नई दिल्ली, 11 जुलाई (हि.स.)।वह 19 गेंदों का खेल टीम इंडिया ही नहीं क्रिकेट के दीवाने अपने देश को मायूस कर गया। इन गेंदों में हमारी टीम ने अपने तीन दिग्गजों रोहित शर्मा, विराट कोहली और लोकेश राहुल को पेवेलियन की राह दिखा दी थी। इन तीनों के जाने का मतलब था कि भारत इस बाजी को हारने की तरफ बढ़ गया। इस मैच से पहले टीम इंडिया की सफलता के कसीदे इस तिकड़ी के शानदार प्रदर्शन की वजह से ही पढ़े जा रहे थे। इस तिकड़ी के एक-एक रन का योगदान करके लौटने पर मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफर्ड मैदान पर सन्नाटा पसर गया। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि उनके हीरोज को हुआ क्या है। लेकिन, इस सबके पीछे एक खिलाड़ी यानी न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन का दिमाग चल रहा था और उसकी योजनाओं से ही भारत का क्रिकेट विश्व कप में सफर एक बार फिर सेमीफाइनल में थम गया। भारत ने 2015 में भी सेमीफाइनल तक ही चुनौती पेश की थी।
पांच रनों तक स्कोर पहुंचते रोहित, विराट और राहुल के लौट जाने और 24 रनों तक स्कोर पहुंचने पर दिनेश कार्तिक के भी लौट जाने पर भारतीय खेमे में हताशा भरना स्वाभाविक है। हालांकि इसके बावजूद टीम जीत सकती थी। लेकिन बाद में बल्लेबाजों ने अपने प्रयासों पर नासमझी से पानी फेर लिया। पहले ऋषभ पंत और हार्दिक पांड्या ने 47 रन की साझेदारी निभाकर गेंदबाजों के दबदबे को तोड़ा और जब लगा कि वह टीम की स्थिति संभाल सकते हैं, तब दोनों ने ही बड़े शॉट खेलने का प्रयास करके अपने विकेट गंवा दिए। इसके बाद रविंद्र जडेजा और महेंद्र सिंह धोनी जब हारी बाजी को जीत की तरफ लगभग बढ़ा रहे थे, तब यह दोनों भी अपनी गलतियों से विकेट खोकर मैच भी खो बैठे। इस तरह रोहित शर्मा के पांच शतक लगाकर इतिहास रचने, बुमराह की शानदार गेंदबाजी जैसे सभी प्रयासों पर विराम लग गया।
यह सभी जानते थे कि न्यूजीलैंड की गेंदबाजी बहुत धारदार है। इसके बावजूद हमारे बल्लेबाज पारी की शुरुआत में जिस सतर्कता बरतने की जरूरत थी, वह नहीं बरत सके। यह सही है कि भारतीय टीम तगड़े झटके लगने के बाद भी जीत के लिए संघर्ष करती नजर आई, उसमें धोनी का अहम योगदान है। यह भी सच है कि धोनी विकेट पर मौजूद नहीं होते तो रविंद्र जडेजा 77 रन की यादगार पारी खेलते नजर नहीं आते। इसके बावजूद टीम प्रबंधन का बनाए बल्लेबाजी क्रम को कतई सही नहीं कहा जा सकता है। टीम के पहले तीन विकेट जल्दी गिर जाने पर चौथे नंबर पर महेंद्र सिंह धोनी को भेजे जाने की जरूरत थी। इस स्थिति में धोनी के साथ पंत और हार्दिक खेलते समय शायद गलत शॉट नहीं खेलते। धोनी की विकेट पर मौजूदगी से बाद के बल्लेबाजों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती थी। भारतीय मध्यक्रम को लेकर शंकाएं शुरू से व्यक्त की जा रही थीं। शुरुआत में पहले तीन बल्लेबाजों और पेस गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन की वजह से उनकी परख हो नहीं सकी और जब हुई तो वह उसमें एकदम से फेल हो गया।
