भारतीय नौसेना में शामिल स्वदेशी स्कॉर्पीन पनडुब्बी करंज

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सतह और पानी के अंदर से टॉरपीडो और एंटी-शिप मिसाइल दागने की क्षमतासमुद्र के अन्दर बारूदी सुरंगें बिछाने में भी सक्षम है आईएनएस करंज पनडुब्बी 



नई दिल्ली, 10 मार्च (हि.स.)। नौसेना के 14वें प्रमुख रहे एडमिरल विजई सिंह शेखावत ने बुधवार सुबह मुंबई में स्वदेशी स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस करंज को औपचारिक रूप से भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया।युद्धपोत निर्माता मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने परियोजना पी-75 के तहत इस तीसरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी का निर्माण किया है। इस परियोजना की दो स्कॉर्पीन पनडुब्बियां कलवरी और खंडेरी पहले ही नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। 2022 तक तीन अन्य पनडुब्बियां भी नौसेना को सौंप दी जाएंगी। आईएनएस करंज में सतह और पानी के अंदर से टॉरपीडो और ट्यूब लॉन्च्ड एंटी-शिप मिसाइल दागने की क्षमता है। यह सटीक निशाना लगाकर दुश्मन की हालत खराब कर सकती है।
सारे समुद्री परीक्षण पूरे होने के बाद पिछले माह 15 फरवरी को मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड के अध्यक्ष वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) नारायण प्रसाद ने पश्चिमी नौसेना कमान के चीफ ऑफ स्टाफ ऑफिसर (तकनीकी) रियर एडमिरल बी शिवकुमार को आईएनएस करंज पनडुब्बी सौंपी थी कलवरी क्लास की दो पनडुब्बियां कलवरी और खंडेरी पहले ही नौसेना में शामिल हो चुकी हैं। भारत में बनी कलवरी क्लास की यह तीसरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस करंज भी समुद्री परीक्षणों में खरी उतरी है। करंज को 2018 में समुद्र के परीक्षणों के लिए भेजा गया था। आईएनएस करंज 2020 में पूरे हुए समुद्री परीक्षणों में खरी उतरी है।
कलवरी क्लास की कुल 6 पनडुब्बियों का निर्माण मुंबई के मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड ने फ्रांसीसी कंपनी मेसर्स नेवल ग्रुप के साथ किया है। तीन अन्य पनडुब्बियों का समुद्री परीक्षण चल रहा है जिन्हें 2022 तक नौसेना में शामिल कर लिया जायेगा। यह पनडुब्बी 50 दिनों तक समुद्र में रह सकती हैं और एक बार में 12 हजार किमी. तक की यात्रा कर सकती हैं। इसमें 8 अफसर और 35 नौसैनिक काम करते हैं और ये समुद्र की गहराई में 350 मीटर तक गोता लगा सकती हैं। कलवरी क्लास की पनडुब्बी समुद्र के अंदर 37 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती हैं। इनमें समुद्र के अंदर किसी पनडुब्बी या समुद्र की सतह पर किसी जहाज को तबाह करने के लिए टॉरपीडो होते हैं। इसके अलावा समुद्र में बारूदी सुरंगें भी बिछा सकती है।
आईएनएस करंज स्टेल्थ और एयर इंडिपेंडेंट प्रॉपल्शन समेत कई तरह की तकनीकों से लैस है। इसलिए इसे लंबी दूरी वाले मिशन में ऑक्सीजन लेने के लिए सतह पर आने की ज़रूरत नहीं है। इस तकनीक को डीआरडीओ के नेवल मैटेरियल्स रिसर्च लैब ने विकसित किया है। आईएनएस करंज में सतह और पानी के अंदर से टॉरपीडो और ट्यूब लॉन्च्ड एंटी-शिप मिसाइल दागने की क्षमता है। यह सटीक निशाना लगाकर दुश्मन की हालत खराब कर सकती है। इसके साथ ही इस पनडुब्बी में एंटी-सरफेस वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर, खुफ़िया जानकारी जुटाने, माइन लेयिंग और एरिया सर्विलांस जैसे मिशनों को अंजाम देने की क्षमता है।
स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस करंज में ऐसी अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिससे दुश्मन देशों की नौसेनाओं को इसकी टोह लेना मुश्किल होगा। इनमें अकुस्टिक साइलेंसिंग, लो रेडिएटेड नॉइज़ लेवल, हाइड्रो डायनेमिकली ऑपटिमाइज़्ड शेप तकनीक शामिल है। सामान्य तौर पर पनडुब्बी को उसकी आवाज की वजह से पकड़ा जाता है लेकिन इस पनडुब्बी में आवाज को काफ़ी कम किया गया है। आईएनएस करंज दुश्मन को चकमा देने में माहिर होने के साथ ही पुरानी पनडुब्बी के मुकाबले ज्यादा घातक है। दुनिया की सबसे अत्याधुनिक तकनीक से बनी इस पनडुब्बी के मिलने से भारतीय नौसेना की ताकत में इज़ाफा होगा।

 


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