उदयपुर, 31 दिसम्बर (हि.स.)। उदयपुर ही नहीं समूचे मेवाड़ का सपना ‘उदयपुर-अहमदाबाद ब्रॉडगेज लाइन’ अब साल भर दूर है लेकिन यह रेलमार्ग अभी से ही लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। कारण है कि यह रेलमार्ग अरावली पर्वतमाला के मध्य से होते हुए गुजरात की सीमा में प्रवेश करता है और अरावली की छोटी-बड़ी पहाडिय़ों के साथ इस रेलमार्ग के दोनों ओर हरा-भरा वातावरण है। यह रेलमार्ग यात्रियों को ईको टूरिज्म का अहसास कराएगा। इसकी एक मिसाल खारवा-चांदा स्टेशन है जो पूरी तरह से नए नक्शे और नई सोच से बनाया गया है। इस स्टेशन पर खड़े रहकर अरावली पर्वतमाला और उसकी गोद में समाहित जलराशि के दर्शन करने को मिल रहे हैं। इस स्टेशन का नजारा जब रेलवे अधिकारियों को भी लुभा रहा है तो यात्रियों को भला क्यों नहीं पसंद आएगा।
रेलवे सूत्रों की मानें तो खारवा-चांदा की टनल बनने के बाद इस लाइन पर रेलगाड़ी चलनी शुरू हो जाएगी। इस टनल में करीब 10 माह और लगेंगे। उदयपुर से खारवा-चांदा तक पिछले दिनों 110 किलोमीटर की रफ्तार से रेलगाड़ी के संचालन का परीक्षण भी कर लिया गया। उधर, अहमदाबाद से डूंगरपुर तक भी सारा काम लगभग पूरा हो चुका है। बस सुरंग बनी नहीं कि यहां से रेलगाड़ी को हरी झंडी मिल जाएगी। संभव है कि नए साल 2020 में ही यह सौगात उदयपुरवासियों को मिल जाए। इसी मार्ग पर उदयपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर नया बनाया गया रेलवे स्टेशन खारवा-चांदा किसी रिसोर्ट से कम नहीं लगता। स्टेशन के सामने ही छोटी पहाडिय़ों के बीच स्थित जलराशि यहां पहुंचने वाले हो एकाएक आकर्षित किए बिना नहीं रहता।
रेलवे अधिकारी भी यह कहने से नहीं चूकते कि परियोजना शुरू होने से पहले उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी कि कभी वीरान रहने वाले सामान्य फ्लैग स्टेशन खारवा चांदा का नया रूप इतना खूबसूरत होगा। रेलवे स्टेशन का भवन पहले पूर्व दिशा की तरफ था। आमान परिवर्तन का काम चला तो इस पुराने भवन को ध्वस्त कर दक्षिण दिशा की तरफ नया रेलवे स्टेशन बनाया गया। हालांकि प्लेटफार्म तो दोनों तरफ है। यहां कुल तीन रेललाइन बनाई गई है, जिनमें से दो लाइन दोनों तरफ के प्लेटफार्म की जबकि एक लाइन मध्य में रेलगाड़ी के क्रॉसिंग के लिए बिछाई गई है। ब्रॉडग्रेज लाइन के हिसाब से प्लेटफार्म ऊंचा बना और फिर उस पर स्टेशन भवन का निर्माण हुआ। यह काम पूरा होते ही रेल अधिकारियों की नजर यहां से सीधे सामने गई तो वे विश्वास नहीं कर पाए कि यह वही पुराना खारवा-चांदा रेलवे स्टेशन है।
पहले रेलवे स्टेशन के पीछे की तरफ तालाब दिखाई ही नहीं देता था, जो अब स्टेशन भवन के ठीक सामने दिखता है। स्टेशन के सामने ही छोटी सी पहाड़ी पर चढ़ जाएं तो आगे तालाब का फैला पेटा दूर-दूर तक दिखाई दे मन को सुकून पहुंचाता है। तालाब के उस पार राजस्थान स्टेट माइंस एण्ड मिनरल्स की झामर कोटड़ा की बड़ी खदान दिखाई देती है। यहां से रॉक फास्फेट का खनन होता है। रेल अधिकारियों का मानना है कि रेलगाड़ियों का परिचालन शुरू होने पर यहां आने वाले रेलयात्रियों को यह खूबसूरत नजारा स्टेशन पर रुकने व कुछ देर समय बिताने को मजबूर करेगा।
इतना ही नहीं, उदयपुर शहर से सड़क मार्ग से खारवा-चांदा तक पहुंचने में भी हरियाली के दर्शन होते हैं। रास्ते की सर्पीली सडक़ और चारों तरफ छाई घनी हरीतिमा मन को सुकून देती है। उदयपुर से बांसवाड़ा रोड पकड़ते हैं तो केवड़ा तक शानदार स्टेट हाइवे और उसके बाद केवड़ा से करीब सात किलोमीटर सिंगल सर्पीली सडक़ से गुजरना शानदार सफर बनता है। इसी तरह दूसरे रास्ते उमरड़ा से आगे निकलने के बाद से खारवा चांदा रेलवे स्टेशन तक पूरा रास्ता पहाडिय़ों के बीच से गुजरता है। झामरकोटड़ा की तरफ से भी आते हैं तो रास्ता जंगल से होकर ही निकलता है।
खारवा चांदा से केवड़ा मार्ग पर रेलवे की खारवा पुल अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। नई ब्रॉडगेज लाइन दूसरी तरफ से निकलने के बाद खारवा पुल के ऊपर से रेललाइन हटा दी गई। अब वहां दोनों तरफ की ऊंची दीवार राहगीरों को अपना इतिहास बताने को काफी है। उदयपुर-अहमदाबाद नई रेललाइन शुरू होने पर रेलगाड़ी के अलावा तीन तरफ से इस स्टेशन पर पहुंचा जा सकेगा। इनमें झामर कोटड़ा से करीब 9 किलोमीटर, केवड़ा से करीब 7 किलोमीटर और उदयपुर से उमरड़ा, खारवा होकर करीब 30 किलोमीटर का फासला तय करना होगा।