नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दारुल उलूम देवबंद, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और तब्लीगी जमात को तालिबान से जोड़ने वाले प्रवीण तोगड़िया के विवादित बयान का जवाब देते हुए कहा है कि जमीयत को तालिबान से जोड़ना सरासर गलत है। तब्लीगी जमात भी ऐसी ही एक धार्मिक जमात है। उन्होंने आगे कहा कि तोगड़िया कहते हैं कि दारुल उलूम देवबंद को बंद कर दिया जाए लेकिन आपको हमारे इतिहास के बारे में मालूम नहीं है।
मौलाना ने कहा कि जब 1866 में दारुल उलूम बना तब 1857 के लड़ाई में शिकस्त हो चुकी थी। खासतौर पर मुस्लिम गुलामी के खिलाफ लड़ रहे लोगों को चुन-चुन कर दिल्ली में फांसी दे दी गई। 33 हज़ार उलेमाओं का दिल्ली के अंदर कत्ल किया गया। लालकिला से लेकर जामा मस्जिद तक उनको पेड़ों पर लटका दिया गया। उसके बाद दारुल उलूम का गठन किया गया। दारुल उलूम के बड़े-बड़े सपूतों ने अंग्रेजों से लोहा लिया है। उन्होंने कहा कि तोगड़िया नहीं जानते कि शेखुल हदीस मौलाना महमूद हसन यहीं से पढ़कर निकले थे जिनको मिस्टन कहा जाता था। अगर शेखुल हदीस को जलाकर राख कर दिया जाए तो उसकी राख से भी अंग्रेजों से दुश्मनी की बू आएगी।
मौलाना ने कहा कि अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर माल्टा जेल में भेज दिया था। माल्टा की जेल में शेखुल हदीस चार साल रहे। वह दारुल उलूम देवबंद से ही पैदा हुए थे। माल्टा की जेल में जाने वाले मौलाना उज़ैर, हकीम नुसरत हुसैन गाज़ी भी देवबंद के छात्र थे जिनकी मौत माल्टा जेल में हो गई थी। माल्टा की जेल में ही उनकी कब्रें हैं। अंग्रेजों ने उनसे कहा था कि हम आपको माफ़ कर देंगे, आप अपने वतन लौट जाएं लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे मरना मंजूर है लेकिन एक अंग्रेज से माफी मांगना मंजूर नहीं। मौलाना मदनी भी दारुल उलूम से पढ़े हैं। मौलाना वहीद अहमद भी माल्टा की जेल में रहे।
दारुल उलूम ने जिन लोगों को पैदा किया है, उन लोगों ने मुल्क की आज़ादी के लिए अपने आपको कुर्बान कर दिया। मैं तोगड़िया से पूछना चाहता हूं कि आप दारुल उलूम को बंद करवाना चाहते हैं लेकिन पहले यह बताइए कि आपने और आपके पूर्वजों ने इस मुल्क की आज़ादी और गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने के लिए क्या काम किया है। आज आप लोगों को आज़ाद देश पकी-पकाई रोटी की तरह मिल गया है और आप इसमें डॉक्टर प्रवीण तोगड़िया बने बैठे हैं। आपको इतिहास उठाकर देखना चाहिए कि देश की आज़ादी के लिए अपने आपको कुर्बान करके मौलाना मदनी सहारनपुर, माल्टा, मुरादाबाद, बरेली, नैनी तथा साबरमती जेल में रहे। मौलाना अब्दुर्रहमान भी जेल में रहे। इन सबको दारुल उलूम ने पैदा किया था।
मौलाना ने तोगड़िया से पूछा कि तालिबान का जमीयत उलेमा-ए-हिन्द से क्या रिश्ता है? मौलाना मदनी जमीयत के सदर थे। तकरीबन 10 साल जेल के अंदर रहे। देश के अंदर आज भी जमीयत का एक नाम है। और जमीयत मजहब की बुनियाद पर दो कौमी नज़रिए (दो राष्ट्र की विचारधारा) को नहीं मानती। इस मुल्क में बसने वाले हिन्दू-मुस्लिम सब एक कौम हैं। जमीयत अपने काम में हिन्दू-मुस्लिम से भेदभाव नहीं करती। हम आज भी काम कर रहे हैं। हमने केरल में हिन्दू-मुस्लिम को मकान बनाकर दिए। उन्होंने तोगड़िया को चुनौती देते हुए कहा कि आप साबित करें कि आपने पीड़ित हिंदुओं-मुस्लिमों के लिए क्या काम किया है।