ट्रंप का कश्मीर मसले पर बेसुरा राग

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डोनाल्ड ट्रंप कश्मीर मसले पर क्यों दिलचस्पी दिखा रहे हैं यह किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा। जबकि, विदेश मंत्रालय ने खंडन किया है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा।



कश्मीर मसले पर जब फैसले की घड़ी बिल्कुल नजदीक हो, उसी वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता के लिए बेसुरा राग अलापने के सियासी मायने निकाले जा सकते हैं। उनका कश्मीर पर एक सप्ताह में दिया यह दूसरा बयान है। पहला बयान बीते 24 जुलाई को दिया था, जिसमें सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेकर कहा था कि उन्होंने कश्मीर में मध्यस्थता के लिए उन्हें कहा था। डोनाल्ड ट्रंप कश्मीर मसले पर क्यों दिलचस्पी दिखा रहे हैं यह किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा। जबकि, विदेश मंत्रालय ने खंडन किया है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आदतन झूठ बालने के आदी हैं, इस बात का खुलासा उनके देश की मीडिया ने भी विगत दिनों किया था। डोनाल्ड ट्रंप ने जबसे अमेरिका की कमान संभाली है तब से अबतक करीब हजार बार बड़े-बड़े झूठ बोल चुके हैं। इस लिहाज से कश्मीर मसले पर मोदी का बेवजह नाम लेना भी उसी कड़ी का हिस्सा हो सकता है। कश्मीर भारत का अंदरूनी मसला है, जिसे सुलझाने के संकेत मिल चुके हैं। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दखल देना ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना‘ जैसा होगा। दिल्ली के सियासी गलियारों में जम्मू-कश्मीर को लेकर चर्चाएं गर्म हैं। गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में लगातार बैठकें की जा रही हैं। हालांकि अधिकृत खबरें बाहर नहीं आई हैं। सूत्र गवाही देते हैं कि घाटी में बदलाव का वक्त नजदीक है। केंद्र सरकार में जिस तरह की हलचलें हैं, उससे साफ है कि कश्मीर में काले बादलों के छंटने का वक्त आ गया है। कश्मीर को ध्यान में रखकर, एक देश-एक कानून के तहत केंद्र सरकार ने हर तरह की बिसात बिछा दी है। पिछले दिनों एनएसए प्रमुख अजीत डोभाल के जम्मू-कश्मीर दौरे के बाद वहां दस हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती के बाद से लगने लगा है कि कुछ बड़ा होने वाला है। घाटी से अमन की खुशबू जल्द बाहर निकलेगी, इसके इंतजार में पूरा देश है। सूत्रों से पता चला है कि पंद्रह अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री बड़ा एलान करने वाले हैं।
केंद्र सरकार की अव्वल प्राथमिकताओं में कश्मीर मसला सुलझाना है, जिसके लिए युद्धस्तर पर काम किया भी जा रहा है। ऐसे में ट्रंप का मध्यस्थता के लिए बार-बार राग अलापना बेवजह का दखल देने जैसा है। संभावनाएं ऐसी भी जताई गई हैं, कहीं इसके पीछे पाकिस्तान का कोई दवाब तो नहीं? क्योंकि हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका होकर आए हैं, हो सकता हैं उन्होंने कान भरे हों। क्योंकि इमरान खान अब ठीक से समझ गए हैं कि कश्मीर मसला उनके हाथ से निकल गया है। भारत से लड़ना अब उनके बूते की बात नहीं? इसलिए शायद उन्होंने मध्यस्थता के लिए अमरिकी प्रेसिडेंट को बीच में अड़ाया हो। खैर, ट्रंप के बेतर्क राग का विदेश मंत्री एस जयशंकर ने करारा जवाब दे दिया है। विदेश मंत्री ने ट्रम्प द्वारा कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करने की पेशकश को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए दोहराया है कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है, इसमें तीसरे का कोई काम नहीं। जम्मू-कश्मीर मसले पर केंद्र सरकार की नीति एकदम पानी की तरह साफ है, कश्मीर पर किसी भी तरह की चर्चा मात्र भारत और पाकिस्तान के बीच ही हो सकती है।
सरकार का जम्मू-कश्मीर को लेकर क्या प्लान है, फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया गया। सबकुछ गुप्त तरीके से किया जा रहा है। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 35ए और धारा 370 को हटाने को लेकर पूरे देश में विगत दिनों से चर्चाएं हैं, जबकि केंद्र इससे लगातार इनकार कर रहा है। इसको लेकर पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को भी सार्वजनिक बयान देना पड़ा था। लेकिन कहते हैं कि लाग लगती है तो धुंआ अपने आप उठने लगता है। शुक्रवार को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में तैनात सभी सैनिकों की छुट्टियों को रद्द करने का भी फरमान जारी कर दिया। साथ ही जो सैनिक छुट्टी लेकर अपने घरों को गए हैं, उन्हें भी तुरंत वापस आने का आदेश दिया गया। इतनी हलचलों के बाद सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुछ होने वाला है।
देखिए, कश्मीर में अनुच्छेद 35ए और धारा 370 हटाने की अटकलों को हवा पुलिस के एक ऑर्डर से मिली है, जिसमें श्रीनगर पुलिस की तरफ से आदेश जारी किया गया है कि श्रीनगर के पांच जोनल एसपी अपने इलाके की मस्जिदों और उनकी मैनेजमेंट कमेटियों की लिस्ट मुहैया कराएं। उस आदेख के बाद से ही स्थानीय लोगों में भंयकर नाराजगी है। वहीं महबूबा मुफ्ती ने इसे धार्मिल मामलों में सरकार का जबरदस्ती हस्तक्षेप बताकर राजनैतिक माहौल गर्मा दिया है। इसके अलावा भाजपा जम्मू-कश्मीर में चुनाव के लिए भी एक्टिव मोड में है। जम्मू-कश्मीर कोर ग्रुप के साथ दिल्ली दफ्तर में लगातार बैठकों का दौर भी जारी है। भाजपा आम चुनाव में देश की जनता से कश्मीर मसले पर किए वादे को किसी सूरत में पूरा करना चाहती है। भाजपा की जम्मू-कश्मीर में लगातार बढ़ती मौजूदगी से वहां दशकों से जमे जिहादपरस्त सियासी दलों की जमीन भी खिसकने लगी है। हुर्रियत नेता तो पहले ही ठिकाने लगाए जा चुके हैं। कुछ बचे हैं तो खाली कारतूस की भांति हैं। नेशनल कांफ्रेस के नेता भी बिलबिला उठे हैं। तभी पिछले सप्ताह फारूक अब्दुल्ला अपने बेटे उमर अब्दुल्ला के साथ प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली पहुंचे। मीटिंग करके जब दोनों बाहर निकले तो मुंह लटके हुए थे, बिना मीडिया से बात किए चलते बने। कश्मीरी नेताओं में मोदी को लेकर खास तरह का भय देखा जा रहा है।

 


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