अनुच्छेद 35 ए को लेकर हंगामा क्यों है बरपा : योगेश कुमार सोनी
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35ए को लेकर इस समय सियासी हलचल मची हुई है। 2014 में ‘वी द सिटीजन’ नामक एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में 35ए को खत्म करने की प्रार्थना की थी, जिस पर कोर्ट को 31 अगस्त को निर्णय देना था। लेकिन अब 19 जनवरी 2019 को इसकी अगली तारीख दे दी गयी है। लेकिन कोर्ट के निर्णय से पहले जम्मू-कश्मीर की सभी क्षेत्रीय पार्टियों के सिवाय विपक्ष ने इसको भंग न करने का समर्थन किया। नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने तो कहा कि यदि इसके साथ जरा सी भी छेड़छाड़ की गई तो सरकार गृहयुद्ध के लिए तैयार रहे। इसको लेकर आंतकियों ने वहां कुछ पुलिसकर्मियों के परिजनों को अगवा कर लिया। लेकिन बाद में बिना किसी को क्षति पहुंचाए छोड़ भी दिया था। इस घटना से एक बात तो तय हो जाती है कि अनुच्छेद 35 ए को लेकर बेचैनी का आलम सबमें है।
दरअसल सबसे पहले यह जान लें कि अनुच्छेद 35ए क्या है। 370(1) (डी) के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए राष्ट्रपति के पास यह शक्ति है कि वह संविधान में कुछ बदलाव या सुधार कर सकता है। उस समय की परिस्थितियों का समझते हुए 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश जारी करके देश के संविधान में इस अनुच्छेद को जोडा था। इसके अंतर्गत यहां तमाम कानूनों का निर्माण हुआ था जिसमें जम्मू-कश्मीर के अलावा अन्य किसी राज्य का व्यक्ति इस राज्य में कोई संपत्ति नही खरीद सकता, विधानसभा चुनाव में वोट नही दे सकता, किसी भी चुनाव में खड़ा नही हो सकता, यहां की सरकारी नौकरी नही कर सकता जैसी बातें शामिल हैं।
लेकिन बदलते परिवेश में अब यह अर्थहीन होने लगा है, क्योंकि यहां कि क्षेत्रीय पार्टियां,अलगावी नेता व वहां के कुछ लोगों ने मिलकर इसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। ये लोग रहते जरुर हिन्दुस्तान में रहते हैं, लेकिन अंदरखाने समर्थन पाकिस्तान का करते हैं। इसके अलावा इन सभी ने जम्मू-कश्मीर में मिलकर अपनी एकतरफा सत्ता कायम कर रखी है। यह बात बहुत गहनता से समझने वाली है। ये लोग चाहे एक-दूसरे के दामन पर कितनी कालिख पोतते हों, लेकिन जब राज्य में किसी बदलाव की बात होती है तो सब एक ही भाषा बोलते हैं।
यह सभी लोग जम्मू-कश्मीर पर अपना इस कदर हक समझने लगे हैं, जैसे यह राज्य सिर्फ इन लोगों की जागीर हो। एक एनजीओ द्वारा डाली गई प्रार्थना से पूरा देश सहमत है व हर तरह से समर्थन कर रहा है। दरअसल घाटी जितना अपनी खूबसूरती के लिए पहचानी जाती है, उसकी संचालन प्रक्रिया उतनी ही दागी और डरावनी है। लेकिन अब इसके लिए कोर्ट, सरकार व देश की जनता को गंभीर होने की बेहद जरुरत है। अनुच्छेद 35ए की आड़ लेकर इस सभी दलों व आंतवादियों ने इस राज्य को अपना गढ़ बना लिया है जिसमें अब सेंध लगा रहे है।
इस अनुच्छेद की कुछ बातें तो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं। खासतौर पर महिलाओं के लिए जैसे कि कोई कश्मीरी पुरुष किसी गैर कश्मीरी लड़की से शादी करता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यदि कोई कश्मीरी लड़की गैर कश्मीरी लड़के से शादी करती है तो वह अपनी पैतृक संपत्ति पर अपना हक खो बैठती है। इस कानून को लेकर प्रारंभ से ही महिलाओं के मन में कुंठा रही है। इसके अलावा विभाजन के समय करीब 5700 बाल्मिकी व गोरखा परिवार जम्मू कश्मीर आए थे, जो दशकों से वहां रह तो रहे है लेकिन आज भी उनकी पहचान मात्र रिफ्यूजी के रुप में ही होती है क्योंकि वहां के कानून के तहत न तो वे लोग वहां वोट डाल सकते है और नही सरकारी नौकरी पा सकते हैं। ये हमारे देश के संविधान की अद्भूत विडंबना है जो परिवार दशकों से वहां साफ-सफाई व अन्य काम कर रहे हैं, लेकिन अपनी पहचान तक से अंजान है।
आज डिजिटल इंडिया युग में देश बदलने की कगार पर है। इस अनुच्छेद को भंग करने या इसमें बदलाव की बेहद जरुरत आ पड़ी है क्योंकि यह अभी न हो पाया तो आने वाले समय में बेहद मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि वहां कि जमात चाहती ही नहीं कि यहां चल रहे खेल का किसी को पता चल पाए। आंतक का पर्याय बन रही घाटी में रह रहे कुछ लोग अपने आपको हिन्दुस्तानी नहीं मानते। अलगाववादी नेता तो यहां तक कहते है कि यदि कश्मीरी लड़की से किसी पाकिस्तानी लड़के से शादी हो जाये तो उसको यहां के सारे अधिकार मिलने चाहिए लेकिन हमारे ही देश के अन्य किसी राज्य के लड़के हो जाए तो खत्म होने चाहिए। यह बात आने वाले समय में देश के लिए संकट का बहुत बड़ा संकेत है। केंद्र सरकार के अलावा कुछ ही राजनीतिक पार्टियां इसको भंग करने का समर्थन कर रही हैं अन्यथा सभी विरोध के सुर अलाप रहे हैं। इस बात पर राजनीति करना दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे मामलों में सभी दलों को एक साथ खड़े रहने की जरुरत है, क्योंकि यह देश की आने वाली पीढ़ी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। आम जनता के लिए घाटी के नकारात्मक मिथ को तोड़ने का सही समय आ गया है। बदलते परिवेश को समझते हुए कानूनी संचालन प्रक्रिया बदलना बेहद जरुरी है।