उपचुनावः महागठबन्धन और भाजपा दोनों की परीक्षा!
लखनऊ, 28 मई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में कैराना और नूरपुर में आज हो रहे उपचुनाव में बड़ी संख्या में ईवीएम में गड़बड़ी को लेकर विपक्ष ने इसे जहां साजिश करार दिया है,वहीं भाजपा ने भी निर्वाचन आयोग में ईवीएम की गड़बड़ी का मुद्दा उठाया है। विपक्ष और सत्तारूढ़ दल दोनों के लिए ये चुनाव अग्नि परीक्षा है। दरअसल भाजपा फूलपुर और गोरखपुर की हार का बदला लेना चाहती है, तो विपक्ष अपनी जीत का सिलसिला लगातार आगे बढ़ाना चाह रहा है। इस चुनाव की बड़ी बात यह रही की भाजपा ने पूरे जोर शोर से चुनाव प्रचार में ताकत झोंकी। कई मंत्री और सांसद लगातार वहां पर कैम्प कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर विपक्ष के अगुवा रहे अखिलेश यादव का प्रचार से गायब रहना बड़ा विषय रहा। हालांकि वह लगातार ट्वीटर पर प्रचार करते दिखे, लेकिन प्रचार के लिए वहां गये नहीं। गठबंधन के स्टार प्रचारक ने उस उपचुनाव में प्रचार क्यों नहीं किया जिसका सियासी संदेश 2019 के आम चुनाव तक जाएगा? कहीं गठबंधन में कहीं कुछ मनमुटाव तो नहीं। इन सवालों पर चर्चा जारी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कैराना की अपनी जनसभा में बार-बार चुनौती देते रहे कि अखिलेश एक बार कैराना आएं तो। योगी ने तो उनको मुजफ्फरनगर दंगे के लिए मुख्य आरोपी तक घोषित कर दिया। फिर भी वह जवाब देने कैराना व नूरपुर नहीं गये। मायावती ने फूलपुर और गोरखपुर की तरह कोई भी अपनी अपील कार्यकर्ताओं को जारी नहीं की। जो कहीं ना कहीं विपक्ष के लिए कसक बना हुआ था। वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल की मानें तो अभी प्रदेश में किसी भी दल में समझौता नहीं हुआ है। सिर्फ दोनों दलों में बातचीत हो रही है। गोरखपुर और फूलपुर में चुनाव जितना दोनों दल सक्रिय थे। उतना इसमें देखने को नहीं मिला। कहीं ना कहीं दोनों दल अपने को बड़ा मानने की चक्कर में ऐसा कर रहे हैं। उनको लगता है कि अगर बात नहीं बनी तो अपने समर्थकों का उपयोग 2019 के लोकसभा चुनाव में किया जा सकता है। ऐसे में यह भी कहा जा सकता है इन चुनाव में गठबन्धन की आवाज को नीचे के कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंचाया गया। इस ताकत का उपयोग 2019 के मुख्य चुनाव में करने का विचार किया जा रहा है। जानकार मानते हैं कि अखिलेश यादव के आने पर भाजपा मुजफ्फरनगर दंगे के मसले पर अधिक आक्रामक होकर धुव्रीकरण का कार्ड खेलती। इसी के चलते रालोद और सपा के आलाकमान ने अखिलेश की रैली न करने का फैसला लिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फिलहाल सपा का आधार मुस्लिम और कुछ हद तक गुर्जर समुदाय में है। अखिलेश की रैली का कोई सियासी फायदा तो नहीं ही होता। हां, अखिलेश सरकार के दंगे और जाट समुदाय के युवकों की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाकर भाजपा रालोद को घेरने की कोशिश जरूर करती।