गए अंसारी साहब कब मुसलमानों में तालीम की रोशनी फैलाने के लिए गांव-गांव की यात्रा करेंगे? देश उनसे यह भी उम्मीद करता है कि वे मुसलमानों का आह्वान करेंगे कि वे रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लोकतांत्रिक तरीके से सरकार के सामने अपना पक्ष रखें। हां, यह बात भी है कि उनके आह्वान को कौन सुनेगा? आखिर उन्होंने गरीब-गुरुबा मुसलमानों के बीच काम ही कब किया है? वे तो भारतीय विदेश सेवा के अफसर थे। दशकों विदेशों में रहे। कई देशों में भारत के राजदूत भी रहे। भारत में रहे तो भी सरकारी सुविधाओं को भोगा। उपराष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद वे सरकार द्वारा आवंटित किये गये दिल्ली के दिल में एक बड़े सरकारी बंगले में रहने लगे। उन्हें तमाम सरकारी सुविधाएं और सुरक्षा मिल रही हैं। भले ही वे मौजूदा केन्द्र सरकार को परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से कोसने का कोई मौका ना छोड़ते हों, पर उन्हें सरकारी सुविधाएँ लेने से किसी तरह की शर्म तक नहीं होती। वे सुविधाभोगी क्रांतिकारी के रूप में सामने आ रहे हैं। उनसे किसी तरह के बलिदान की उम्मीद बेमानी होगी।

अंसारी साहब तो सारे देश के उपराष्ट्रपति थे। जब मैं राज्यसभा में सदस्य था तो वे माननीय सभापति भी थे। तो उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि वे सिर्फ मुसलमानों की ही बातें क्यों करते हैं। उन्होंने कब किसी दलित, पिछड़े, आदिवासी और समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े इंसान के बारे में भी कोई चिंता जताई? याद तो नहीं आता। वे सबके लिए क्यों नहीं खड़े होते। वे सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों से ही मतलब रखते हैं। समझ नहीं आता कि वे असदुद्दीन ओवैसी, आजम खान या फारूक अब्दुल्ला क्यों बनना चाहते हैं? अंसारी साहब से पूछिए कि क्या उन्होंने कभी वक्फ बोर्ड में फैली करप्शन के खिलाफ भी आवाज उठाई? देश के उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए वे यह सब कर सकते थे। वे तब पूरी तरह शांत रहे। वे मुसलमानों में ट्रिपल तलाक की भयानक परंपरा पर भी चुप रहे थे। वे कभी पसमांदा मुसलमानों के हक में भी नहीं बोले।

सब जानते हैं कि मुसलमान अशराफ, अजलाफ और अरजाल श्रेणियों में बंटा है। शेख, सैयद, मुगल और पठान अशराफ कहे जाते हैं। अशराफ का मतलब है, जो अफगान-अरब मूल के या हिन्दुओं की अगड़ी जातियों से धर्मांतरित मुसलमान कहे जाते हैं। अजलाफ पेशेवर जातियों से धर्मांतरित मुसलमानों का वर्ग है। एक तीसरा वर्ग उन मुसलमानों का है, जिनके साथ शेष मुसलमान भी संबंध नहीं रखते। इन्हें ही पसमांदा मुसलमान कहते हैं। हालांकि इस्लाम में जाति का विचार नहीं है। इस्लाम जाति के कोढ़ को ललकारता है। इसके बावजूद सारा मुसलमान समाज जाति के दलदल में फंसा है। मुसलमानों में अलग-अलग जातियों के अपने कब्रिस्तान तक हैं। दिल्ली में पंजाबी मुसलमानों के कब्रिस्तान में गैर-पंजाबी मुसलमानों का प्रवेश निषेध है। शिया और सुन्नियों के तो अपने अलग-अलग कब्रिस्तान होते ही हैं। क्यों इन सबके खिलाफ अंसारी साहब आवाज बुलंद नहीं करते? वे कब तक इन सवालों के जवाब देने से बचेंगे। उनसे सवाल तो पूछे ही जाएंगे। अंसारी साहब भारत के उन मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं जिन्होंने सिर्फ मौज काटी है। ये सिर्फ हकों की बातें करते हैं। इन्हें कर्तव्यों को याद दिलाते ही पसीना आने लगता है।

वैसे, वे गाजीपुर के उसी मुसलमान रईस परिवार से आते हैं जिनसे कुख्यात मुख़्तार अंसारी आते हैं। अब आप इनकी रईसी को समझ सकते हैं। ये खाए-पिए-अघाए मुसलमान हैं। इन्होंने कभी दरभंगा के छोटे किसान की, दिल्ली में पंक्चर लगाने वाले की या बिहारशरीफ की किसी मस्जिद में कुछ सौ रुपयों में काम करने वाले मुसलमानों की आय बढ़ाने की चिंता नहीं की। अंसारी साहब और सलमान खुर्शीद साहब तो शेरवानी पहनकर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के किसी सेमिनार भर में जा सकते हैं।

अंसारी और सलमान खुर्शीद एक सिक्के के दो पहलू हैं। आपको याद ही होगा कि सलमान खुर्शीद ने भी हाल ही में हिन्दुत्व की तुलना आतंकवादी संगठन आईएसआईएस व बोको हरम से कर डाली थी। सलमान खुर्शीद ने ही 10 फरवरी 2012 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कांग्रेस की रैली को संबोधित करते हुए कहा था “मैंने जब बटला हाउस एनकाउंटर की तस्वीरें सोनिया गाँधी को दिखाई तब उनकी आँखों से आंसू गिरने लग गये और उन्होंने मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से बात करने की सलाह दी थी।” उन्होंने मोहन चंद्र शर्मा जैसे जांबाज पुलिस अफसर की शहादत का मखौल उड़ाया था। उस अफसर का जिसने देश के दुश्मनों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी।

खैर, सारा देश देखता है कि कौन क्या कह रहा है। अंसारी की तरह सलमान खुर्शीद ने भी कभी पसमांदा मुसलमानों के मसलों को उठाने की जहमत नहीं दिखाई। इन जैसों को देश ने सबकुछ दिया पर ये नाखुश ही रहे। अंसारी साहब को कभी आईने के सामने खड़े होकर खुद से सवाल पूछना चाहिये कि आपने इस देश को क्या दिया। हो सकता है तब उन्हें अपने किए पर थोड़ी सी शर्म आ जाए। उन्हें कभी यह सोचना चाहिए कि जब सारा देश एपीजे अब्दुल कलाम को अपना नायक मानता है तो उन्हें कोई क्यों नहीं टेक भर का भी सम्मान देता। भारत को कलाम साहब जैसे नायकों की आवश्यकता है। अंसारी और सलमान खुर्शीद जैसे नेता तो सैकड़ों में आते-जाते रहेंगे। इतिहास ऐसे स्वार्थी, मतलबी और कायरों को याद नहीं करेगा।


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