दिल्ली, 05 सितम्बर (हि.स.)। प्रख्यात शिक्षाविद एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती एवं शिक्षक दिवस पर राष्ष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें याद कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। राष्ट्रपति कोविंद ने गुरुवार को ट्वीट कर लिखा, ‘शिक्षक दिवस पर मैं डॉ एस. राधाकृष्णन को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और सभी शिक्षकों को शुभकामनाएं देता हूं।’ उन्होंने लिखा, ‘शिक्षक युवा दिमाग को मजबूत मूल्यों के साथ प्रभावित करते हैं और उन्हें उत्सुक होने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसा कर वे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्व भूमिका निभाते हैं।’
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने ट्वीट करते हुए लिखा कि भारत के पहले उपराष्ट्रपति, प्रकांड विद्वान और ओजस्वी वक्ता डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर शिक्षक और गुरु वृंद को सादर प्रणाम करता हूं। उन्होंने लिखा कि नए भारत की नव आकांक्षाएं आपके स्नेहिल शिक्षण और संरक्षण में ही आकार लेंगी। नए भारत के भावी नागरिकों की आशाओं आकांक्षाओं का मार्गदर्शन करें। उन्हें राष्ट्रीय दायित्व और सामाजिक संस्कारों से जोड़ें। आपके अभिनंदनीय प्रयासों को प्रणाम करता हूं।
नायडू ने पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किए गए संसदीय लोकतंत्र के कार्यों की चर्चा करते एक अन्य ट्वीट में लिखा कि हमारे संसदीय लोकतंत्र के शुरुआती वर्षों में आपने अपनी विद्वत्ता से उसकी परंपराओं और मर्यादाओं को समृद्ध किया, जो आज भी अनुकरणीय है। उन मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना ही पुण्यात्मा को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने राधाकृष्णन की जयंती पर अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से 2.28 मिनट का एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें राधाकृष्णन के महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख किया गया है। वीडियों में पूर्व राष्ट्रपति के कुछ भाषणों को भी दर्शाया गया है। मोदी ने उनको याद करते हुए लिखा कि शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी शिक्षकों को हार्दिक शुभकामनाएं। भारत के एक असाधारण शिक्षक और गुरु डॉ एस. राधाकृष्णन को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि।
उल्लेखनीय है कि आज का दिन वर्ष 1962 से देश के दूसरे राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और एक शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ राधाकृष्णन का जन्म 05 सितम्बर,1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी नाम के गांव में हुआ था। राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन को दिये थे। उनका कहना था कि जहां कहीं से भी कुछ सीखने को मिले उसे अपने जीवन में उतार लेना चाहिए। वह पढ़ाने से ज्यादा छात्रों के बौद्धिक विकास पर जोर देने की बात करते थे। वर्ष 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानति किया गया था। वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे। 17 अप्रैल,1975 को चेन्नई में उनका निधन हो गया था।