आलोचना पर फना
-स्मृति शेष: नामवर सिंह
– हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष और विद्वान लेखक डॉ नामवर सिंह नहीं रहे, चंदौली में जन्मे, दिल्ली में पंचतत्व में हुए विलीन
नई दिल्ली, 20 फरवरी (हि.स.)। डॉ नामवर सिंह…। जी हां… डॉ नामवर सिंह। हिंदी साहित्याकाश में आलोचना का सबसे बड़ा सितारा हमेशा-हमेशा के लिए अस्त हो गया। 28 जुलाई, 1926 को चंदौली के जीयनापुर गांव में जन्मे। …और दिल्ली में 92 साल की आयु में बुधवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। आलोचना पर फना होने वाले डॉ नामवर सिंह का रचना संसार विराट है। लेखन के लिहाज से वह खुद भी विराट हैं। सम्मानित आलोचक, प्रसिद्ध लेखक और विद्वान डॉ नामवर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं। वह हिंदी आलोचना के शलाका पुरुष हैं। …और हमेशा रहेंगे। उन सा आलोचक न हुआ और न होगा। याद आ रहा है वह पल, जब साहित्य अकादमी ने उन्हें अपनी सबसे प्रतिष्ठित महत्तर सदस्यता प्रदान की, तो तत्कालीन अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की टिप्पणी थी, ‘नामवर सिंह की आलोचना जीवंत आलोचना है। भले ही लोग या तो उनसे सहमत हुए अथवा असहमत, लेकिन उनकी कभी उपेक्षा नहीं हुई।’ आलोचक निर्मला जैन का कहना था कि नामवर सिंह के जीवन में जो समय संघर्ष का था, वह हिंदी साहित्य के लिए सबसे मूल्यवान रहा, क्योंकि इसी काल में नामवर सिंह ने गहन अध्ययन किया।
कवि नामवर सिंह
नामवर सिंह ने 1941 में कविता से लेखकीय जीवन की शुरुआत की। उनकी पहली कविता बनारस की ‘क्षत्रियमित्र’ पत्रिका में छपी। वर्ष 1949 में बीएचयू से बी.ए. और 1951 में हिंदी में एम.ए. करने के दो साल बाद बीएचयू में ही अस्थायी प्रवक्ता हो गए। 1956 में ‘पृथ्वीराज रासो की भाषा’ विषय पर पीएचडी की।
कामरेड नामवर सिंह
शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि नामवर सिंह ने चुनाव भी लड़ा। डॉ. नामवर सिंह ने वर्ष 1959 में चकिया-चंदौली से लोकसभा का चुनाव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़ा था। लोग उन्हें कामरेड नामवर सिंह कहा करते थे। चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और बीएचयू से हटा दिए गए। वर्ष 1959-60 में उन्होंने मध्य प्रदेश का रुख किया। सागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक अध्यापक हो गए। मन नहीं लगा तो कुछ समय बाद बनारस लौट आए। …और 1965 तक काशी में रहकर स्वतंत्र लेखन किया। इसके बाद जनयुग साप्ताहिक के संपादक के रूप में दिल्ली आ गए। बाद में यह दैनिक अखबार बना। इसी दौरान दो साल तक वह राजकमल प्रकाशन के साहित्यिक सलाहकार भी रहे। वर्ष 1967 से ‘आलोचना’ त्रैमासिक का संपादन शुरू किया। 1970 में राजस्थान में जोधपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त हुए और हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने।
कविता के नए प्रतिमान
वर्ष 1971 में ‘कविता के नए प्रतिमान’ कृति पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1974 में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ आगरा के निदेशक बने। यह कार्यकाल बेहद छोटा रहा। …क्योंकि इसी साल उन्हें दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त मिली। 1992 तक वह जेएनयू में रहे। वर्ष 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष रहे।
वर्धा विवि के कुलाधिपति
