गहरी साजिश के तहत कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यकों की हत्याएं, प्रशासन का सख्त रुख
जम्मू, 10 अक्टूबर (हि.स.)। राज्य से धारा 370 व 35ए हटने के बाद से व्यापक पैमाने पर आतंकियों की धरपकड़ सहित आतंकवाद के पूर्ण सफाये के लिए चले सुरक्षाबलों के अभियान ने आतंकवाद की कमर तोड़ कर रख दी। कई आतंकी कमांडरों का सफाया किया जा चुका है। पाकिस्तान से आतंकी घुसपैठ व हथियारों की सप्लाई पर सुरक्षाबलों ने कड़ा शिकंजा कसा है। राज्य में आतंकियों के मददगारों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई हैं। इससे बौखलाए आतंकियों ने अब सुरक्षाबलों की बजाय आम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू किया है।
जम्मू-कश्मीर में स्थापित होती शांति व विकास और बदलता जम्मू-कश्मीर, आतंक के आकाओं को रास नहीं आ रहा है, जिसके चलते उन्होंने अब राज्य के अल्पसंख्यकों सहित उनकी बात न मानने वाले कई मुस्लिमों को फिर से निशाना बनाना शुरू किया है। कश्मीरी पंडितों की राज्य में वापसी व उनकी जमीनों से कब्जे छुड़ाने के लिए शुरू हुई मुहिम ने ऐसे तत्व और भी बौखला गए हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाए ताकि दहशत फैलाकर यह प्रक्रिया रोकी जा सके।
पाक प्रायोजित आतंकियों की इस नई साजिश को देखते हुए राज्य प्रशासन व केन्द्र सरकार ने रुख कड़ा कर लिया है। कश्मीर घाटी में कड़े सुरक्षा प्रबंधों के साथ पुलिस ने आतंकियों व उनके समर्थकों के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है। सैकड़ों की संख्या में संदिग्धों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है, जिनमें ज्यादातर पुराने व कुख्यात पत्थरबाज, जमाते इस्लामी के कार्यकर्ता, पूर्व आतंकी और आतंकियों के पुराने मददगार (ओवरग्राउंड वर्कर) शामिल हैं। प्रशासन ने वादी में सभी अल्पसंख्यक बस्तियों की सुरक्षा बढ़ा दी है। आतंकियों के प्रभाव वाले इलाकों में घेराबंदी कर तलाशी ली जा रही है। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की साजिश का पूरी तरह पर्दाफाश करने के लिए संदिग्ध तत्वों की धरपकड़ जारी है। सुरक्षा एजेंसियों ने बदले हुए आतंकियों के इन मंसूबों के चलते नए सिरे से अभियान शुरू कर दिया है।
दहशत में अल्पसंख्यक
कश्मीर में रहने वाले कई अल्पसंख्यकों ने जम्मू सहित अन्य शहरों की तरफ रुख कर दिया है। डरे सहमे कश्मीरी हिंदू और सिख समुदाय के लोगों सहित बाहरी श्रमिक बड़ी संख्या में घाटी छोड़ जम्मू पहुंच रहे हैं। पिछले तीन दिनों में 3000 से अधिक लोग कश्मीर से पलायन कर जम्मू आ चुके हैं। शनिवार को भी 15 कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू पहुंचे थे। प्रशासन कश्मीर के हालात को लेकर नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है।
आतंकी एकबार फिर 1990 के जैसे हालात बनाने की साजिश रच रहे हैं। इस बीच अच्छे दिनों की उम्मीद लगाए बैठे गैर मुस्लिम समुदाय के लोग फिर से सोचने पर मजबूर हो गये हैं। सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं मुस्लिमों की भी हत्या हुई हैं। इस वर्ष अब तक मारे गए 28 लोगों में अल्पसंख्यकों की गिनती केवल छह-सात ही है जबकि अन्य मुस्लिम समुदाय के ही हैं।
यह कश्मीर से गैर मुस्लिमों को फिर से खदेड़ने की साजिश है। मक्खन लाल बिंदरु, विरेंद्र पासवान, सुपिंदर कौर और दीपक चंद सहित इससे पहले हुईं हत्याएं कश्मीर से गैर मुस्लिमों में डर पैदा करने के लिए हुई हैं। 1990 दशक में भी इस तरह की घटनाओं को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जाता था।
