संकट में घिरे कांग्रेेेस के संकटमोचक डीके शिवकुमार

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डीके शिवकुमार को एचडी देवेगौड़ा परिवार के तीन सदस्यों को हराने का अनूठा गौरव भी हासिल है।



बेंगलुरु, 31 अगस्त (हि.स.)। डीकेसी के नाम से लोकप्रिय कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक और पूर्व मंत्री डोड्डालहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार (डीके शिवकुमार) अपने राजनीतिक जीवन के बड़े संकट में घिर गए हैं। वह पहले कांग्रेस पार्टी के बचाव में आने के लिए सुर्खियों में रहते थे लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में वह खुद मुश्किलों हैं।
घटनाओं का वर्तमान में उलझा हुआ मोड़ रातोंरात पैदा नहीं हुआ है। वह लंबे समय से आयकर और अन्य कर-संबंधित विभागों के रडार पर थे और कुछ साल पहले भी वह ऐसे ही फंस गये थे। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की हार को सुनिश्चित करने के साथ उनका नाम भी विवादों और कथित घोटालों में आ गया है। यदि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंत्री जनार्दन रेड्डी का नाम बेल्लारी में अवैध खनन रूप में जाना जाता है, तो बेंगलुरु ग्रामीण जिले में ऐसा ही कुछ डीके शिवकुमार के साथ भी है। कनकपुरा और पूरे बेंगलुरु ग्रामीण जिले में जमीनी स्थिति, बेल्लारी जिले में अनधिकृत खनन की तुलना में बेहतर नहीं है।
यदि बेल्लारी जिला विशाल लौह अयस्क से धनी है तो ग्रेनाइट पत्थरों के लिए कनकपुरा क्षेत्र प्रसिद्ध है। कुछ दशक पहले किसानों ने अपने खेतों में खुदाई करने की अनुमति दी थी और कुछ समय में यह गतिविधि अरबों रुपये के व्यापार में विकसित हो गई। हालांकि डीके शिवकुमार और उनके छोटे भाई संसद डीके सुरेश ने इन बातों को बेबुनियाद बताया है। जबकि सभी व्यावसायिक उपक्रम, निवेश और वाणिज्यिक गतिविधियों से डीके भाइयों की किसी न किसी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कनेक्शन है।
डीके सुरेश के वर्ष 2013 में बेंगलुरु ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए बड़े भाई द्वारा चुने जाने तक अपने बड़े भाई के चुनावी मोर्चे पर लगातार आगे बढ़ते रहे। डीके तीन बार संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार डीके भाइयों के लिए चुनाव जीतना बच्चे के खेल की तरह है। वे अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने में महारत हासिल कर चुके हैं। पूरे जिले में स्थानीय जनता दल-सेक्युलर (जेडीएस) के नेताओं की लिस्ट में उनका मुकाबला करने के लिए कोई प्रबल दावेदार नहीं है।
उनकी जीत का सिलसिला 1989 से तब शुरू हुआ जब डीके शिवकुमार ने सातनूरु निर्वाचन क्षेत्र से जनता पार्टी के एचडी देवेगौड़ा को झटका दिया। एचडी देवेगौड़ा 1989 के आम चुनावों के दौरान हासन जिले में अपने घरेलू मैदान होलेनरसीपुरा में भी हार गये थे। सातनूरु निर्वाचन क्षेत्र में शिवकुमार की नैया का एचडी देवेगौड़ा और उनके परिवार के खिलाफ प्रतिशोध का मार्ग प्रशस्त किया, जिन्होंने उस समय तक राज्य की राजनीति में एक प्रमुख स्थान पर कब्जा कर लिया था। 1989 के बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बाद के सभी चुनावों में जीत हासिल की। उन्होंने एक परिवार के गढ़ के रूप में सातनूरु के कुछ हिस्सों के विलय के बाद कनकपुरा विधानसभा क्षेत्र का विकास किया। 1999 में डीके शिवकुमार ने एचडी कुमारस्वामी को सातनूरु और पीजीआर सिंधिया को हराया, जो 1983 से लगातार निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
डीके शिवकुमार को एचडी देवेगौड़ा परिवार के तीन सदस्यों को हराने का अनूठा गौरव भी हासिल है। 1989 के दौरान सातनूरु विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में एचडी देवेगौड़ा के बाद उन्होंने 2004 में कनकपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पत्रकार और राजनीति में नौसिखिया तेजस्विनी रमेश के माध्यम से देवेगौड़ा की हार सुनिश्चित की। डीके बंधुओं ने सातनूरु क्षेत्र में एचडी कुमारस्वामी की पत्नी अनीता कुमारस्वामी को भी मात दी थी। राजनीतिक यात्रा के दौरान उन्होंने शहरी विकास, ऊर्जा, प्रमुख सिंचाई और चिकित्सा शिक्षा जैसे विभागों को संभाला। हालांकि, उनके सामने बड़ी मुसीबत 02 अगस्त,2017 को आयकर विभाग के अलग-अलग छापे मारने से हुई। ये छापेमारी तब हुई जब वह बिड़दी के बाहरी इलाके ईगलटन रिसॉर्ट में गुजरात कांग्रेस के 44 विधायकों की मेजबानी कर रहे थे।राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल को हार से बचाने के लिए गुजरात कांग्रेस के विधायकों को विशेष रूप से शहर में लाकर रखा था। उन्होंने 2001 में महाराष्ट्र कांग्रेस के विधायकों को शरण देकर इसी तरह की उपलब्धि हासिल की थी, जब तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर संकट पैदा हो गया था। तब उन्होंने बॉलीवुड निर्माता के स्वामित्व वाले एक लक्जरी रिसॉर्ट में उन्हें आतिथ्य प्रदान किया था। इन कार्यों से पार्टी आलाकमान के समक्ष उनका दबदबा बढ़ गया और इस तरह खुद को एक प्रभावशाली नेता के रूप में विकसित किया। ऐसी सभी रणनीति और वक्तृत्व कौशल कानून-पालन करने वाली एजेंसियों पर कोई लाभ या प्रभाव नहीं डालते हैं। सत्ता की राजनीति में अपनी पारी शुरू करने के लिए, वह 1990 से 1992 तक एस. बंगारप्पा के नेतृत्व में जेल और होमगार्ड मंत्री बने। अब यह समय है कि वह वहां जेल मंत्री के रूप में प्रवेश नहीं करेंगे बल्कि कई करोड़ों की धनराशि के अपराधों में लिप्त होने के आरोप में जाएंगे।

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