चंपारण के जर्दालु आम को चखिए, तभी जानेंगे इसकी सुगंध-मिठास
आर.के. सिन्हा
बिहार के चंपारण जिले (अब तो पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण दो जिले हो गये हैं) की जब भी बात होती है, तब महात्मा गांधी के वहां के नील की खेती करने वाले किसानों के पक्ष में निलहा आन्दोलन का ख्याल तुरंत जेहन में आ जाता है। उस असाधारण आंदोलन के संबंध में आज भी सारा देश पढ़ता रहता है। अब वही चंपारण एक अन्य कारण से देश में जगह बनाने जा रहा है। दरअसल अब देश वहां के जर्दालु आम का स्वाद चखेगा। यहां के बेहद स्वादिष्ट जर्दालु आम का स्वाद और खुशबू अद्वितीय है। इसे खाने के बाद इंसान एकबार तो कह देता है कि ‘इससे बेहतर आम कभी नहीं चखा।’
पर यह भी विडंबना है कि जहां दशहरी, लंगड़ा, मालदह, चौसा, मलिहाबादी, सहारनपुरी, बादामी, तोतापरी, केसर आदि आमों की प्रजातियों से सारा देश परिचित है, वहीं चंपारण के आम के बारे में बिहार से बाहर के लोगों को लगभग कोई जानकारी नहीं है। हालांकि अब इन सुगंधित आमों के स्वाद से समूचा देश रू-ब-रू हो सकेगा। यह संभव हो रहा है डाक विभाग के फलस्वरूप। बिहार पोस्टल सर्किल लोगों के घरों तक ‘जर्दालु आम’ तथा ‘शाही लीची’ पहुंचाएगा। संयोग से बिहार के मुजफ्फरपुर की शाही लीची से तो देश अच्छी तरह वाकिफ है। पर अब बारी जर्दालु या जर्दा आम की भी आ गई है।
दरअसल भारत सरकार के डाक विभाग और बिहार सरकार के बागवानी विभाग ने लोगों के दरवाजों तक ‘शाही लीची’ और ‘जर्दालु आम’ की आपूर्ति करने के लिए समझौता किया है। बिहार पोस्टल सर्किल ने बिहार सरकार के बागवानी विभाग के साथ शाही लीची और जर्दालु आम को सही पैकिंग में सुरक्षित रूप से लोगों के दरवाजों तक पहुंचाने संबंधी महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। इससे दो लाभ होंगे। पहला, आम और लीची के कद्रदान इन्हें पाकर गदगद होंगे। किसी को घर बैठे इतने स्वादिष्ट फल प्रमाणिकता पूर्वक मिल जाएं तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। वह तो अपने को भाग्यशाली ही मानेगा। दूसरा, कोरोना वायरस को सीमित करने के लिए लॉकडाउन के कारण आम तथा लीची के उत्पादकों को अपने माल को बेचने के लिए बाजार तक ले जाने तथा परिवहन की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अभी तो इन्हें अपना माल बाजार तक ले जाने में अनेक अवरोधों से सामना करना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में आम और लीची की आपूर्ति एक बड़ी चुनौती बन गई है। इसलिए आम और खास लोगों की मांग पूरी करने और कड़ी मेहनत करने वाले किसानों को बिना बिचौलिये उनका फल बेचने के लिए बाजार उपलब्ध कराने को यह सरकारी पहल हुई है।
हालांकि इस तरह की पहल दशकों पहले ही हो जानी चाहिए थी। अगर आप अपने माल का प्रचार नहीं करेंगे और उसे ग्राहकों तक नहीं पहुंचाएंगे तो फिर उसके गुणों की जानकारियां कैसे जनता तक पहुंच पाएगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि जर्दालु आम अपने अनूठे स्वाद के चलते दुनियाभर में विख्यात हो जाएगा। आप भी इसका आर्डर पेश कर सकते हैं। ये चंपारण के अलावा थोड़ा बहुत भागलपुर में भी होता है। आरंभ में यह सुविधा पटना और भागलपुर के लोगों के लिए ही उपलब्ध होगी। पर इसका विस्तार होता रहेगा। पटना वाले इसे देश के अन्य भागों में विमान या ट्रेन से लेकर भी जा सकते हैं। अब विमान सेवा तो चालू हो ही गई है।
बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश जर्दालु आमों पर जान निसार करता है। आम के सीजन में सभी पूर्वांचली इसका भरपूर सेवन करते हैं। वे इसे बार-बार खाए बिना रह नहीं सकते। बिहार में कई स्थानों पर जर्दालु आम खाने की प्रतियोगिताएं भी होती हैं। वहां का नजारा गजब का होता है। थाली में दर्जनों आम और बगल में छिलकों का ढेर। कुर्सी पर बैठे कई लोग और सबके मन में एक ही उद्देश्य, जितना अधिक से अधिक आम खाया जा सके। इसमें सैकड़ों प्रतियोगी भाग लेते हैं। वैसे आम खाओ- पुरस्कार पाओ प्रतियोगिताएं देश के अन्य शहरों में भी होती हैं। पर इस साल कोरोना ने सारा मजा किरकिरा कर रखा है। इस बीच, सोशल मीडिया के चलते जर्दालु आम की मांग होने लगी है। इसके बारे में लोगों को पता भी चलने लगा है। यहां के आम की महक से ही खाने वाले का मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस आम के प्रचार-प्रसार के लिए जरूरी है कि सघन कोशिशें होती रहें।
बहरहाल, ताजा पहल का लाभ यह होगा कि किसानों को कुछ अधिक लाभ मिल जाएगा। वर्ना मोटा लाभ बिचौलिए की ही जेब में चला जाता रहा है। उधर ग्राहकों को भी कम कीमत पर अपने दरवाजों तक इन सारी ब्रांडेड फलों को प्राप्त करने का लाभ मिलेगा। यानी आम के आम और गुठलियों के दाम।
जर्दालु आम की विशेषता है कि ये सबको लुभाता है। इसके स्वाद में कुछ अलग बात तो है। मैं इसके पक्ष में इसलिए नहीं कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद बिहार से हूं। आप इसे खाते ही स्वयं इसके प्रशंसक बन जाएँगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर जर्दालु आम तो हर साल देश के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित अतिविशिष्ट नागरिकों को भेजा जाता रहा है। पर जब ये जर्दालु आम देश के हर आम नागरिक को नसीब हो सकेगा तो सबको अच्छा लगेगा।
अभी तक आम खाने वाले उत्तर प्रदेश के दशहरी, लंगड़ा और महाराष्ट्र के अलफांसो के स्वाद को बाकी प्रजातियों के आमों की तुलना में इक्कीस बताते हैं। दशहरी की उत्पत्ति लखनऊ के करीब दशहरी गाँव से हुई बताई जाती है। इसलिए इसे दशहरी कहते हैं। जहां तक लंगड़ा आम की बात है, तो ये बनारसी मूल का माना जाता है। इसकी भी मिठास दिव्य होती है। ये रेशेदार आम है। इसकी गुठली छुटकी-सी होती है और गुदा भरपूर। अलफांसो आम का स्वाद और मिठास लाजवाब होती है। इन तीनों के चाहने वाले करोड़ों हैं। बंगाल और बिहार के मालदह की बात न करें तो बात अधूरी ही रह जायेगी। बंगाल के गंगा किनारे मालदह से उत्पन्न होकर यह गंगा किनारे ही पूरब और पश्चिम में फैला। भागलपुर के सबौर नाम के स्थान और पटना के दीघा के दूधिया मालदह का तो जवाब ही नहीं। एकदम पतले कागज जैसा छिलका, पतली गुठली और बिना रेशे का गूदा। जैसे आइसक्रीम खा रहे हों। पटना के दीघा के क्षेत्र में ही सदाकत आश्रम में भारत के प्रथम राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष देशरत्न और भारतरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक छोटी-सी कुटियानुमा खपरैल मकान में रहते थे। दो बार राष्ट्रपति रहने के बाद वे पुनः उसी मकान में आकर रहने लगे जहाँ उन्होंने अंतिम साँस ली। इस बिहार विद्यापीठ के प्रांगण में आज भी उनके हाथों से लगाया गया दूधिया मालदह का एक बड़ा बाग है जो आज भी अपनी सुगंधि बिखेर रहा है। इन्हें देखते ही सभी इन आमों पर लपकते हैं। पर एकबार आप जर्दालु का जायका लेकर तो देखें। आप मान जाएंगे कि ये स्वाद और सुगंध में बाकी प्रजातियों से कहीं आगे है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)