मीडिया और राजनीतिक दलों ने जनजागरुकता में नहीं निभाई अपनी भूमिका : उपराष्ट्रपति

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उपराष्ट्रपति आज भारत में विधायी निकायों पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अरुण जेटली की स्मृति में आयोजित प्रथम व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। 



नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (हि.स.)। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने कहा कि एक जागरूक जनमत स्वस्थ लोकतंत्र की आवश्यक शर्त है। जनशिक्षा के लिए मीडिया तथा राजनैतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने खेद जताया कि दोनों ही संस्थाओं ने अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वहन नहीं किया है।

उपराष्ट्रपति आज भारत में विधायी निकायों पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अरुण जेटली की स्मृति में आयोजित प्रथम व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनैतिक दलों को सतत जनसंपर्क के माध्यम से जनचेतना बढ़ानी चाहिए। जनअपेक्षाओं को विधायी कार्य में प्रतिबिंबित करना चाहिए। उन्होंने सतत जनचेतना और जनशिक्षण में मीडिया की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1952 से निरंतर चुनावों में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है तथापि पुरातनपंथी पहचान आधारित राजनीति से हट कर विकासवादी राजनीति को प्राथमिकता देने के लिए नव जनचेतना की आवश्यकता है। उन्होंने विधायी निकायों तथा जनता के बीच सतत द्विपक्षीय संपर्क और संवाद स्थापित करने के लिए नयी सूचना प्रौद्योगिकी के कारगर प्रयोग करने का सुझाव भी दिया।

कुछ वर्गों द्वारा राष्ट्रपति प्रणाली की वकालत किए जाने का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि जरूरी यह है कि सभी भागीदार संसदीय निकायों को सुचारू रूप से सफलतापूर्वक चलने दें और सुनिश्चित करें कि इसके लाभ आम जनता तक पहुंचे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रणाली की सफलता के लिए चार तत्व आवश्यक हैं- बहुमत का शासन, अल्पमत के अधिकारों का संरक्षण, संवैधानिक प्रशासन तथा सौहार्दपूर्ण गंभीर विमर्श। उन्होंने कहा कि विधायी निकायों पर जनता का विश्वास तभी बढ़ता है जब ये संस्थाएं उनकी अपेक्षाओं के प्रति उत्तरदायी होती हैं। जनता जनप्रतिनिधियों के आचरण को भी देखती है।

 


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