एनआरसी के लिए निर्धारित 31 जुलाई की समयसीमा आगे नहीं बढ़ेगी: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली  (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने असम में एनआरसी की प्रक्रिया पूरा करने की तारीख 31 जुलाई से आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के दौरान वहां तैनात केंद्रीय बल हटाने की केंद्र सरकार की अर्ज़ी भी खारिज कर दी है। कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि लगता है कि गृह मंत्रालय एनआरसी को पूरा करने में दिल से सहयोग नहीं करना चाहती। इस मामले की अगली सुनवाई मार्च के पहले हफ्ते में होगी।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने एनआरसी प्रक्रिया में लगी 167 आर्म्ड फोर्सेज की कंपनियों को वहां से हटाकर फिलहाल चुनाव प्रक्रिया में लगाने की मांग की। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव और एनआरसी दोनों अहम है, किसी काम को रोका नहीं जा सकता है।

पिछले 24 जनवरी को कोर्ट ने एनआरसी का प्रकाशन 31 जुलाई तक करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर समय सीमा बढ़ाने से मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि असम सरकार, एनआरसी और चुनाव आयोग ये सुनिश्चित करे कि नागरिक रजिस्टर तय समय में पूरा हो।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि निर्वाचन आयोग के सचिव, असम सरकार के सचिव और असम एनआरसी के कॉर्डिनेटर के बीच एक बैठक होनी चाहिए ताकि आगामी आम चुनावों की वजह से एनआरसी की प्रक्रिया में बाधा न आए। एनआरसी के कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने कोर्ट को बताया था कि दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया 31 दिसंबर तक पूरी कर ली गई है। इस दौरान 36.2 लाख दावे और 2 लाख से ज्यादा आपत्तियां आईं। दावों का वेरिफिकेशन 15 फरवरी से शुरू होगा।

12 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी ड्राफ्ट में जगह न पा सके 40 लाख लोगों को दावे और आपत्ति दाखिल करने के लिए समय सीमा 31 दिसंबर तक बढ़ाई थी। पहले यह समय सीमा 15 दिसंबर तक थी। 01 नवंबर,2018 को कोर्ट ने दावे और आपत्तियां दर्ज करने के लिए 15 दिसंबर तक का वक्त दिया था। उसके पहले ये मियाद 25 नवंबर थी। सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को नागरिकता साबित करने के लिए 5 और दस्तावेजों के इस्तेमाल की इजाज़त दी थी। पहले सिर्फ 10 दस्तावेजों को मान्यता दी थी।

राज्य में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशियों की पहचान के मद्देनज़र ये प्रक्रिया काफी अहम है। 5 दिसंबर,2017 को सुप्रीम कोर्ट ने असम के 48 लाख लोगों की नागरिकता के मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए कहा था कि उन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का दोबारा मौका मिलेगा। कोर्ट ने कहा था कि जिन 48 लाख महिलाओं को पंचायत द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया गया है उसका वेरिफिकेशन के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है।


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