मिले दस साल बाद , कम नहीं यह

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दुनिया की दो महाशक्तियों के के बीच बातचीत 2011 यानी 10 साल बाद हुई है। यह ऐसे समय पर हुई है, जब माना जाता है कि दोनों के रिश्ते अबतक के सबसे खराब दौर में हैं। बातचीत के पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इसके सकारात्मक होने की उम्मीद जगायी थी, जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे महाशक्तियों के बीच वार्ता कहा था। बातचीत अभी पिछली रात खत्म ही हुई है। रूसी राष्ट्रपति ने बातचीत को ‘बेहद रचनात्मक’ कहा, तो राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि दोनों के बीच बैठक सकारात्मक रही। बहरहाल, परिणाम के तौर पर दोनों ने एक-दूसरे के निष्कासित दूतों को फिर अपने यहां बुलाने पर सहमति जतायी है। दो देशों के बीच रिश्तों की यह पहली और बड़ी शर्त होती है। सहमति शायद अन्य मुद्दों पर भी बनी है, जिसकी जानकारी निकट भविष्य में होगी। फिलहाल संपूर्ण विवरण नहीं है। तो क्या मान लें कि दोनों के बीच सम्बंधों पर पड़ी बर्फ तेजी से पिघलेगी।

दोनों राष्ट्रपतियों की लंबी बातचीत के बाद जो प्रेस कांफ्रेंस हुई, उनसे बातचीत के निहितार्थ निकाले जा सकते हैं। दोनों के बयानों के विश्लेषण किए जाएंगे और उनसे भी बातें निकलेंगी। सबसे बड़ी बात है कि दोनों साइबर सुरक्षा पर सहमत दिख रहे हैं। अमल कैसे करेंगे, अभी पता नहीं। यह भी कम नहीं है कि दोनों इसे महसूस करते हैं। आखिर बातचीत के पहले राष्ट्रपति पुतिन के विदेश मामलों के सलाहकार यूरी यूशाकोव ने कहा ही था कि उम्मीदें ज्यादा नहीं हैं। यूशाकोव के मुताबिक, ‘‘द्विपक्षीय संबंध जब बहुत बुरे दौर में हैं, तब इस तरह की पहली बैठक हो रही है। दोनों पक्ष महसूस करते हैं कि लंबित मुद्दों पर बातचीत शुरू करने की जरूरत है।”

सच तो यह है कि दोनों राष्ट्रपतियों के अपने पूर्व के रिश्ते भी बातचीत में सहायक बने। करीब 10 साल पहले जब दोनों की मुलाकात हुई थी, पुतिन रूस के प्रधानमंत्री और बाइडन अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे। बातचीत के बाद पुतिन ने माना भी है कि बाइडन पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप से काफी अलग हैं। उन्होंने बाइडेन की बहुत तारीफ की और उन्हें अनुभवी राजनेता बताया।

बातचीत में विपरीत पक्षों की सकारात्मक दृष्टि बहुत मायने रखती है। इसके बावजूद दुश्मनी के स्तर तक पहुंच चुके हालात एकदम सामान्य हो जाएंगे, यह दावा नहीं किया जा सकता। साइबर मामले में सहमति के स्वर इस बात पर निर्भर करेंगे कि सम्बंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को किस रूप में लिया जाता है। अमेरिका ने 16 ऐसे साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर की पहचान की है। राष्ट्रपति बाइडन कहते हैं कि सैद्धांतिक सहमति और इसपर कदम उठाए जाने में फर्क है। हमारी समझ से भी बाइडन ठीक हो सकते हैं, क्योंकि इस बातचीत से टेक्सास में अमेरिकी तेल पाइपलाइन सिस्टम पर हालिया हमले और रूस के हेल्थ सिस्टम पर हमले का हल निकला अथवा नहीं, देखा जाना बाकी है।

सच यह है कि अमेरिका अपने प्रतिद्वंदंवी रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने, अमेरिकी चुनावों में कथित दखल देने और एलेक्सी नवेलनी को गिरफ्तार करने और यातना देने जैसे मसलों घेरता रहा है। रूस भी अमेरिका के कैपिटल हिल्स वाली हिंसा को लोकतंत्र पर दाग ठहराता है। रूसी अधिकारियों पर अमेरिकी प्रतिबंध और उधर अमेरिका के दो पूर्व नौसैनिकों के रूस की जेल में बंद रखने के मामले भी किन्ही हल की उम्मीद में हैं।

नहीं लगता कि इन सभी मुद्दों पर कोई बात बनी है। दो दौर में लंबी बातचीत हुई है। दोनों ओर से पांच-पांच वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, तो उम्मीद की जाती है कि सामरिक स्थिरता, जलवायु परिवर्तन, कोरोना महामारी और आर्कटिक जैसे विषय भी शामिल रहे होंगे। पुतिन और बाइडन ने यूक्रेन, सीरिया और लीबिया जैसे क्षेत्रीय संकटों पर भी चर्चा की होगी। साथ ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम और अफगानिस्तान पर भी मंथन हुआ होगा।

आप सोच रहे होंगे कि इतने अधिक और गंभीर मसले क्या किसी एक बैठक में हल हो सकते हैं। यह हम भी नहीं मानते। फिर भी 10 साल बाद मिलना मायने तो रखता ही है। जिस जेनेवा शहर में यह शिखर वार्ता हुई है, वह भी एक बड़ा प्रतीक है। शीतयुद्ध के बाद दोनों में 1985 में यहां पहली बार तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचोफ की मुलाकात हुई थी। ऐसे जेवेना शहर से एकमुश्त न सही, हल निकलने की शुरुआत तो हो ही सकती है। नहीं हुई तो दोनों नेता एकबार फिर खुद को शांति के लिए कोशिश करने वाला और दूसरे को बाधक बताने का क्रम जारी रखेंगे।

 


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