बेगूसराय, 20 अक्टूबर (हि.स.)। भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए विश्व में प्रशंसा का पात्र है। लेकिन, इसके महत्वपूर्ण स्मृतियों से सजे धरोहरों को जब नष्ट किया जा रहा हो तो लोगों में आक्रोश होना लाजिमी है।
मामला बेगूसराय जिला के बखरी में 1880 के आसपास सूर्खी चूना, कत्था, कंक्रीट से अंग्रेज इंजीनियर जी रोलिंगसन द्वारा डिजाइन कर बनवाए गए ऐतिहासिक डाकबंगले का है। जिस डाकबंगला में आजादी से पहले अंग्रेज अधिकारी और आजादी के बाद राजनेताओं का मजमा लगता था। जिला परिषद को सौंपने पर निरीक्षण भवन तथा बाद में उसे थाना भवन में परिणत कर दिया गया और थाना का अपना भवन बनने के बाद यह बर्बाद होकर टूटने के लिए भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
नमक कानून भंग करने के आरोप में इसी डाकबंगला में स्पेशल कोर्ट लगाकर बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को छह महीने की सजा सुनाकर हजारीबाग जेल भेजा गया था। इसमें बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के आजादी आंदोलन के समय किये गये संघर्ष की यादें कैद हैं। ध्वस्त होते ही उनकी यादों की निशानी विलीन हो जाएगी। यह भारतीय संस्कृति के धरोहर को अक्षुण्य रखने की परंपरा पर करारा आघात है। बखरी के सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलेश कुमार कंचन कहते हैं कि श्रीबाबू का बखरी आने-जाने का सिलसिला आजादी के पहले से ही था, जब भी वे बखरी आते-जाते तो बखरी के प्रथम विधायक व बिहार विधानसभा के डिक्टेटर के नाम से चर्चित शिवव्रत नारायण सिंह तथा शकरपुरा के मित्रों से मिला करते थे।
मुख्यमंत्री बनने के बाद श्रीबाबू जब पहली बार बखरी आए तो उनकी गिरफ्तारी में भूमिका निभाने वाले चौकीदार कारी पासवान से यहीं मिले थे। लेकिन आज यह ऐतिहासिक भवन ध्वस्त होने के कगार पर है तो इसे देखने की फुर्सत ना तो जिला परिषद को है और ना हीं किसी जनप्रतिनिधि या सरकारी विभाग को। यह डाकबंगला जिला परिषद के जमीन पर निर्मित है। जिस पर जिला परिषद के द्वारा मार्केट बनाने का काम जारी है। डाक बंगला के चारों तरफ से मार्केट के लिए मकान बनकर तैयार है। जबकि डाकबंगला अभी भी वर्तमान में खड़ा है। समझा जाता है की डाकबंगला को ध्वस्त कर वहां पर फील्ड बनाया जाएगा। जहां मार्केट में आने वाले लोगों का वाहन पार्किंग या अन्य कार्यों के लिए उपयोग होगा।
बता दें कि महात्मा गांधी के आवाहन पर गढ़पुरा में नमक कानून भंग करने के दौरान घायल होकर श्रीबाबू जब वापस मुंगेर जा रहे थे, तो 23 अप्रैल 1930 को अंग्रेज अधिकारियों के आदेश तथा मुंगेर के कलक्टर ली साहब के निर्देश पर तत्कालीन एसपी मथुरा प्रसाद ने श्रीबाबू को बेगूसराय से गिरफ्तार कर इसी डाकबंगला में लाया था। जहां की एक स्पेशल कोर्ट लगाकर उन्हें कानून भंग करने की सजा सुनाते हुए छह महीने की कैद में हजारीबाग जेल भेज दिया गया था। उसके बाद जब भी उन्हें बखरी आने का मौका मिला तो इस डाकबंगला में ठहरते रहे।