नई दिल्ली, 14 नवम्बर (हि.स.)। पूरी दुनिया 14 नवम्बर को विश्व मधुमेह दिवस मनाती है। इसलिए तेजी से पैर पसार रही इस बड़ी स्वास्थ्य चुनौती को लेकर तैयारियों और परिस्थितियों की समीक्षा करने का भी यह उचित समय है। इस मौके पर हमें यह भी देखना होगा कि इस लिहाज से हमने क्या दीर्घकालिक उपाय किए हैं। खास कर जब आशंका है कि भारत में वर्ष 2030 तक लगभग 10 करोड़ लोग इस ‘साइलेंट किलर’ के शिकार हो चुके होंगे। हालांकि संतोष की बात यह है कि इस स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या के चलते लोग अपनी जीवनशैली को ले कर जागरूक हो रहे हैं और सरकार भी जागरुकता अभियान चला रही है। साथ ही कई मामलों में आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के पूरक और वैकल्पिक पद्धति के तौर पर स्वीकार किया जा रहा है।
खास तौर पर डायबिटीज के टाइप-2 मरीजों के इलाज में यह बहुत प्रभावी हो रहा है। जहां सरकार देश भर में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को बड़े स्तर पर बढ़ावा दे रही है, वहीं विभिन्न सरकारी अनुसंधान एजेंसियां भी आयुर्वेद और चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों के आधार पर आधुनिक दवाएं विकसित करने पर जोर दे रही हैं। जिन बीमारियों में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति प्रभावी साबित नहीं हो पा रही है, उनके लिए आयुर्वेदिक दवाओं को विकसित करने पर ये विशेष ध्यान दे रही हैं। इन्हीं में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की दो प्रयोगशालाएं राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) और केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पादप संस्थान (सीआईएएमपी) का ताजा प्रयास भी शामिल है। इन दोनों ने अपने साझा प्रयास से बीजीआर-34 नाम की मधुमेह में प्रभावी आयुर्वेदिक दवा विकसित की है। इसे टाइप-2 मधुमेह के प्रबंधन में प्रभावी पाया गया है।
आयुर्वेदिक फार्मूले से बनी इस आधुनिक दवा के प्रभाव को वैज्ञानिक आकलन के आधार पर प्रमाणित किया जा चुका है। इस बीमारी के गंभीर मरीजों के इलाज में इस दवा को पूरक औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा को ऐसे मरीजों पर बहुत प्रभावी पाया गया है। एनबीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक ए.के.एस. रावत कहते हैं, “यह दवा बहुत से औषधीय पादपों से तैयार की गई है। इनमें गिलोय, मेथी, दारूहरिद्रा, विजयसार, मजीठ, मेठिका और गुड़मार शामिल हैं। ये मधुमेह का प्रभाव कम करने वाले माने गए हैं और रक्त में सर्करा की मात्रा को संतुलित करते हैं। विभिन्न अध्ययनों से साबित हुआ है कि इनसे रक्त सर्करा का प्रबंधन और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है।”
‘ट्रेडिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसीन’ नाम के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध प्रकाशन में प्रकाशित अध्ययन में भी बीजीआर- 34 को मधुमेह के मरीजों में हृदयाघात के खतरे को 50 फीसदी तक कम करने के लिए प्रभावी पाया गया है। मधुमेह जीवनशैली से जुड़ी दुनिया की सबसे प्रमुख समस्याओं में है और भारत में भी बदलती जीवन शैली की वजह से इसका खतरा तेजी से बढ़ रहा है। सरकार ने अपने स्तर पर सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेद और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को बड़े स्तर पर उतारने की योजना बनाई है। पिछले दिनों केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद नाईक ने भी देश के हर जिले में आयुर्वेदिक अस्पताल शुरू करने की घोषणा की है।