दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में “विवेकानंद जी का मानवता सन्देश” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन
नई दिल्ली, 14 जनवरी: दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा बवाना उपशाखा पुस्तकालय कर्मचारियों तथा पाठकों हेतु दिनांक 14 जनवरी 2021 को स्वामी विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य “विवेकानंद जी का मानवता सन्देश” विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. रामशरण गौड़ के सानिध्य तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पौरोहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. रामराज उपाध्याय की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम में वक्ता के रूप में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग से एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सरोज महानंदा एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वेदप्रकाश उपस्थित रहे। सुश्री बिदिशा कर द्वारा सरस्वती वंदना से वेबिनार का शुभारम्भ किया गया।
डॉ. वेदप्रकाश ने वेबिनार में उपस्थित सभी गणमान्य जनों एवं श्रोताओं को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते हुए अपना वक्तव्य प्रारंभ किया। उन्होंने विवेकानंद जी पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वह मानव चेतना का अतुल्य श्रोत तथा भारतीय आध्यात्म की पुनः स्थापना करने वाले अमूल्य रत्न थे। उन्होंने बताया गाँधी जी कहते थे कि भारत के पास पूरी दुनिया को देने के लिए एक सन्देश है, उनके इन शब्दों के पीछे स्वामी विवेकानंद जी के विचार ही थे। पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी भी एकात्म मानववाद के साथ अन्तोदय की संवेदना की बात करते हैं यह भी स्वामी विवेकानंद जी का मानवता सन्देश ही था। स्वामी विवेकानंद जी कहते थे कि वह उस देश से हैं जिसने सभी धर्मों और देशों से सताये हुए लोगों को शरण दी। कोई भी धर्म किसी धर्म का स्थान नहीं ले सकता परन्तु एक दूसरे की भावना को समझते हुए, उनका सम्मान करते हुए हर धर्म पनप सकता है, समाज में शांति और सामंजस्य बना रह सकता है तथा मानव जाति का सही मायने में आध्यात्मिकरण हो सकता है। उन्होंने शिकागो के धर्म संसद में भी यह ही कहा था कि किसी एक धर्म को श्रेष्ठ मानना सरासर गलत है। आज के समय में मानवता हर पल धराशय हो रही है, विस्तारवाद ने मानवता और शांति को भंग किया है। डॉ. वेदप्रकाश ने वेबिनार के माध्यम से इस विस्तारवाद पर प्रश्न करते हुए कहा कि क्या इस विस्तारवाद से मानवता की भलाई हो सकती है? विवेकानंद जी युवाओं की जाग्रति के लिए आजीवन कार्यरत रहे तथा विश्व कल्याण एवं विश्व की समस्याओं के निवारण के लिए युवाओं के योगदान हेतु उन्हें प्रेरित करते रहे। विश्व समुदाय के विकास एवं मानवता की स्थापना के लिए भारत आज भी उसी प्रतिबधता के साथ खड़ा हुआ है।
डॉ. सरोज महानंदा ने श्रोताओं को बताया कि स्वामी विवेकानंद जी ने दुनिया को हिन्दू धर्म से परिचित करवाया तथा सभी को यह सन्देश दिया कि आध्यात्म ही मानवता की कुंजी है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी द्वारा शिकागो के धर्म संसद में दिए अभिभाषणों पर विस्तार में चर्चा की। स्वामी विवेकानंद जी कहते थे कि भूखे पेट आध्यात्म की बातें समझ नहीं आ सकती हैं इसलिए सर्वप्रथम गरीबी और दरिद्रता का निवारण आवश्यक है। उन्होंने भारत की मूलभूत स्थिति को देखते हुए लोगों के दुखों को समझा, उनके निवारण के लिए कार्य किये तथा मानव में आध्यात्म चेतना जाग्रत करते रहे। वे मानते थे कि ईश्वर उन लोगों से खुश रहता है जो धर्म, जाति, लिंग के भेदभाव को छोड़ दूसरों के दुखों को दूर करने के लिए कार्य करते हैं। वह ब्रह्म और मोक्ष की प्राप्ति को छोड़ मानवता के उत्थान, दरिद्रता के निवारण को महत्व देते थे। विवेकानंद भारत के भविष्य के लिए भी चिंतित रहते थे कि क्या भारतीय समाज में जाति व्यवस्था बनी रहेगी, क्या जन्म के आधार पर ही मनुष्य का आकलन किया जायेगा, छूत-अछूत की व्यवस्था बनी रहेगी, क्या एक आदर्श समाज और मानवता की स्थापना हो पायेगी या ऐसे ही हम धर्म, जाति और अन्य भेदभाव में बंटे रहेंगे।
प्रो. रामराज उपाध्याय ने विवेकानंद जी के परोपकारी स्वभाव का व्याख्यान करते हुए अपना वक्तव्य आरम्भ किया। उन्होंने बताया कि हमारे ऋषियों और महर्षियों ने जो हमें शिक्षा और ज्ञान दिया है उसे हमें पूरे सम्मान और श्रद्धा से अपनाने की तथा उसे प्रवाहित करने की आवश्यकता है। विवेकानंद जी इसी भाव की प्रतिमूर्ति थे। वे मानते थे कि यदि हम ज्ञान को अपने तक ही सीमित रखेंगे तो ज्ञान का संचार, समाज का कल्याण व विकास नहीं हो पायेगा, हम एक ही परिस्थिति में अपना पूरा जीवन व्याप्त कर देंगे। प्रो. रामराज उपाध्याय ने बताया स्वामी विवेकानंद जी कहते थे कि ईश्वर एक ही है और उसी ईश्वर से यह सम्पूर्ण विश्व जाग्रत है तो धर्म के आधार पर ऐसे लड़ना व्यर्थ है। विवेकानंद जी समाज में व्याप्त हर एक स्थिति पर पूरी दृढ़ता और विवेक से अपने विचार रखते थे। वे धर्म और आध्यात्म में विश्वास रखते थे परन्तु साथ ही साथ वह आडंबर और पाखंड की निंदा भी करते थे। हमें विवेकानंद जी से प्रेरणा लेते हुए मानवता कल्याण हेतु कार्य करते हुए अपना जीवन व्याप्त करने का प्रण लेना चाहिए तथा मानव कल्याण, विवेक के विकास हेतु चिंतन करना चाहिए।
डॉ. रामशरण गौड़ ने वेबिनार में उपस्थित सभी वक्ताओं द्वारा स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के जुड़े मानवता के सन्देश को बड़े ही विस्तार व सार्थकता से श्रोताओं के साथ साझा करने हेतु धन्यवाद दिया। विवेकानंद जी के बहुमूल्य सन्देश तथा विचार आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अत्यावश्यक हैं। स्वार्थ और मानवता अहितकारी विचारों के कारण समाज में देशभक्ति की ज्योति धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है इनकी पुनः जाग्रति हेतु विवेकानंद जी के विचारों को अपनाने की जरूरत है। विवेकानंद जी ने निश्चित ही धर्म को सही अर्थों में समझा और उसका व्याख्यान एवं संचार किया। उन्होंने भ्रमण करते हुए समाज की स्थति को समझा तथा राष्ट्र के विकास के लिए युवाओं को योगदान देने हेतु आह्वान किया।
अंत में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी श्री आर. के. मीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापन तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।