देश में कम उम्र की हर दसवीं मां उत्तर प्रदेश से

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उप्र में किशोरियों के गर्भवती होने के बढ़ रहे मामले



लखनऊ, 27 जून (हि.स.)। हालांकि उत्तर प्रदेश में बाल विवाह के आंकड़ों में कमी आई है लेकिन किशोरियों के गर्भवती होने के आंकड़े में इजाफा हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आज भी सरकार या समाज के जरिए कम उम्र में मां बनने की घटनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि भारत में जन्म लेने वाले 33.6 प्रतिशत बच्चों की मां कम उम्र की होती हैं।
यूनाइटेड नेशन पापुलेशन फंड के अनुसार 2050 तक भारत की जनसंख्या 170 करोड़ हो जाएगी, जिसमें से 25.1 प्रतिशत बच्चे किशोरी मां के गर्भ से जन्म लेंगे। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) और जनगणना के आंकड़ों के मिलान से यह भी पता चलता है कि इन 45 लाख मामलों में से 4 लाख से अधिक टीन ऐज प्रेगनेन्सी के मामले अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। मतलब ये कि कम उम्र की देश की गर्भवती लड़कियों में लगभग दस फीसदी या हर दसवीं गर्भवती लड़की अकेले उत्तर प्रदेश में है जो देश का सबसे बड़ा राज्य है। इसे अगर जनपदवार देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में किशोरियों के गर्भवती होने के सबसे ज्यादा मामले एटा जिले में 9.2 प्रतिशत, बदायूं में 8.9 प्रतिशत, मथुरा में 8.7 प्रतिशत, ललितपुर में 8.6 प्रतिशत, महामाया नगर में 8.6 प्रतिशत, चित्रकूट में 8.2 प्रतिशत, सीतापुर में 7.3 प्रतिशत, कांशीराम नगर में 7.1 प्रतिशत और श्रावस्ती में 7 प्रतिशत है।
किशोरियों पर मातृत्व का बोझ’ सेमिनार 06 जुलाई को
प्रदेश में किशोरियों के स्वास्थ्य और उनके बेहतर भविष्य के लिए केजीएमयू के कलाम सेंटर में 03 जुलाई को ‘किशोरियों पर मातृत्व का बोझ’ विषय पर सेमिनार होगी। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित एनजीओ सोसायटी फॉर एडवांसमेंट ऑफ विलेज इकोनॉमी (सेव) और वर्ल्ड एसोसिएशन फॉर स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (वास्में) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सेमिनार में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेंगे। प्रदेश के सूचना आयुक्त सुभाष चंद्र सिंह इस सेमिनार में गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में शामिल होंगे। कार्यक्रम में देश भर के जाने माने चिकित्सक, प्रमुख एनजीओ के प्रतिनिधि और स्वास्थ्य निदेशालय के अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर प्रभावी कदम उठाने की दरकार
सेव की सचिव सम्पा बनर्जी ने बताया कि मौजूदा दौर में उत्तर प्रदेश में किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर आईं रिपोर्टों से पता चलता है कि उनके स्वास्थ्य और उनके भविष्य को लेकर तत्काल कोई सार्थक कदम उठाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि उत्तर प्रदेश में किशोरियों के समय से पहले मां बनने का प्रतिशत काफी कम हुआ है लेकिन अभी भी देश में कम उम्र की हर दसवीं मां उत्तर प्रदेश से है। उन्होंने बताया कि सरकार के साथ-साथ जनभागीदारी भी इस काम के लिए जरूरी है। प्रदेश में किशोरियों की समस्या को लेकर जनजागृति की आवश्यकता ज्यादा जरूरी है। इस सेमिनार को राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के महाप्रबंधक डॉ. मनोज, पापुलेशन फंड के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा, नवयुग कन्या महाविद्यालय की डॉ. सृष्टि श्रीवास्तव और केजीएमयू के पूर्व सुपरिटेंडेंट डॉ. यशोधरा प्रदीप भी संबोधित करेंगे। इस सेमिनार में एनजीओ के 200 सक्रिय प्रतिनिधि भी भाग लेंगे।
भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाने के कारण असफल रहा एईपी
भारत में इस समय 9 वर्ष से 19 वर्ष तक के किशोरों की संख्या 25.3 करोड़ है जो जापान, जर्मनी और स्पेन जैसे देशों की कुल जनसंख्या के बराबर है लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए उचित प्रयास नहीं हो रहा है कि वे एक सक्षम और निर्णय लेने में स्वतंत्र व्यस्क बन सकें। हालांकि भारत सरकार ने 2005 में यूनाइटेड नेशंस एजेंसीज के साथ मिलकर एक किशोर शिक्षा कार्यक्रम (एईपी) शुरू किया था। वर्ष 2006 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यक्रम नेशनल एडोलेसेन्ट रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ स्ट्रेटजी (एनएआरएसएचएस) की भी शुरुआत की गई थी लेकिन हमारी संस्कृति से इसके मेल नहीं खाने के कारण यह कार्यक्रम आगे चल नहीं पाया। अब सवाल है कि इतनी बड़ी किशोरों की जनसंख्या के लिए क्या किया जाए ताकि उन्हें एक सक्षम और जिम्मेदार नागरिक बनने का पूरा अवसर मिल सके।
सम्पा बनर्जी कहती हैं इन हालातों में इसे रोकने के लिए कुछ उपाय बहुत जरूरी हैं। उसमें सबसे बड़ी भूमिका पब्लिक हेल्थ सिस्टम की है। भारत और खासकर उत्तर प्रदेश जहां इस समस्या का एक कारण गरीबी भी है, वहां जन स्वास्थ्य केंद्र की भूमिका बढ़ जाती है। अनचाहे गर्भाधान को रोकने के लिए मेडिकल सुविधा और दवाएं तो चाहिए हीं साथ ही किशोरों को उचित परामर्श की भी जरूरत है। सरकार के पास कार्यक्रम है भी। लेकिन उसके बारे में शायद ही किशोरों को कुछ मालूम हो।
आरकेएसके का प्रयोग भी असफल हुआ साबित
अक्टूबर 2014 में केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) की शुरुआत की। यह एक तरह से किशारों के लिए मित्रवत परामर्श केंद्र या स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसा है। इसका फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा रखने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन किन्हीं कारणों से ये क्लीनिक या परामर्श केंद्र लोगों के बीच ठीक से पहुंच नहीं पाएं। सरकारों ने भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ना ही किसी विश्वसनीय एजेंसी से इसका इम्पैक्ट एसेसमेंट कराया गया। देश की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उससे आने वाले दिनों में एक समस्या की तरह देखा जाएगा ही। देर से ही सही सरकारों को भी जनसंख्या नियंत्रण के उपाय करने ही पड़ेंगे। यदि हम किशोरी गर्भाधान को नियंत्रित कर ले तो यही जनसंख्या नियंत्रण में बड़ा योगदान होगा। एक अध्ययन के अनुसार देश में  4.85 करोड़ गर्भाधान अनचाहा होता है उसकी कोई प्लानिंग नहीं होती। यदि सरकार इसी अनचाहे गर्भ पर ही रोक लगाने के लिए मुक्कमल व्यवस्था कर दे तो यह देश के लिए बहुत बड़ी सेवा होगी।

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