रायबरेली, 15 दिसम्बर (हि. स.)। उन्नाव कांड में रोज नई परतें खुल रहीं हैं। इस मामले में आरोपितों ने खुद को बचाने और मामले को उलझाये रखने के लिए कई कानूनी दांव पेंच अपनायें। कानून की बारीकियों का भी आरोपियों ने खूब फायदा उठाया और रेप पीड़ित युवती न्याय के लिए भटकने को मजबूर हुई। आरोपियों ने पीड़ित के दुष्कर्म के आरोपों के हल्का करने के लिए विवाह का अनुबंध पत्र, अस्पताल की फर्जी इंट्री सहित कोर्ट में कई ऐसी बातें रखीं जिससे न उन्हें जल्दी जमानत मिल गई बल्कि पुलिस ने भी समय पर चार्जशीट भी दाख़िल करने की जहमत नहीं उठाई।
सारी तेजी पीड़ित युवती की मौत के बाद हुई और पुलिस द्वारा चार्जशीट दाख़िल करने की बात सामने आई।
हालांकि पुलिस का कहना है कि पीड़ित युवती के साथ हुई जलाने की घटना के चार दिन पहले ही चार्जशीट भेज दी गई थी। अगर पीड़ित युवती के साथ हुए दुष्कर्म के मामले में देखें तो मुख्य आरोपित शिवम त्रिवेदी को मात्र सत्तर दिन में जमानत मिल गई। 19 सितम्बर को शिवम ने कोर्ट में समर्पण किया और 30 नवम्बर को उसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। बचाव पक्ष की यह दलील काम आ गई कि शिवम और युवती के बीच प्रेम प्रसंग था और इसीलिये दोनों ने वैवाहिक अनुबंध किया था। परिजनों के विरोध के बाद दुष्कर्म की बात कही गई है।
अधिवक्ताओं का कहना है कि मामले में मुकदमा दर्ज होने के विलंब के कारण भी आरोपित को जमानत मिलने में आसानी हुई। हालांकि बाद में वैवाहिक अनुबंध पत्र फर्जी निकला लेकिन आरोपित ने जेल से बाहर आने में इसका बखूबी से इस्तेमाल किया। आरोपित की जल्दी जमानत में यह अनुबंध पत्र काफ़ी कारगर हुआ। हालांकि आरोपित को यह जमानत तथ्यों और परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर केस पर बिना कोई टिप्पड़ी किये हुए कोर्ट ने दी और यह शर्त भी लगाई की बाहर रहकर वह पुलिस का पूरा सहयोग करेगा।
गौरतलब है कि जमानत मिलने के बाद पांच दिसम्बर को शिवम अपने पिता और साथियों के साथ मिलकर दुष्कर्म पीड़ित को केरोसीन डालकर जला दिया था। जिसके बाद सात दिसम्बर को पीड़ित युवती की मौत हो गई थी। मौत से पहले पीड़ित ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में शिवम और पांच साथियों द्वारा जलाकर मारने की बात कही थी। मामले में सभी आरोपित पुलिस की गिरफ्त में हैं और मामले की एसआईटी से जांच हो रही है।
गिरफ्तारी से बचने के लिए झूठे प्रार्थना पत्र का लिया सहारा
आरोपियों द्वारा पुलिस को झूठे प्रार्थना पत्र देकर मामले को उलझाने व गिरफ्तारी से बचने की कोशिश की गई, यह अलग बात है कि पुलिस ने भी इनकी सत्यता जानने की कोशिश नहीं की। दुष्कर्म मामले के दूसरे आरोपित शुभम त्रिवेदी ने भी गिरफ्तारी से बचने के लिए जालसाजी की। शुभम के पिता ने इसी वर्ष सितम्बर माह में रायबरेली के पुलिस अधीक्षक को दिए गए प्रार्थना पत्र में दावा किया था कि शुभम दुष्कर्म की घटना से दो दिन पहले यानी 10 दिसम्बर को उन्नाव जिले के सुमेरपुर स्तिथ सरकारी अस्पताल में भर्ती था और यहां उसने अपना ऑपरेशन हुआ था। घटना के दिन उसने अस्पताल में होने की बात कही थी। इसी प्रार्थना पत्र के बाबत पुलिस ने पीड़ित से जबाब देने के लिए कहा था। पीड़ित को अपना जबाब देने के लिए रायबरेली के कई चक्कर लगाने पड़े थे। हालांकि शुभम के पिता का यह दावा भी फर्जी निकला।
इस संबंध में सुमेरपुर के प्रभारी चिकित्साधिकारी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से बातचीत की तो हैरान कर देने वाला सच का पता चला। प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. विनय सिंह तोमर ने बताया कि इस अस्पताल में केवल ओपीडी है और भर्ती करने व ऑपरेशन की कोई सुविधा नहीं है। शुभम के 10 दिसम्बर को अस्पताल में भर्ती होने का कोई रिकार्ड नहीं है, लेकिन आरोपित ने इसका फायदा उठाया और लगातार गिरफ्तारी से बचता रहा।पुलिस ने भी शुभम के पिता द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र की सत्यता को जांचने की जहमत नहीं उठाई। आरोपितों के इन दांव पेंचों से पूरा मामला उलझा रहा। पहले पीड़ित युवती को मुकदमा दर्ज करने में समय लगा। बाद में जमानत भी आरोपी को जल्दी मिल गई। आरोपितों ने इन्ही दांवपेंचों के सहारे लगातार कानून से खिलवाड़ करते रहे और अंततः इस वीभत्स कांड को अंजाम दे दिया।