नई दिल्ली, 16 सितम्बर (हि.स.)। केंद्र सरकार ने संयुक्त अरब अमीरात और दक्षिण कोरिया से 2.5 अरब डॉलर से अधिक के दो हथियार आयात अनुबंधों को अंतिम चरण में रद्द कर दिया है। यानी अब यूएई से सीबीक्यू कार्बाइन और दक्षिण कोरिया से सेल्फ प्रोपेल्ड एयर डिफेंस गन मिसाइल सिस्टम नहीं खरीदा जायेगा। अब सेनाओं के लिए इन हथियारों का निर्माण भारत में ही ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया जायेगा। भारत की नई पहल ‘आत्म निर्भर भारत’ को ध्यान में रखते हुए अब इस अनुबंध को ही समाप्त कर दिया गया है।
भारतीय सेना की जरूरतों को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात से सीबीक्यू कार्बाइन और दक्षिण कोरिया से सेल्फ प्रोपेल्ड एयर डिफेंस गन मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए 2.5 अरब डॉलर से अधिक का सौदा तय किया गया था। यूएई की हथियार निर्माता कंपनी काराकल को सेना के लिए 93,895 क्लोज क्वार्टर कार्बाइन (सीबीक्यू) की आपूर्ति के लिए 2018 में शॉर्टलिस्ट किया गया था। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस कंपनी ने फास्ट ट्रैक खरीद के लिए सबसे कम बोली लगाई थी। इसी तरह दक्षिण कोरिया की कंपनी हनवा को सेल्फ प्रोपेल्ड एयर डिफेंस गन मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था। दोनों सौदे लगभग आखिरी चरण में थे लेकिन इसी बीच रक्षा मंत्रालय ने ‘आत्म निर्भर भारत’ के तहत रक्षा उद्योग को मजबूत करने के लिए हथियारों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यानी अब सेनाओं के लिए हथियारों का निर्माण भारत में ही ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया जायेगा।
इसी क्रम में रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में 2.5 अरब डॉलर से अधिक के दोनों आयात अनुबंधों को रद्द करने का निर्णय लिया गया। सूत्रों ने बताया कि बैठक में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा कि घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अब इन कॉन्ट्रैक्ट्स को ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत रखा जाएगा। सेना को खरीदी जाने वाली कार्बाइन के एक चौथाई हिस्से की तत्काल जरूरत है, इसलिए फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के तहत यह प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जाएगी। सेल्फ प्रोपेल्ड एयर डिफेंस गन मिसाइल सिस्टम के मामले में भारतीय सेना चाहती है कि बंदूकों की पांच रेजिमेंट हों, जिन्हें अग्रिम पंक्ति की सेनाओं के साथ तैनात किया जा सके। दरअसल इन सौदों पर रूस ने विरोध जताया था, क्योंकि उस निविदा प्रक्रिया में रूस को बाहर करके कोरियाई कंपनी को शॉर्टलिस्ट किया गया था।
दरअसल इन सौदों को हासिल करने के लिए रूस ने भी उन्नत तुंगुस्का एम 1 और पंटिसिर मिसाइल सिस्टम-104 सिस्टम के लिए बोली लगाई थी लेकिन इनकी गुणवत्ता ख़राब बताते हुए सेना के लायक नहीं बताया गया था। इसके बाद रक्षा मंत्रालय में अधिग्रहण मामलों की निगरानी के लिए बनी समिति ने रूस से औपचारिक शिकायत की थी। इस समिति ने अपनी जांच में यह सौदा अनुचित पाया और सिफारिश की है कि रूसियों को अपना सिस्टम सही साबित करने का एक और मौका दिया जाए। समिति का मानना है कि पुन: परीक्षण का मौका दिए जाने से नई मिसाल कायम होगी।
यह सिफारिश अनुबंध की बातचीत में तेजी लाने के लिए थी लेकिन इस बीच रक्षा मंत्रालय ने ‘आत्म निर्भर भारत’ के तहत रक्षा उद्योग को मजबूत करने के लिए हथियारों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यानी अब सेनाओं के लिए हथियारों का निर्माण भारत में ही ‘मेक इन इंडिया’ के तहत किया जायेगा। इसलिए नई योजनाओं को ध्यान में रखते हुए अब इस अनुबंध को ही समाप्त कर दिया गया है।