नई दिल्ली, 02 दिसम्बर (हि.स.)। मेडिकल साइंस की लगातार हो रही तरक्की के बावजूद लोगों की गिरती सेहत चिंता का एक विषय है। शायद यही वजह है कि लोगों का रुझान परम्परागत और वैकल्पिक चिकित्सा के प्रति बढ़ रहा है। यह केवल सुनी-सुनाई बातें नहीं बल्कि आंकड़े इस तरफ इशारा करते हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए हैं। दिलचस्प बात यह है कि यूनानी का रुख करने वाले इन लोगों में करीब सभी आयु वर्ग और तबके के लोग शामिल हैं। ये लोग यूनानी को इलाज का एक कारगर और असरदार तरीका मानते हैं।
यह सर्वे राजधानी दिल्ली स्थित सफदरजंग में आयुष मंत्रालय के अधीन चलने वाली यूनानी यूनिट की ओपीडी में आने वाले मरीजों पर किया गया। सर्वे जुलाई 2019 से सितम्बर 2019 के दौरान किया गया। इस दौरान इलाज के लिए यूनानी ओपीडी में आने वालों की प्रतिदिन संख्या 60 से 80 रही। इनमें से सर्वे में कुल 365 लोगों को शामिल किया गया, जिन्हें रोगियों की सुविधानुसार स्टैंडर्ड सैम्पलिंग तक्नीक के जरिए चुना गया। इनमें 51 प्रतिशत पुरुष और 49 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया गया। अधिकतर पढ़े-लिखे लोगों को शामिल किया गया ताकि सवालों का वाजिब जवाब दे सकें।
सर्वे में यह चौंकाने वाली हकीकत सामने आई कि अधिकतर लोग यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में भलीभांति परिचित हैं। इनमें से 75.1 प्रतिशत लोगों को अपने परिजनों, दोस्तों या फिर पड़ोसियों के जरिए इसके बारे में पता चला। 6.6 फीसद लोगों को पोस्टर और प्रकाशित सामग्री से तो वहीं इतने ही प्रतिशत लोगों को समाचार पत्र-पत्रिकाओं, 4.7 प्रतिशत लोगाें को इंटरनेट, 4.4 प्रतिशत लोगों को टीवी/रेडियो, 2.2 प्रतिशत को ब्रोशर/लेक्चर/ जनस्वास्थ्य मीटिंग और 0.5 प्रतिशत को कम्यूनिटी हेल्थ वर्कर्स के जरिए इस पद्धति के बारे में पता लगा। यूनानी चिकित्सा पद्धति से कभी-कभार इलाज कराने के बावजूद 73.9 प्रतिशत लोगों ने इसे बहुत कारगर और असरदार चिकित्सा पद्धति माना है।
अमूमन यूनानी चिकित्सा पद्धति को मुसलमानों से जोड़कर देखा जाता है, जबकि कोई चिकित्सा पद्धति अपने रोगियों के दरमियान भेदभाव नहीं करती। इसकी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों/हकीमों में ज्यादातर मुसलमान होने के बावजूद इलाज कराने वालों में सभी धर्म और जात/पात के लोग शामिल हैं। सर्वे में हिस्सा लेने वालों में 56.7 प्रतिशत हिंदू, 36.4 प्रतिशत मुस्लिम, 2.2 प्रतिशत इसाई, 2.5 प्रतिशत सिख और 2.2 प्रतिशत बौद्ध की तादाद होना इसकी जीती-जागती मिसाल है। इनमें से जब यूनानी के उनके पूर्व अनुभव के बार में पूछा गया तो उसमें से 25.6 प्रतिशत ने माना कि इससे उनकी बीमारी ठीक हो गई। वहीं 20.8 प्रतिशत ने इसे काफी संतोषजनक तो 41.6 प्रतिशत ने संतोषजनक माना। जबकि इनमें से बहुत कम अर्थात महज 12 प्रतिशत ने कहा कि यूनानी थेरैपी का कोई असर नहीं हुआ।
सर्वे के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि वह यूनानी को बेहतर विकल्प क्यों मानते हैं तो 73.9 प्रतिशत ने कहा कि वह यूनानी चिकित्सा को अधिक सुरक्षित और बिना या फिर न के बराबर साइड इफेक्ट के मानते हैं। 11.3 प्रतिशत ने इसे एक असरदार इलाज का तरीका माना तो वहीं इतने ही प्रतिशत लोगों ने इसे मर्ज को जड़ से खत्म करने वाला माना। इसमें कोई दो राय नहीं कि एलोपैथी आज भी चिकित्सा पद्धति के तौर पर लोगों की पहली तरजीह है। इसके बावजूद उपरोक्त तथ्यों से यूनानी जैसी पारम्परिक चिकिस्ता पद्धति की तरफ लोगों के बढ़ते रुझान, उसके फायदे और कम से कम दुष्प्रभाव जैसे पहलुओं को देखते हुए इसे हर स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है।