चंडीगढ़, 06 अक्टूबर (हि.स.) । हरियाणा में पांच साल से सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस की राह इस बार भी आसान नहीं है। पांच साल तक हुड्डा गुट के विरोध के बावजूद अध्यक्ष पद पर जमे रहे अशोक तंवर पार्टी से इस्तीफा देने के बाद रविवार से ही फील्ड में उतर गए हैं। एक तरफ जहां तंवर समर्थकों द्वारा लगातार इस्तीफे दिए जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ तंवर ने भी कार्यकर्ता सम्मेलनों का आयोजन शुरू कर दिया है। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा।
हरियाणा का चुनावी बिगुल बजने के बाद एक तरफ जहां भाजपा फिर से सत्ता में आने की तैयारी में पूरी एकजुटता के साथ चुनाव प्रचार में उतरी हुई है वहीं कांग्रेस की लड़ाई सडक़ों पर है। राहुल गांधी जब तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तब तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा की एक नहीं चली और जिस दिन से सोनिया ने कांग्रेस की कमान संभाली है, उस दिन से अशोक तंवर हाशिए पर हैं।
टिकट आवंटन से नाराज अशोक तंवर ने शनिवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर अपनी राह अलग कर ली। कांग्रेस हाईकमान तथा हुड्डा गुट इस मामले को खत्म मानकर शांत हो गया था लेकिन अशोक तंवर ने रविवार से नया मोर्चा खोल दिया है। अशोक तंवर आज से फील्ड में उतर गए हैं और विधानसभा चुनाव तक वह प्रदेश में अपने समर्थकों को लामबंद करते हुए जनसभाओं को आयोजन करेंगे। रविवार को गुरुग्राम, झज्जर तथा रोहतक जिलों का दौरा करके उन्होंने अपने समर्थकों को एकजुट किया।
साफ है कि अब अशोक तंवर कांग्रेस के लिए कार्यकर्ताओं को एकजुट नहीं करेंगे।
रविवार को अशोक तंवर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शहर भी पहुंचे और यहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठक भी की। अशोक तंवर के समर्थन में रविवार को भी इस्तीफों का दौर जारी रहा। आज भी पृथला से सत्यवीर डागर, नवीन शर्मा, सुजीत भारद्वाज, पंकज डाबर, संतोष पांचाल समेत उन सभी नेताओं ने अपने पद से इस्तीफे दे दिए, जिन्हें अशोक तंवर ने अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न प्रकोष्ठों की जिम्मेदारी सौंप रखी थी। इस पूरे प्रकरण पर हरियाणा कांग्रेस तथा कांग्रेस हाईकमान अभी तक चुप है। तंवर अगर ऐसे ही फील्ड में रहते हैं तो कांग्रेस के लिए चुनाव में मुश्किल हालात पैदा कर सकते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।