नई दिल्ली, 30 जुलाई (हि.स.)। मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने केे लिए संसद ने इतिहास रचते हुए मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक, 2019 को अपनी मंजूरी दे दी है। मुसलमानों में त्वरित तीन बार दोहराकर तलाक देने की प्रथा तलाक-ए-बिद्दत पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया ऐतिहासिक विधेयक को राज्यसभा ने 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया। राज्यसभा में संख्या बल पक्ष में नहीं होने के बावजूद विधेयक का पारित होना मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। लोकसभा विधेयक को पिछले गुरुवार को ही पारित कर चुकी है। यह विधेयक इस संबंध में लाए गए अध्यादेश का स्थान लेगा।
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 विधेयक पर साढ़े सात घंटे चली चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक विरोधी विधेयक मुस्लिम महिलाओं को इन्साफ दिलाने के लिए लाया गया है तथा इसकी मंशा किसी मजहब विशेष को निशाना बनाना नहीं है। उन्होंने कहा कि नए कानून से सबसे अधिक फ़ायदा गरीब मुस्लिम महिलाओं को होगा जो अधितर मामलों में इस कुप्रथा का शिकार बनती हैं।
तीन तलाक विधेयक पर सदन में हुई चर्चा का उत्तर देते हुए प्रसाद ने कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद के इस आरोप का खंडन किया कि इस विधेयक के जरिये मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम देशवासियों को मजहब के हिसाब से नहीं गिनते, हमारे लिए सब भारत माता की संतान हैं।
उन्होंने कहा कि विपक्ष विधेयक के गुण दोषों पर विचार करने की बजाए इसका विरोध करने में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि शाह बानो के मामले में कांग्रेस सरकार ने एक रुख अपनाया है जिसके बाद से उसकी सरकार कभी बहुमत में नहीं रही। कांग्रेस पार्टी को इस पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह राजीव गांधी सरकार के नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री हैं और मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिलाकर रहेंगे।
विपक्ष के प्रश्नों का उत्तर देते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि संसद को कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि विपक्ष तीन तलाक को आपराधिक बनाए जाने का विरोध कर रहा है, लेकिन हिन्दुओं में दहेज कानूनों में जेल होती है। दहेज कानूनों पर चर्चा के दौरान तो किसी ने यह मुद्दा नहीं उठाया कि पति को दहेज मामले में जेल हो जाएगी तो गुजारा-भत्ता कैसे मिलेगा। उन्होंने कहा कि आपराधिक बनाए जाने के पीछे कारण मुस्लिम पतियों को मनमाने ढंग से पत्नी को तलाक देने से सजा का डर दिखाकर रोकना है।
कानून मंत्री ने कहा कि यह नारी न्याय, नारी गरिमा और नारी सम्मान का विषय है, जिस पर सदन के सभी सदस्यों को एकजुट होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट एकसाथ तीन बार बोलकर तलाक देने की तलाक-ए-बिद्दत प्रथा को समाप्त कर चुका है, फिर भी मुस्लिम महिला इसका शिकार हो रही हैं। अबतक त्वरित तीन तलाक देने के 574 मामले सामने आ चुके हैं।
प्रसाद ने कहा कि उनकी सरकार ने विपक्ष की मांग पर कौन मामला दर्ज कर सकता है उसे तय कर दिया है। इसके अलावा कोर्ट को महिला पक्ष सुनकर जमानत देने का अधिकार दिया गया है। आपसी बातचीत से मामला सुलझता है तो उसका भी प्रावधान विधेयक में किया गया है।
तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) संबंधी विधेयक लोकसभा में दो बार पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के चलते अटकता रहा है। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार तीन तलाक संज्ञेय अपराध है। इस संबंध में पीड़ित महिला या उसका कोई रिश्तेदार पुलिस में रिपोर्ट लिखा सकता है। दोषी पाये जाने पर पति को तीन साल तक की सजा हो सकती है। पति-पत्नी से बातचीत कर मजिस्ट्रेट मामले में समझौता करा सकता है और पत्नी का पक्ष सुनने के बाद पति को जमानत दी जा सकती है।