उत्तराखंड: विश्व धरोहर फूलों की घाटी गुलजार, 55 दिन में 530 पर्यटक पहुंचे

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जोशीमठ (चमोली) उत्तराखंड, 25 सितम्बर (हि.स.)। विश्व धरोहर फूलों की घाटी कोरोना काल में भी गुलजार है। 55 दिन में 530 देशी-विदेशी पर्यटकों ने फूलों की घाटी का दीदार किया है। हर साल 1 जून को खुलने वाली फूलों की घाटी को  इस बार कोरोना की वजह से 1 अगस्त को खोला गया। आमतौर पर 15 अगस्त के बाद फूल मुरझाने लगते हैं। मगर सैलानियों का आना जारी है। यहां पहुंचने वाले सैलानियों में थाईलैंड, जापान, स्विटजरलैंड और कनाडा के नागरिक भी शामिल हैं। यह जानकारी फूलों की घाटी रेंज के ऑफिसर बृजमोहन भारती ने दी।
उन्होंने बताया कि इन सैलानियों से वन विभाग को 70,500 रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। फूलों की घाटी 31 अक्टूबर को बंद कर दी जाएगी। इन दिनों यहां उगी पोलीगोनम घास को उखाड़ने के लिए 10 मजदूरों को लगाया गया है।
उल्लेखनीय है कि फूलों की घाटी का यौवन 15 जून से 15 अगस्त तक शबाब पर रहता है।
फूलों की घाटी करीब 87 वर्ग किलोमीटर में फैली है। यहां 500 से अधिक किस्म के फूल खिलते हैं। यहां बेश कीमती जड़ी-बूटियों का भंडार है।  इस बार घाटी में प्रमुूख रूप से वाइल्ड रोज, साइनेन्थस, प्राइमुला, फिटलेरिया रोउली, एपीलोवियम, व्हाइट वाइल्ड रोज, प्राइमुला डेन्टीकुलाटा, मासस मेरी गोल्ड के अलावा जड़ी-बूटियों में फरण, सालम पंजा, लहसुन जड़ी व सेमरू-रेडोडोलियम केम्पालूडम के फूल बहुतायात मे खिले।
फूलों की घाटी विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी अभयारण्य और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का हिस्सा भाग है। इसे  हिमालय क्षेत्र में पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है। इसकी घोषणा को यूनेस्को ने 1982 में की थी।
ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पहुंचे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने लगाया था। दोनों 1931 में कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। स्मिथ यहां 1937 में दोबारा पहुंचे। 1938 में उन्होंने “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से किताब लिखी। बर्फ के पहाड़ों से घिरी फूलों की घाटी आज बागवानी विशेषज्ञों और फूल प्रेमियों के तीर्थस्थल जैसी है।

 


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