सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश में फ्लोर टेस्ट पर राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया 

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नई दिल्ली, 13 अप्रैल (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्यप्रदेश में फ्लोर टेस्ट पर विस्तृत आदेश जारी करते हुए कहा है कि हालात के मुताबिक राज्यपाल का फैसला सही था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मध्यप्रदेश कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का यह कहना गलत था कि 22 विधायकों की अनुपस्थिति के बिना विश्वास मत हासिल नहीं कराया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि एक नागरिक होने के नाते उन 22 विधायकों को चुनाव करना था कि वे किसके साथ जाना चाहते हैं। हम उन्हें विधानसभा में जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने मध्यप्रदेश कांग्रेस की यह दलील भी खारिज कर दिया कि 22 विधानसभाओं में उप-चुनाव कराए बिना अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि छह विधायकों के इस्तीफे के बाद विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या 114 से घटकर 108 रह गई। विधानसभा में भी कुल सदस्यों की संख्या 222 हो गई। इस स्थिति में भी राज्यपाल ने स्पीकर की अथॉरिटी पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया कि वे इस्तीफों की वास्तविकता का परीक्षण करें। राज्यपाल के विश्वास मत का निर्देश देने के बावजूद विधानसभा को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया। इससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो जाती और राजनीतिक सौदेबाजी का दौर शुरु होता जिसे सही नहीं कहा जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में उत्तरप्रदेश के जगदंबिका पाल, 2005 में झारखंड के अनिल कुमार झा और 2017 में गोवा के चंद्रकांत कावलेकर के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि तीनों ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का ही आदेश दिया था।
बता दें कि पिछले 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। हालांकि फ्लोर टेस्ट कराने के पहले ही राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया था। कोर्ट ने कहा थाकि राजनीतिक अस्थिरता खत्म करने के लिए फ्लोर टेस्ट जरुरी है। कोर्ट ने 19 मार्च को अपने आदेश मं कहा था कि पूरे विधानसभा की कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग होगी। कोर्ट ने कहा था कि अगर बागी विधायक आना चाहते हैं तो उन्हें कर्नाटक के डीजीपी सुरक्षा मुहैया कराएं। कोर्ट ने कहा कि विश्वास मत हाथ उठाकर किया जाए।

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