पाकिस्तान में कसूरवारों पर कार्रवाई न होने से अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वालों के हौसले बुलंद
नई दिल्ली, 17 जनवरी (हि.स.)। पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और कादियानियों के साथ वहां की राज्य एवं केंद्र सरकार का रवैया हमेशा से ही सौतेल रहा है। हिंदू, सिख और ईसाई लड़कियों के धर्मांतरण करने के मामले सामने आने पर पुलिस और सरकार हमेशा अपनी नाक, आंख, कान पूरी तरह से बंद कर लेती हैं। अलबत्ता धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाने के मामले में पुलिस और अदालत का रवैया हमेशा सख्त दिखाई पड़ता है। गैर सरकारी संगठनों और समाजसेवियों के जरिए जब धर्मांतरण के मामलों में आवाज उठाई जाती है तो पुलिस का साफ तौर से कहना होता है कि जब उनके पास शिकायत ही नहीं आती है तो वह कार्रवाई कैसे करें। लेकिन मंदिर जैसे धार्मिक स्थल आदि को नुकसान पहुंचाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के जरिए संज्ञान लेकर पुलिस और सरकार को लताड़ लगाने का मामला भी सामने आया है।
यह बात सच है कि हिंदू, ईसाई एवं सिख लड़कियों और महिलाओं का धर्मांतरण कराकर उन्हें मुसलमान बना कर निकाह किए जाने के मामले बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में घटित होते हैं। लेकिन यह भी कड़वा सच है कि ऐसे मामलों में लड़कियों के परिवार वालों की तरफ से पुलिस में या तो किसी तरह की कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई जाती या पुलिस जानबूझकर दर्ज नहीं करती है। इसलिए ऐसा घृणित कार्य करने वालों पर किसी भी तरह का कोई कानूनी शिकंजा नहीं कसा जाता है। बताया जाता है कि पाकिस्तान में गरीब और कमजोर वर्ग के हिंदू, ईसाई और सिख परिवारों को पहले से ही टारगेट किया जाता है और उनकी लड़कियों का अपहरण कर उन्हें जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराके मुसलमान बना कर उन से निकाह किया जाता है।
हिंदू युवा जागरुकता मंच पाकिस्तान की तरफ से जारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल 2020 से अभी तक पूरे पाकिस्तान में 50 से अधिक हिंदू, ईसाई और सिख महिलाओं का अपहरण किया गया और बाद में उनका धर्मांतरण कर मुसलमान बनाकर उनसे निकाह कर लिया गया। मंच से जुड़े लोगों का कहना है कि उनके जरिए आवाज उठाने के बावजूद पुलिस प्रशासन ने कोई हरकत नहीं की जिसकी वजह से इस तरह के कृत्य में संलिप्त लोगों को काफी बल मिल रहा है। अगर यह सिलसिला इसी रफ्तार से चलता रहा तो आने वाले दिनों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी काफी कम हो जाएगी।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की हितों की रक्षा करने वाले संगठनों का कहना है कि ऐसे मामलों में पुलिस भी हाथ पर हाथ धरकर बैठी रहती है क्योंकि पुलिस को किसी भी मामले में लिखित शिकायत बहुत ही कम मिलती है। उनका कहना है कि इस तरह के कामों में लिप्त लोग गरीब और बेसहारा परिवारों को ही टारगेट करते हैं ताकि उनके ऊपर किसी भी तरह की कोई बंदिश या कानूनी कार्रवाई नहीं होने पाए। उनका यह कहना है कि सम्पन्न और खुशहाल परिवारों में इस तरह की घटनाएं कम पाई जाती हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अगर यहां पर इस तरह की कोई हरकत की गई तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी और उनका जीना हराम कर दिया जाएगा। इसलिए यह लोग हमेशा गरीब और कमजोर वर्गों के लोगों को ही निशाना बनाते हैं और उनकी लड़कियों का अपहरण कर धर्मांतरण जैसा कृत्य करते हैं।
इस तरह के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया भी काफी लचीला है। यहां तक कि पाकिस्तान में गठित अल्पसंख्यक आयोग भी इस तरह के मामलों में खामोश तमाशाई बना रहता है। आयोग के पास जब सरकारी आंकड़े ही नहीं पहुंचेंगे तो वह कर भी क्या सकता है। संगठनों से जुड़े लोगों का मानना है कि जब तक पुलिस में किसी भी तरह की कोई शिकायत नहीं की जाएगी तब तक सरकार और पुलिस इस मामले में किस तरह से कार्रवाई करेगी। सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों का कहना है कि दबंग और असर रसूख रखने वाले लोगों के जरिए की जाने वाली इस तरह की हरकत से पुलिस भी उलझना नहीं चाहती है क्योंकि उनके कनेक्शन सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों से होते हैं। उनका यह भी कहना है कि जब किसी मामले में पुलिस से शिकायत की जाती है तो उस मामले में कार्रवाई की जाती है और अदालतों के जरिए भी ऐसे मामलों में आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और सजा सुनाई जाती है। इसके कई उदाहरण सामने आए भी हैं।
पाकिस्तान के सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा आदि राज्यों में धर्मांतरण को लेकर काफी घटनाएं घटित होती हैं लेकिन सबसे ज्यादा बदनाम सिंध प्रांत है जहां पर हर महीने इस तरह की घटनाएं होती ही हैं। पिछले महीने ख़ैबर पख्तूनख्वा के किरक जिले में एक उन्मादी भीड़ के जरिए एक मंदिर परिसर पर हमला किया गया और तोड़फोड़ कर मंदिर को आग के हवाले कर दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई कर भीड़ को काबू में किया और इस मामले में 31 लोगों को रातोंरात गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। दूसरे दिन ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने संज्ञान लिया और सरकार एवं पुलिस प्रशासन को नोटिस जारी कर हालात से आगाह कराने को कहा। अदालत के दबाव के ही कारण पुलिस सुकून से नहीं बैठी और इस मामले में 350 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्य सरकार के मुख्यमंत्री भी हरकत में आए और मंदिर के पुनर्निर्माण का ऐलान किया गया है बल्कि अखबारों की खबरों पर भरोसा किया जाए तो यहां पर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है।