वाशिंगटन, 10 जून (हि.स.)। विश्व बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कोरोना महामारी (कोविड-19) से जूझ रहे देशों में भारत सहित दुनियाभर के देशों के आर्थिक विकास दर में गिरावट की एक भयानक तस्वीर प्रस्तुत की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने कोरोना संकट से बचाव के लिए शुरुआत में इससे निपटने के जो उपाय किए थे, उससे उसे विशेष लाभ मिला है। उसकी वर्ष 2020-21 में आर्थिक विकास दर 4.2 प्रतिशत से घट कर 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पड़ौसी देशों बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव में दो प्रतिशत से कम होगी तो पाकिस्तान (-2.6 प्रतिशत और अफ़ग़ानिस्तान (-5.5 प्रतिशत) में यह नकारात्मक स्थिति में पहुंच जाएगी।
इस महामारी की वजह से वैश्विक आर्थिक विकास दर 4.2 रहने का अनुमान है। इसके विपरीत चीन में आर्थिक विकास दर अपेक्षाकृत एक प्रतिशत गिरावट चित्रित की गई है, जो सन 2020-21 में 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। पूर्वी एशिया और प्रशांत देशों में 1.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ 2020-21 में विकास दर 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। लेकिन मलेशिया, फ़िलिपींस और वियतनाम में कोरोना संकट के कारण इन देशों की इकानमी के नकारात्मक स्थिति में जाने की आशंका ज़ाहिर की गई है। इस महामारी का अमेरिका और यूरोपीय देशों की आर्थिक व्यवस्था पर गहरे प्रभाव के कारण अत्यधिक प्रभाव पड़ने की आशंका ज़ाहिर की गई है।
विश्व बैंक ने आशा जताई है कि भारत सहित अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने अर्थ व्यवस्था को संकट से उबारने के लिए राजकोषीय नीतियों में परिवर्तनों के साथ अरबों डालर प्रोत्साहन राशि जारी की है, उसका असर पड़ेगा। लेकिन भविष्य फ़िलहाल अनिश्चित है।
विश्व बैंक ने कोविड -19 महामारी के प्रभावों की चर्चा करते हुए दुनिया भर की इकानमी के भावी परिदृश्य का ख़ाका खींचते हुए कहा है कि विश्व विकास दर में औसतन 5.2 प्रतिशत की सिकुड़न इस तथ्य का संकेत देती है कि यह द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अल्प समय में तीव्रतम गिरावट है। इस गिरावट की वजह से प्रति व्यक्ति आय 1870 के बाद न्यूनतम होगी । इसका कारण घरेलू मांग-आपूर्ति में कमी, व्यापार में भारी गिरावट तथा यातायात और पर्यटन का उल्टे मुंह गिरना है। यह पिछले छह वर्षों में तीव्रतम और प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से न्यूनतम है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन देशों में कोरोना महामारी के दंश ने व्यापक तबाही मचाई है, उसका असर उन क्षेत्रों में वाले वर्ष 2020-21 में ज़्यादा होगा। एक आकलन में कहा गया है कि इसका प्रति व्यक्ति आय में गिरावट से दुनिया भर में करोड़ों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे आ जाएँगे। इस से स्कूलों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।