चराईदेव (असम), 11 अगस्त (हि.स.)। पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के खिलाफ म्यांमार सेना की कार्रवाई से असम के प्रतिबंधित उग्रवागी संगठन उल्फा (स्वाधीन) के कैडर हताश और निराश हैं। इससे बचने के लिए एक और उल्फा (स्वा) के एक कैडर ने शनिवार की मध्य रात्रि पुलिस और सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
बताया गया है कि हाल के दिनों में चराईदेव जिले में सुरक्षा बलों के सामने अब तक आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों की संख्या पांच तक पहुंच गई है। चराईदेव जिले के तराई गांव निवासी स्वयंभू कॉर्पोरल तुपीधर गोगोई उर्फ उदिप्तो म्यांमार के एक गांव में स्थित उल्फा (स्वा) के शिविर से भाग निकला। उसने बीती मध्य रात्रि को भारतीय सेना के सापेखाती शिविर में चराइदेव पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उग्रवादी ने स्लोवाकिया निर्मित प्वाइंट 22 बोर की एक पिस्तौल और चार राउंड जिंदा कारतूस सुरक्षा बलों को सौंप दिया।
उल्लेखनीय है कि म्यांमार सैन्य अभियान के कारण उग्रवादी अपना ठिकाना बदलने को मजबूर हैं। जिसे भी मौका मिल रहा है, वह म्यांमार से भाग कर आत्मसमर्पण करने की कोशिश कर रहा है।
आत्मसर्पण करने वाला कैडर उल्फा के स्वयंभू मेजर जनरल जीबन मोरन की व्यक्तिगत सुरक्षा में तैनात था। उसके अनुसार उल्फा (स्वा) के कैडर ज्यादातर सिविल ड्रेस पहनते हैं और म्यांमार के गांवों में सामान्य किसानों की तरह काम कर रहे हैं। कुछ म्यांमार के जंगल में अस्थाई शिविरों में काम कर रहे हैं। आत्ससमर्पण करने वाले उग्रवादी ने बताया कि सभी कैडरों की हालत बेहद खराब है। वे सभी डर के साये में अपना जीवन गुजार रहे हैं। किसी को पता नहीं है कि कब म्यांमार की सेना उनका काम तमाम कर दे। इसलिए सभी भागकर अपने घर लौटना चाहते हैं, लेकिन उल्फा के बड़े कैडर उन्हें भागने नहीं दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इस तरह की कहानी पहले भी आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों ने सुनाई है। पूर्व के कैडरों ने तो यहां तक कहा है कि अगर कोई उल्फा (स्वा) के कैंप से भागते हुए पकड़ा जाता है तो उसे मौत की सजा दे दी जाती है।