बिहार के एकलौते रामसर साइट काबर के पानी में सुलग रही है विद्रोह की आग

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काबर के पानी में डूबा है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किया गया करोड़ों का गन्ना



बेगूसराय, 08 जनवरी (हि.स.)। भारत का 39 वां और बिहार का एकमात्र रामसर साइट बेगूसराय का काबर झील एशिया में मीठे पानी के लिए चर्चित है। विगत महीने रामसर साइट में शामिल होने के बाद इसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर मुखर हुई है। लेकिन काबर के इस मीठे पानी में विद्रोह की आग सुलगनी शुरू हो गई है और थोड़ी सी चूक होने पर यह आग ज्वालामुखी बनकर फूट सकती है। कई वर्षों से पानी के अभाव में सूख चुके काबर में इस साल भरा पानी मुसीबत का कारण बनता जा रहा है।
काबर से जुड़े हजारों किसान अपने खेत से पानी निकालने के लिए जहां दिन-रात एक किए हुए हैं। वहीं, काबर से जीविका चलाने वाले मछुआरा समुदाय के लोग किसी भी हालत में पानी नहीं निकलने देना चाह रहे हैं। मछुआरों ने धमकी दिया है कि काबर से पानी निकासी पर रोक नहीं लगाया गया तो उग्र आंदोलन करेंगे। वहीं, किसान हर हाल में काबर के गहरे झील वाले क्षेत्र को छोड़कर अन्य जगहों से पानी निकलवाने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं। मछुआरों का कहना है कि पानी निकल जाने से हमारे समुदाय के हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। जबकि किसानों का कहना है कि अगर पानी नहीं निकला तो करोड़ों की क्षति होगी और यह क्षति किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देगा।
काबर के किसान प्रभात भारती ने बताया कि काबर झील प्रकृति का अनमोल तोहफा है, लेकिन बरसात सीजन के बाद भी अगर अत्यधिक पानी जमा रहेगा तो किसान खेती कैसे करेंगे। काबर में पानी की अधिकता के मद्देनजर 1950 के दशक में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने काबर से बगरस तक करीब साढ़े 14 लाख की लागत से नहर खुदवाया था। अक्टूबर के बाद लेयर से अधिक पानी बूढ़ी गंडक में गिराने की व्यवस्था की गई और यह व्यवस्था पिछले सात दशक से कायम है। पिछले कुछ सालों तक पानी नहीं रहने के कारण बड़े पैमाने पर खेती शुरू हुई, हजारों एकड़ में किसानों ने गन्ना लगाया। उसके बाद बारिश अधिक हो गई तो गन्ना डूब गया, किसान गेहूं और सरसों भी नहीं लगा सके।
नहर का गेट खोल दिया गया, लेकिन रास्ते में कई जगहों पर अवरुद्ध किया गया है। हेमनपुर में पुल बनने के बाद डायवर्सन वैसे ही छोड़ दिया गया। लौछे पंचायत में नहर में सड़क बनवा दिया गया, जहां कि हम किसान पंपिंग सेट से पानी दूसरी ओर पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा कई जगह मछुआरों द्वारा पानी को अवरुद्ध कर दिया गया है। ऊपर से अब स्लुइस गेट बंद करने की मांग किया जा रहा है। किसानों ने हसनपुर चीनी मिल के माध्यम से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत गन्ना लगाया था, पानी नहीं निकलेगा तो गन्ना मील तक नहीं पहुंच सकेगा और करोड़ों की क्षति होगी।
डीएम अरविन्द कुमार वर्मा का कहना है कि काबर झील से अधिक पानी को निकालने के लिए पूर्व से नहर की व्यवस्था थी। नहर के माध्यम से ज्यादा पानी नहीं निकलता है, लेयर से अधिक पानी होने पर निकलता है। उसी व्यवस्था के तहत किसानों के अनुरोध पर पानी निकाला जा रहा है। अब मछुआरा समुदाय द्वारा पानी निकालने पर रोक की मांग की जा रही है। दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर एसडीओ से जांच कराया जा रहा है, पहले से चले आ रहे नियम के अनुकूल कार्रवाई की जाएगी।

 


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