बिहार के पूर्व डीजीपी बोले, ‘अब मैं ठाकुरजी के हाथ की बंशी हूं’

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मथुरा, 26 जुलाई (हि.स.)। श्रावण मास के पहले दिन भागवत कथावाचक बने बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने सोमवार को दूसरे दिन कहा कि ‘अब मैं ठाकुरजी के हाथ की बंशी हो गया हूं। ब्राह्मण परिवार से होने के नाते मेरी दिलचस्पी भगवान में रही है और यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है। औपचारिक रूप से यह पहली कथा है।

गौरतलब है कि वृंदावन के रूक्मिणी बिहार स्थित पाराशर पीठ में आयोजित भागवत कथा के वाचक बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय बने हैं जो एक नए रूप में दिखाई दे रहे हैं। उनके द्वारा बांची जा रही भागवत कथा का रसपान लेने के लिए रविवार केंद्रीय राज्यमंत्री अश्वनी चौबे और उत्तर प्रदेश श्रम कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुनील भराला पहुंचे। उन्होंने भागवत ब्यास गद्दी पर बैठे गुप्तेश्वर पांडेय को तिलक लगाया। इसके बाद भागवत कथा सुनी।

पत्रकारों से रूबरू होते हुए सुर्खियों में रहे बिहार के सेवानिवृत्त डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने सोमवार को कहा कि राजनीति के लिए जो गुण होने चाहिए उनमें उसका अभाव है। अध्यात्म के गुण उन्हें बचपन से मिले हैं, अब उन्हें ही अपने बाकी जीवन का लक्ष्य बनाया है। उन्होंने बताया कि उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। इससे सनातनी परिवेश में रहने का अनुभव शुरू से ही है। अयोध्या से कथा प्रवचन की पूरी शिक्षा दीक्षा लेकर वह आध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं।

पुलिस अधिकारी से आध्यात्मिक रूप में आने के सवाल पर कहा कि आदमी पहले बच्चा होता है, धरती पर आता है, इसके बाद नौजवान होने के बाद उसकी रुचि और प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। वृद्ध होने पर तो उसकी प्राथमिकताएं, जिम्मेदारी बदल जाती है। पुलिस सफल पदाधिकारी रहते 35 वर्ष तक देश और बिहार की सेवा की।

राजनीति में जाने के सवाल पर पांडेय ने कहा कि राजनीति में तो मैं जा ही नहीं पाया, मेरा प्रवेश ही नहीं हुआ। ये अच्छा भी है। चूंकि राजनीति सबके बस की बात नहीं है। राजनीति में धीरज, संयम, त्याग, तपस्या, सहनशक्ति और प्रतीक्षा की जरूरत है लेकिन ये सब मेरे अंदर नहीं थी। अब ठाकुरजी की शरण में हैं। ठाकुरजी का गुणगान करेंगे, जिसकी शुरुआत वृंदावन श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली से हमने कर दी है।


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