ताजा हालात में राज्य में काफी संख्या में दूसरे राज्यों के श्रमिक फंसे हुए हैं। इनमें अधिकतर श्रमिक बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के हैं। कुछ श्रमिक रात को या फिर शाम को किसी तरह निजी बसों से जम्मू पहुंच रहे हैं। गत शुक्रवार को भी देर रात काफी संख्या में बिहार के श्रमिक कश्मीर से जम्मू पहुंचे थे।
सूत्रों का कहना है कि बीते तीन दिन में अभी तक 1000 श्रमिक घाटी छोड़ चुके हैं जबकि कश्मीरी पंडितों और श्रमिकों को मिलाकर अभी तक 3000 लोग जम्मू आए हैं। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत उत्तरी कश्मीर के मुथमुसू, बारामूला के वीरवांन, बड़गाम के शेखपोरा, अनंतनाग के मट्टन, बारामूला के गांदरबल स्थित तुलमुला में ट्रांजिट कैंपों में रह रहे पंडित जम्मू पहुंचे हैं। उप राज्यपाल प्रशासन ने भी पैकेज के तहत लगे मुलाजिमों को 10 दिनों की छुट्टी दी है।
जम्मू संभाग में विरोध प्रदर्शन
आतंकियों द्वारा नई साजिश के तहत की गई हत्याओं के विरोध में जम्मू संभाग के कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक संगठनों व उनके नेताओं ने इन हत्याओं की कड़ी निंदा करते हुए आतंकवाद के साथ सख्ती से निपटने की मांग उठाई है। आतंकियों, उनके मददगारों व उन्हें बढ़ावा देने वाली सोच रखने वालों के साथ कड़ा रुख अपनाते हुए पंजाब के आतंकवाद की तर्ज पर कश्मीर से आतंकवाद को खत्म करने की अपील की गयी है। उनकी मांग है कि कश्मीर घाटी में अंतिम सांसें लेते आतंकवाद पर अंतिम प्रहार किया जाना चाहिए ताकि वर्षों बाद कश्मीर घाटी में सुख, शांति, समृ़िद्ध व विकास विकसित हो सके। आतंकवाद को अब किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
इन हालातों को देखते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन सहित केन्द्र सरकार पूरी तरह सक्रिय हो गई है। इसी के चलते रविवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कश्मीर घाटी के कई स्थानों पर छापेमारी की। यह छापेमारी श्रीनगर, कुलगाम, बारामुला, सोपोर व अनंतनाग में लगभग 15 स्थानों पर की गई है। यह छापेमारी कश्मीर में टेरर फंडिंग, आतंकी संगठनों व राष्ट्रद्रोही तत्वों की मदद करने और हाल ही में हुई कश्मीर घाटी में नागरिकों की हत्याओं के सिलसिले में की गई है।
सज्जाद गनी लोन
कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक पार्टियों के कुछ नेताओं ने जहां एक ओर इन घटनाओं की केवल निंदा करके इसके लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया, वहीं पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन का कहना है कि कश्मीर में अल्पसंख्यकों पर हुए हमले, स्थानीय मुस्लिमों को बदनाम व उन्हें उनसे अलग करने की साजिश है। इन हमलों के लिए पूरी मुस्लिम कौम को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि यह कुछ पागल और अपराधी और वहशी तत्व हैं जिसके लिए सभी मुस्लिम जिम्मेदार नहीं हैं। उनका कहना था कि बहुसंख्यक समुदाय और दहशतगर्दों व अपराधियों को अलग-अलग चिह्नित करने की जरूर है। कुछ पागल और जंगली लोग कश्मीर के लिए एक अभिशाप हैं, हमें उनसे निजात चाहिए जिन्होंने उन बहुसंख्यक मुस्लिमों को भी नहीं बख्शा है जिन्होंने उनका समर्थन नहीं किया।
उनका कहना था कि एक साजिश के तहत अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया है ताकि उन्हें कश्मीर से पलायन के लिए मजबूर किया जाए, कश्मीरी मुस्लिमों व अन्य समुदायों के बीच नफरत पैदा की जाए। कश्मीरी मुस्लिमों को बदनाम किया जाए। हम सभी को इस मुसीबत के समय एकजुट होकर इस साजिश को नाकाम बनाने की जरूरत है। असामाजिक तत्वों से मिलकर ही मुकाबला कर सकते हैं। आम नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। चंद वहशी लोगों के कारण पूरी मुस्लिम कौम बदनाम हो रही है।