इस टीम में दिनेश कार्तिक के चयन को कभी सही नहीं ठहराया जा सका। उन्हें जब भी प्रदर्शन करने का मौका मिला, वह एकदम से असफल हो गए। ऐसे में केदार जाधव कहीं बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखते थे। उनकी मौजूदगी से गेंदबाजी का एक और विकल्प मिल सकता था। न्यूजीलैंड की बल्लेबाजी के समय हार्दिक ग्रोइन इंजरी के समय यदि आगे नहीं खेल पाते तो हमारे पास उनके ओवर पूरे करने वाला कोई गेंदबाज नहीं था। वैसे दिनेश कार्तिक से बेहतर विकल्प अंबाति रायुडू हो सकते थे। अंबाति के साथ न्याय किया जाता तो शायद उन्हें संन्यास लेने की जरूरत नहीं पड़ती और भारतीय टीम भी आगे चुनौती पेश कर रही होती। टीम प्रबंधन ने टीम के चौथे नंबर के लिए पहले विजय शंकर को चुना और वह एकदम से असफल रहे। उनके चोटिल होकर लौटने पर ऋषभ पंत को बुलाया गया। पंत ने निराश नहीं किया। पर, अनुभव की कमी आड़े आई। इसलिए उनके बल्लेबाजी करते समय कोई अनुभवी बल्लेबाज सामने होता तो शायद वह और बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे।
टीम प्रबंधन ने स्पिन जोड़ी के चयन में भी गलती की, ऐसा लगता है। उन्होंने शुरू से कुलदीप यादव और यजुवेंद्र चहल पर भरोसा किया। कुलदीप यादव कभी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। यजुवेंद्र चहल ने 12 विकेट जरूर लिए पर वह बहुत प्रभाव छोड़ने में असफल रहे। कुलदीप के असफल रहने पर आखिरी दो मैचों में रविंद्र जडेजा को मौका दिया गया और उन्होंने साबित कर दिया कि वह शुरुआत से ही टीम में खिलाए जाने के काबिल थे। खैर, अब इन चर्चाओं का कोई तुक नहीं है। जडेजा ने गेंदबाजी ही नहीं अपनी धाकड़ बल्लेबाजी से अपना तो सिक्का जमा दिया है।
महेंद्र सिंह धोनी इस विश्व कप के दौरान कई बार चर्चाओं में रहे। कभी अच्छे प्रदर्शन से तो कभी कमजोर प्रदर्शन से। पर उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ दिमाग का अच्छा इस्तेमाल करके अच्छी पारी खेली। लेकिन वह यदि टीम को जिता देते तो उनकी आखिरी विश्व कप की यादें यादगार बन जातीं। धोनी की यह सोच स्ट्राइक को अपने पास रखें, इससे उन्हें लौटना पड़ा। अन्यथा वह इसे किए बिना भी टीम को जीत तक पहुंचा सकते थे। भारतीय बल्लेबाजों ने टीम पर संकट के समय यदि स्ट्राइक बदलकर डॉट गेंदें कम खेली होतीं तो जडेजा और धोनी पर जोखिम भरे रन लेने का दबाव नहीं बनता और वह टीम को सहज ढंग से जीत तक पहुंचा सकते थे। कप्तान विराट कोहली ने हारने के बाद कहा कि मात्र 45 मिनट के खराब खेल ने हमें बाहर कर दिया। यह बात सही है, पर नाकआउट चरण में ही होती है सही परीक्षा, क्योंकि इसमें वापसी का कोई मौका नहीं होता है। इसके अलावा विराट को आईसीसी टूर्नामेंटों के बड़े मैचों में क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन करने पर ध्यान देना चाहिए। वह 2015 के विश्व कप सेमीफाइनल में एक रन, 2017 चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पांच रन, 2011 के विश्व कप सेमीफाइनल में नौ रन और इस सेमीफाइनल में एक रन बना सके हैं। टीम को सफलता दिलाने के लिए उन्हें विलियमसन जैसा बनना पड़ेगा।