सरकार और किसानों के बीच दो मुद्दों पर बनी सहमतिः तोमर

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नई दिल्ली, 30 दिसम्बर (हि.स.)। केंद्र सरकार और आंदोलित किसान संगठनों के नेताओं के बीच कृषि कानूनों को लेकर जारी गतिरोध समाप्त करने की दिशा में बुधवार को एक सकारात्मक नतीजा सामने आया जब दोनों पक्षों ने आंदोलन से जुड़े दो मुद्दों पर सहमति बना ली। इसके साथ ही अगली बैठक चार जनवरी को आयोजित करने का फैसला किया गया।

विज्ञान भवन में आयोजित इस वार्ता में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल व वाणिज्य राज्यमंत्री सोम प्रकाश और किसान नेताओं के बीच पराली जलाने से जुड़े पर्यावरण संबंधी मुद्दे और बिजली संशोधन विधेयक पर सहमति बनी। तकरीबन पांच घंटे से ज्यादा चली बैठक में सरकार ने पर्यावरण संबंधी मुद्दे के समाधान के लिए अध्यादेश जारी करने का भरोसा दिलाया। इसी तरह, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लिए जाने और सिंचाई के लिए बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी जारी रखने का भी आश्वासन दिया गया है। कृषि मंत्री तोमर ने बैठक के बाद कहा कि बातचीत से आधे मुद्दे सुलझा लिए गए हैं।

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि चार में से दो मुद्दों पर पर सहमति बनी है। हालांकि, किसान संगठनों दोहराया कि उनकी मांगे पूरी होने तक शांतिपूर्ण धरना जारी रहेगा। किसान नेताओं ने कहा कि आज की बातचीत में सरकार का रवैया सकारात्मक रहा।

वहीं कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बातचीत जारी रहेगी तथा इस संबंध में सरकार लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है। तोमर ने कहा कि सरकार किसानों के प्रति पूरी ईमानदारी और संवेदना रखती है। उन्होंने किसान नेताओं से आग्रह किया कि वह धरने पर बैठे बुजुर्ग महिलाओं, बच्चों को वापस घर भेजें। कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों की मांगों के संदर्भ में व्यापक चर्चा के लिए सरकार एक समिति बनाने के पक्ष में है जिस पर आज की बैठक में विचार किया गया।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पर्यावरण और वायु प्रदूषण की समस्या के मद्देनजर पंजाब, हरियाणा में पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए कड़ा कानून बनाया गया है जिसमें लंबी सजा और जुर्माने का प्रावधान है। किसान संगठन इस पर्यावरण कानून का विरोध कर रहे हैं।

राजधानी के चारों ओर राजमार्गों पर पिछले 35 दिनों से जारी किसानों के धरने की मुख्य मांग तीन नए कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने की है। सरकार की ओर से कई बार कहा गया है कि वह कानूनों को वापस नहीं लेगी, लेकिन किसानों की आपत्तियों के मद्देनजर इनमें संशोधन करने पर खुले मन से विचार करेगी।

 


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