नई दिल्ली, 29 जनवरी (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति को मिली अग्रिम जमानत की समय-सीमा नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत की अवधि ट्रायल के खत्म होने तक जारी रह सकता है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने आज ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दरअसल 15 मई 2018 को जस्टिस कुरियन जोसेफ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने बड़ी बेंच को इस बात पर फैसला करने के लिए रेफर किया था कि क्या किसी व्यक्ति को अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत गिरफ्तारी से मिली सुरक्षा की समय सीया हो सकती है ताकि वो व्यक्ति कोर्ट के सामने सरेंडर कर सके या वो नियमित जमानत दाखिल कर सके। दरअसल कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अग्रिम जमानत की समय सीमा तय नहीं हो सकती जबकि कुछ फैसलों में कहा गया था कि अग्रिम जमानत की भी समय सीमा तय होनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील हरीन पी रावल और केवी विश्वनाथन ने अग्रिम जमानत के लिए समय सीमा तय करने का विरोध किया था। जबकि एएसजी विक्रमजीत बनर्जी ने कहा था कि अगर अग्रिम जमानत की समय सीमा ट्रायल के अंत तक चलेगा तो आरोपी को कोर्ट में पेश करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत किए गए प्रावधान का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अग्रिम जमानत कोर्ट का विशेषाधिकार है इसलिए इस पर समय सीमा लगानी चाहिए।