छत्तीसगढ़ :नक्सली दहशत से बस्तर छोड़ चुके आदिवासियों की हो रही घर वापसी
रायपुर /जगदलपुर, 17 अगस्त (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सली दहशत के चलते दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर चुके 122 आदिवासी परिवारों की पुन: घर वापसी हो रही है।
सुकमा जिले के मरईगुडा एसडीओपी आर.के. बर्मन ने बताया कि कुछ साल पूर्व बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ सरकार ने सलवा जुडूम आंदोलन शुरू किया था, जिसके बाद नक्सलियों का आतंक लगातार क्षेत्र में बढ़ गया और अशांति फैल गई। उस समय अधिकांश आदिवासी परिवार बस्तर छोड़कर आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना की ओर जीवन बसर करने चले गए थे। पड़ोसी राज्यों में चले जाने वाले कई आदिवासी परिवार अब धीरे-धीरे बस्तर लौटने लगे हैं।
जानकारी के अनुसार आंध्र के लक्ष्मीपुरम के जंगलों में रह रहे 122 आदिवासी परिवारों ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मांग की है कि उन्हें बस्तर में उनकी जमीन के बदले सुकमा जिले में कहीं भी सड़क के किनारे जमीन दी जाए ताकि वे अपने घर लौट सकें।
आदिवासी परिवारों का कहना है कि वे गांव लौटना तो चाहते हैं परन्तु वहां नक्सली सक्रिय हैं। ऐसे में गांव जाने में खतरा है। ये आदिवासी परिवार सुकमा जिले के अत्यंत नक्सल प्रभावित जगरगुंडा, चिंतागुफा, गोलापल्ली, मरईगुड़ा, पामेड़, बीजापुर जिले के थालागुड़ेम आदि सुदूर इलाकों के हैं। आदिवासी परिवार की कुल सदस्य संख्या 1028 है।
इस संबंध में स्वयंसेवी संस्था सीजी नेट स्वरा के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी ने जानकारी दी कि आदिवासी परिवार वापस तो आना चाहते हैं परन्तु वे बेहद डरे हुए हैं। वनाधिकार कानून में जमीन के बदले दूसरी जमीन का प्रावधान है। इसके तहत वनवासियों को सरकार दूसरी जगह जमीन देकर मदद कर सकती है। स्वयंसेवी संस्था सीजी नेट स्वरा की मदद से कुछ आदिवासी परिवार लौट चुके हैं और इन्हें कोंटा विकासखंड के मरईगुड़ा में शरण दी गई है।
आदिवासी परिवारों का कहना है कि वे गांव लौटना तो चाहते हैं परन्तु वहां नक्सली सक्रिय हैं। ऐसे में गांव जाने में खतरा है। ये आदिवासी परिवार सुकमा जिले के अत्यंत नक्सल प्रभावित जगरगुंडा, चिंतागुफा, गोलापल्ली, मरईगुड़ा, पामेड़, बीजापुर जिले के थालागुड़ेम आदि सुदूर इलाकों के हैं। आदिवासी परिवार की कुल सदस्य संख्या 1028 है।
इस संबंध में स्वयंसेवी संस्था सीजी नेट स्वरा के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी ने जानकारी दी कि आदिवासी परिवार वापस तो आना चाहते हैं परन्तु वे बेहद डरे हुए हैं। वनाधिकार कानून में जमीन के बदले दूसरी जमीन का प्रावधान है। इसके तहत वनवासियों को सरकार दूसरी जगह जमीन देकर मदद कर सकती है। स्वयंसेवी संस्था सीजी नेट स्वरा की मदद से कुछ आदिवासी परिवार लौट चुके हैं और इन्हें कोंटा विकासखंड के मरईगुड़ा में शरण दी गई है।
सलवा जुडूम : सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा के खिलाफ सरकार द्वारा चलाया गया शांति आन्दोलन है। कुछ स्थानीय नेताओं ने नक्सली हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई, जिसमें महेन्द्र कर्मा का नाम प्रमुख है, जिसका नाम सलवा जुडूम पड़ा। 25 मई, 2013 को कांग्रेस के सदस्य महेन्द्र कर्मा की हत्या नक्सलियों ने कर दी।
सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें तो माओवादियों के खिलाफ शुरु हुए सलवा जुडूम के कारण बस्तर के 644 से ज्यादा गांव खाली हो गए। उनकी एक बड़ी आबादी सरकारी शिविरों में रहने के लिये बाध्य हो गई। कई लाख लोग बेघर हो गये। सैकड़ों लोग मारे गए। नक्सलियों से लड़ने के नाम पर शुरू हुए सलवा जुडूम अभियान पर आरोप लगने लगे कि इसके निशाने पर बेकसूर आदिवासी हैं। यह संघर्ष कई सालों तक चला। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम मामले में सरकार की कड़ी आलोचना की। 5 जुलाई, 2011 को सलवा जुडूम को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला सुनाया गया।
राजनीतिक दृष्टिकोण: सलवा जुडूम के बाद बस्तर छोड़ चुके कई आदिवासी परिवारों ने विगत 15 वर्षों में किसी भी प्रकार से पुन: घर वापसी के लिए इच्छा नहीं जताई थी लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता वापसी के साथ वे धीरे-धीरे घर वापसी कर रहे हैं।