राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास ने क्यों दिया चंदाः रविशंकर प्रसाद
नई दिल्ली, 25 जून (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि चीन ने राजीन गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को चंदा क्यों दिया? कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि चीनी दूतावास ने फाउंडेशन को फंडिंग क्यों की, कांग्रेस का चीन से प्रेम कैसे बढ़ गया जब उनके कार्यकाल में ही उसने भारत की जमीन कब्जा की थी।
रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को यह दावा करते हुए कहा कि चीनी दूतावास ने सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले आरजीएफ को फंडिंग की। उन्होंने कहा कि एक कानून है जिसके तहत कोई भी पार्टी बिना सरकार की अनुमति के विदेश से पैसा नहीं ले सकती। कांग्रेस स्पष्ट करे कि इस चंदे के लिए क्या सरकार से मंजूरी ली गई थी ? उन्होंने कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए वर्ष 2005-06 के दानदाताओ की सूची में चीन के दूतावास काम नाम दर्ज है। ऐसा क्यों हुआ? जबकि सूची में कई उद्योगपतियों,और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों का भी नाम दर्ज था, ऐसे में चीन से चंदा लेने की जरूरत क्यों पड़ी। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि क्या ये सब सोची समझी रणनीति के तहत हुआ, जिसके बाद कांग्रेस की सरकार में भारत और चीन के बीच व्यापारीय घाटा तैंतीस गुना बढ़ गया। कांग्रेस पार्टी जवाब दे कि आखिर चीन के प्रति इतना प्रेम क्यों उमड़ गया था कि पार्टी के साथ समझौते हो रहे थे।
इससे पूर्व, भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर कुछ दस्तावेज साझा करते हुए यह आरोप लगाया। मालवीय द्वारा साझा किए गए दस्तावेजों में आरजीएफ की वर्ष 2005-06 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि उसे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के दूतावास से चंदा मिला है। रिपोर्ट में दर्शाए गए सामान्य चंदादाताओं की सूची में यह नाम दर्शाया गया है। मालवीय ने कहा कि इस चंदे के बाद से नतीजे दिखने लगे। आरजीएफ ने एक नहीं बल्कि कई अध्ययन किए कि भारत और चीन के बीच में मुक्त व्यापार समझौता कितना आवश्यक है।
सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले इस फाउंडेशन में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बोर्ड के सदस्य हैं। भारत और चीन को लेकर राजीव गांधी फाउंडेशन की स्टडी के नतीजे भी चौंकानेवाले रहे। इसमें साफ तौर पर कहा गया कि चीन से ज्यादा भारत को मुक्त व्यापार समझौते की जरूरत है और भारत को दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के प्रयास के तौर पर इसे लागू करना चाहिए । ऐसा तब कहा जा रहा था जबकि चीन असंतुलित व्यापार की वजह पहले से ही भारत की तुलना बहुत अधिक फायदे में था।