सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी सीबीएसई-आईसीएसई बोर्ड की 12वीं परीक्षा की मूल्यांकन पद्धति को
नई दिल्ली, 22 जून (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड द्वारा 12वीं की परीक्षा रद्द किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने बोर्ड द्वारा छात्रों के मूल्यांकन संबंधी स्कीम को मंजूर कर लिया।
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने कहा कि जो बच्चे 12वीं क्लास में शमिल होने थे, वे एनडीए और दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होंगे। क्या सिर्फ 12वीं की परीक्षा ही कोरोना के खतरे का कारण बन सकती है, दूसरी नहीं तो फिर 12वीं परीक्षा को रद्द करने का क्या औचित्य है। जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि सीबीएसई ने जनहित में परीक्षा रद्द करने का फैसला लिया है। स्थिति लगातार बदल रही है। कोर्ट ने कहा कि छात्रों ने कोर्ट में याचिका दायर करके परीक्षा देने में अपनी असमर्थता जाहिर की है, इसके बाद परीक्षा रद्द हुई। क्या आप चाहते है कि ये फैसला पलटकर फिर से 20 लाख छात्रों को अधर में डाल दें। ये बड़े जनहित में लिया गया फैसला था। हम प्रथमदृष्टया इस फैसले से सहमत थे।
यूपी पैरेंट्स एसोसिएशन की ओर से वकील विकास सिंह ने कहा कि आईसीएसई का कहना है कि लिखित परीक्षा को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। मेरे ख्याल से दोनो बोर्ड की परीक्षा रद्द करने के बजाय ये फैसला स्कूलों और छात्रों पर छोड़ देना चाहिए कि वो लिखित परीक्षा में पेश होना चाहते है या नहीं। तब कोर्ट ने कहा कि स्कूल कैसे अपने स्तर पर फैसला ले सकते हैं। कृपया बेतुकी सलाह न दें। जो छात्र मूल्यांकन से सहमत नहीं, वो आगे चलकर होने वाले लिखित परीक्षा में पेश हो सकते हैं। स्कीम में इसका पहले से प्रावधान है। किसी छात्र को इससे दिक़्क़त हो तो वो हमारे सामने अपनी बात रख सकते हैं।
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि स्कूलों के पास फैसला लेने का अधिकार नहीं है लेकिन छात्रों के पास ज़रूर है। उनके पुराने परफॉर्मेंस के आधार पर उन्हें आंका जाएगा। अगर वो इससे संतुष्ट नहीं तो आगे परीक्षा में बैठ सकते हैं। उनके लिए वैकल्पिक परीक्षा में मिले अंक ही फाइनल होंगे। विकास सिंह के सुझाव पर कोर्ट ने पूछा कि क्या छात्रों को शुरू में ही मौका नहीं दिया जा सकता कि वो लिखित परीक्षा या आंतरिक मूल्यांकन मे एक विकल्प चुन लें। जो यह विकल्प चुनें, उनका मूल्यांकन न हो। आप उनके लिए परीक्षा का इंतजाम करें।
अटार्नी जनरल ने कहा कि स्कीम के तहत छात्रों को दोनों विकल्प मिल रहे हैं। अगर वो आंतरिक मूल्यांकन में मिले नंबर से संतुष्ट नहीं होंगे, तो लिखित परीक्षा का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन अगर लिखित परीक्षा चुनते हैं तो फिर मूल्यांकन में मिले नंबर का कोई औचित्य नहीं है। लिखित परीक्षा के नंबर ही मान्य होंगे। बाद में जस्टिस महेश्वरी ने भी कहा कि शुरुआत में छात्रों को ये अंदाजा ही नहीं होगा कि उन्हे आंतरिक मूल्यांकन में कितने नंबर मिलेंगे। लिहाजा लिखित परीक्षा या आतंरिक मूल्यांकन में से किसी एक विकल्प को चुनना उनके लिए भी मुश्किल होगा।