डॉ. नामवर सिंह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के दो बार कुलाधिपति रहे। आलोचना त्रैमासिक के प्रधान संपादक के रूप में डॉ नामवर सिंह को हमेशा याद रखा जाएगा। कवि लीलाधर मंडलोई ने एक बार कहा था कि नामवर सिंह आधुनिकता में पारंपरिक हैं और पारंपरिकता में आधुनिक। उन्होंने पत्रकारिता, अनुवाद और लोकशिक्षण का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इसका मूल्यांकन होना अभी शेष है। …और यह मूल्यांकन कब होगा? यह सवाल अब शेष है।
रचना संसार
बकलम खुद ( 1951) यह व्यक्तिव्यंजक निबंधों का संग्रह है।
हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग (1952)
-पृथ्वीराज रासो की भाषा (1956)
(संशोधित संस्करण ‘पृथ्वीराज रासो: भाषा और साहित्य’ नाम से उपलब्ध)
आलोचना
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां (1954)
छायावाद (1955)
इतिहास और आलोचना (1957)
कहानी : नयी कहानी (1964)
कविता के नये प्रतिमान (1968)
दूसरी परम्परा की खोज (1982)
वाद-विवाद और संवाद (1989)
साक्षात्कार
कहना न होगा (1994)
बात बात में बात (2006)
पत्र-संग्रह
काशी के नाम (2006)
व्याख्यान
आलोचक के मुख से (2005)
जमाने से दो दो हाथ
डॉ नामवर सिंह पर केंद्रित आशीष त्रिपाठी के संपादन में आठ पुस्तकें आयी हैं। कविता की जमीन और जमीन की कविता (2010), हिन्दी का गद्यपर्व (2010), प्रेमचन्द और भारतीय समाज (2010), जमाने से दो दो हाथ (2010), साहित्य की पहचान (2012), आलोचना और विचारधारा (2012), सम्मुख (2012), साथ साथ (2012)।
जेएनयू के क्लासनोट्स
नामवर सिंह के जेएनयू के क्लासनोट्स उनके तीन छात्रों शैलेश कुमार, मधुप कुमार एवं नीलम सिंह के संपादन में नामवर के नोट्स नाम से प्रकाशित हुए हैं। डॉ नामवर सिंह का सम्पूर्ण लेखन और उपलब्ध व्याख्यान इन पुस्तकों में उलब्ध है। हालांकि बाद में दो पुस्तकें ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की जययात्रा’ और ‘हिन्दी समीक्षा और आचार्य शुक्ल’ आयी हैं। इन दोनों में कुछ नया नहीं है। पूर्व प्रकाशित कृतियों का एकत्रीकरण है।
संपादित कृतियां
संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो-1952 (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ), पुरानी राजस्थानी -1955 (मूल लेखक डॉ एलपी तेस्सितोरी। अनुवादक- नामवर सिंह), चिन्तामणि भाग-3 (1983), कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिन्तन (अनुवादक गोरख पांडेय), नागार्जुन : प्रतिनिधि कविताएं, मलयज की डायरी (तीन खंड), आधुनिक हिन्दी उपन्यास भाग-2, रामचन्द्र शुक्ल रचनावली (सह सम्पादक आशीष त्रिपाठी)
नामवर पर केंद्रित साहित्य
आलोचक नामवर सिंह (1977) संपादक रणधीर सिन्हा, ‘पहल’ का विशेषांक – अंक-34, मई 1988-संपादक ज्ञानरंजन, कमला प्रसाद। यह विशेषांक पुस्तक रूप में भी प्रकाशित हुआ है। पूर्वग्रह (अंक 44 – 45, 1981), दस्तावेज (अंक-52, जुलाई-सितंबर, 1991) के अंक भी नामवर पर ही केंद्रित हैं। नामवर के विमर्श (1995) संपादक सुधीश पचौरी भी उल्लेखनीय है। नामवर सिंह : आलोचना की दूसरी परम्परा (2002), ‘वसुधा’ का विशेषांक (अंक-54, अप्रैल-जून 2002) ,आलोचना के रचना पुरुष : नामवर सिंह (2003), नामवर की धरती (2007) , जेएनयू में नामवर सिंह (2009), ‘पाखी’ का विशेषांक (अक्टूबर 2010), ‘बहुवचन’ का विशेषांक (अंक-50, जुलाई-सितंबर 2016) और हिन्दी के नामवर।
सम्मान
साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1971 ‘कविता के नये प्रतिमान’ के लिए
शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली
‘साहित्य भूषण सम्मान’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान
शब्द साधक शिखर सम्मान – 2010
महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान- 21 दिसंबर 2010
साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता-2017