उप्र: 58,000 बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी की जल्द होगी तैनाती

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बैंकिंग कार्यों में स्वयं सहायता समूहों की करेंगी मददग्रामीणों व समूहों में डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर होगा जोर    



लखनऊ, 06 सितम्बर (हि.स.)। ग्रामीण क्षेत्रों के कल्याण के लिए लायी गई योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ उन तक पहुंचाने पर सरकार का पूरा जोर है। इसी के तहत प्रदेश के करीब 58,000 ग्राम पंचायतों में इसी माह बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी (बीसी सखी) की तैनाती होने जा रही है। इसके साथ ही वह ‘बैंक जनता के द्वार’ की परिकल्पना को साकार करने में भी मददगार साबित होंगी। बीसी सखी स्वयं सहायता समूहों और बैंक के बीच एक तरह से सम्पर्क सूत्र का काम करेंगी।
ग्रामीणों को योजनाओं का लाभ दिलाने में भी मदद करेंगी और ग्रामीण परिवारों व स्वयं सहायता समूहों में डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने पर भी जोर देंगी। वंचित परिवारों के फाइनेंशियल इन्क्ल्युजन (वित्तीय समावेशन) के लिए भी यह एक सशक्त माध्यम होंगी और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की वित्तीय समावेशन की मुख्य रणनीति होगी। इसके अलावा वह सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और गरीबों की मदद भी करेंगी।
अपर मुख्य सचिव ग्राम्य विकास मनोज कुमार सिंह के मुताबिक बीसी सखी के लिए मांगे गए ऑनलाइन आवेदन के तहत करीब 3.59 लाख पंजीकरण हुए थे, जिनमें से 2.51 लाख आवेदन सही पाए गए हैं। अब चयन सम्बन्धी आगे की प्रक्रिया पर काम चल रहा है और कोशिश है कि इसी माह प्रक्रिया पूरी हो जायेगी। उन्होंने बताया कि इस बारे में 11 जून 2020 को एक एप रोल आउट किया गया था, जिस पर पूर्ण विवरण के साथ आवेदन करना था। आवेदन की आखिरी तारीख 11 जुलाई थी। इस बारे में स्वयं सहायता समूहों और जिलों में किये गए व्यापक प्रचार-प्रसार का ही नतीजा रहा कि बड़ी संख्या में महिलाओं ने इसके लिए आवेदन किया।
बीसी-सखी के चयन के लिए पहली वरीयता स्वयं सहायता
समूह की उस सदस्य को दी जा रही है जो स्वयं सहायता समूह को सबसे पहले ज्वाइन किया हो और समूह के केंद्र बिंदु के रूप में हो। इसके अलावा समूह को संचालित करने में जिसकी अहम भूमिका हो। ऐसे भी समूह हो सकते हैं जो वर्तमान में सक्रिय न हों लेकिन, उनकी जागरूक गतिशील सदस्य को बीसी-सखी बनाया जा सकता है और समूह को दोबारा से सक्रिय बनाया जा सकता है।
इसके अलावा ग्राम पंचायत के गरीबों और कमजोर वर्ग के हित में संघर्ष करने वाली महिला को भी बीसी-सखी के रूप में मौका दिया जा सकता है। लेकिन, उनको किसी न किसी स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में जोड़ना होगा या स्वयं को जोड़ते हुए अलग समूह बनाना होगा। कुल मिलाकर चयन प्रक्रिया का उद्देश्य यही है कि ऐसी बीसी सखी की नियुक्ति हो जिसमें नेतृत्व की क्षमता हो और नई तकनीक को सीखने और समझने की रुझान हो। इसके अलावा वह गरीबों और कमजोर वर्ग के दुःख-दर्द को भलीभांति समझती हो और उसके निराकरण में आगे रहती हो।
आरक्षण व्यवस्था होगी लागू:
प्रदेश में चयनित की जाने वालीं इन 58,000 बीसी सखी में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित आरक्षण का अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाएगा।
बीसी-सखी को मिलेगी ट्रेनिंग:
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन चयनित बीसी-सखी का समुचित प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन सुनिश्चित करेगा। प्रशिक्षण में भेजने से पहले उनका पुलिस वेरिफिकेशन भी होगा। इसके अलावा मिशन उनके ब्रांडिंग की व्यवस्था करेगा और उनका ड्रेस कोड निर्धारित करेगा।
वित्तीय मदद:
बीसी-सखी को कार्य करने के लिए जरूरी उपकरणों की व्यवस्था राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन करेगा। उनको छह माह तक 4000 रुपये प्रति माह मानदेय भी मिशन देगा। बाद में इंसेंटिव के रूप में मिलने वाली राशि से वह आत्मनिर्भर बन सकेंगी। बीसी-सखी को शुरुआत में 75,000 रुपये आसान ऋण के रूप में हार्डवेयर व स्थापना के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।

 


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