देहरादून, 24 जुलाई (हि.स.)। हरिद्वार के हर की पौड़ी में बहने वाली गंगा को उसकी खोई हुई पहचान वापस मिलेगी। इसके लिए सरकार ने कवायद तेज कर दी है। प्रदेश के शहरी विकास, आवास, राजीव गांधी शहरी आवास, जनगणना, पुनर्गठन एवं निर्वाचन मंत्री मदन कौशिक ने आज यहां विधानसभा में हरिद्वार गंगा नदी स्थित स्कैप चैनल के सम्बन्ध में विचार-विमर्श हेतु बैठक की। बैठक में यह तय किया गया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस शासित हरीश रावत सरकार ने गंगा को लेकर जो गलत फैसले किए थे, उन त्रुटियों को फिर से ठीक किया जाएगा और गंगा मैया का पतित पावनी अविरल स्वरूप बहाल किया जाएगा। इसके लिए ऐतिहासिक साक्ष्यों का अध्ययन किया जाएगा और तत्पश्चात आवश्यकतानुसार कोर्ट-कचहरी और एनजीटी में अपील की जाएगी और राज्य सरकार कानून बनाएगी।
बैठक में अधिकारियों ने उक्त स्थल (हरिद्वार, गंगा नदी स्थित स्कैप चैनल) पर गंगा की अविरलधारा की पुष्टि करते हुए कहा कि इस सम्बन्ध में अभिलेखीय साक्ष्य मौजूद है। 1940 में प्रकाशित कोटले की पुस्तक में उक्त स्थल पर अविरल गंगा की धारा का वर्णन है तथा 1916 में गंगासभा के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय के समझौते में भी इसका वर्णन है। इसलिए आज की बैठक में निर्णय लिया गया कि गंगा के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था एवं जनसुविधा के महत्व को देखते हुए आगामी कार्यवाही की जायेगी।
विचार-विमर्श के बाद नगर विकास मंत्री ने कहा कि उक्त स्थल पर सदैव से गंगा की अविरल धारा बहती रही है, बह रही है और बहती रहेगी। उन्होंने कहा कि कानूनी समस्या का समाधान करने के लिए जरूरत के अनुसार अधिनियम में संशोधन किया जायेगा, अथवा अध्यादेश लाया जायेगा अथवा उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जायेगी। इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक साक्ष्य और कानूनी पहलुओं का अध्ययन किया जायेगा। इस प्रक्रिया के साथ ही शीघ्र ही स्कैप चैनल को बदलते हुए गंगा, अविरल धारा बहने की भी कार्यवाही अमल में लायी जायेगी। इस अवसर पर सचिव सिंचाई, सचिव आवास नितेश झा, सचिव विधायी एवं संसदीय कार्य प्रेम सिंह खिमाल, सचिव हरिद्वार विकास प्राधिकरण हरवीर सिंह एवं टाउन प्लानिंग विभाग के अधिकारी मौजूद थे।
उल्लेखनीय है कि साल 2016 में हरीश रावत सरकार ने हरकी पौड़ी पर गंगा को स्क्रैप चैनल का नाम दे दिया था। इससे यहां बहने वाली गंगा की जलधारा को नदी न मानकर नहर का दर्जा दिया गया था। इसके लिए एक शासनादेश भी जारी किया गया था। हालांकि उस वक्त साधु-संत समेत तीर्थ पुरोहितों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। 2017 में त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार आने के बाद साधु-संत और तीर्थ पुरोहित इस आदेश को करवाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं।
करीब एक पखवाड़ा पहले हरिद्वार में एक निजी कार्य्रकम में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 2016 के शासनादेश को लेकर साधु-संत और पुरोहित समाज से माफी मांगी थी। तब उन्होंने बताया कि उस समय सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की तलवार लटकी हुई थी। अगर टेक्निकल बदलाव न करते तो कम से कम 300 इमारतों को ध्वस्त करना पड़ता। उन्होंने मौजूदा सरकार को शासनादेश रद्द करने के लिए स्वतंत्र बताया। इस तरह यह मामला एक बार फिर जोर पकड़ने के बाद पुराने शासनादेश को रद्द करने के लिए प्रक्रिया शुरू हो गई है।