नई दिल्ली, 29 सितंबर (हि.स.)। भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) के युद्धपोत जल्द ही सुपर रैपिड गन माउंट (एसआरजीएम) से लैस नजर आएंगे। ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत कानपुर की फील्ड गन फैक्टरी में विकसित की गई यह बन्दूक नौसेना के ट्रायल में भी पूरी तरह खरी उतरी है। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) को दो एसआरजीएम बनाने का ठेका दिया गया था। सफलतापूर्वक दोनों गन का निर्माण होने के बाद अब गोवा शिपयार्ड ने बाकी सुपर रैपिड गन माउंट की आपूर्ति के लिए भी पहला आदेश भेल को दे दिया है।
यह उन्नत सुपर रैपिड गन माउंट (एसआरजीएम) भारतीय नौसेना के अधिकांश युद्धपोतों में लगने वाली मुख्य गन है। उन्नत एसआरजीएम एक अत्याधुनिक हथियार प्रणाली है जिसमें अतिरिक्त विशेषताएं जैसे तेज गति के साथ पैंतरेबाजी, रेडियो नियंत्रित लक्ष्यों को संलग्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद का प्रबंधन करने और उच्च रेंज में फायर करने की क्षमता है। कानपुर की फील्ड गन फैक्टरी ने भारतीय नौसेना के युद्धक जलपोतों पर इस्तेमाल होने वाली 30 मिमी. बैरल की ऐसी सुपर रैपिड गन माउंट तैयार की है, जो अभी तक इटली से मंगाई जाती थी। बोफोर्स तोप बनाने वाली स्वीडिश कम्पनी भी पहले यह सुपर रैपिड गन माउंट इटली से खरीदती थी लेकिन अब वह भी सुपर रैपिड गन माउंट भारत से खरीदने को मजबूर हुई है।
रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 11 अगस्त 2020 को सुपर रैपिड गन माउंट (एसआरजीएम) के उन्नत संस्करण की खरीद को मंजूरी दी है, जिसे भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) के युद्धपोतों पर मुख्य बंदूक के रूप में लगाया जाना है। इससे तेजी के साथ आक्रमण करने की क्षमता बढ़ेगी। इस गन की रेंज 19 किलोमीटर है। इसकी क्षमता एक मिनट में 110 राउंड फायर करने की है। इसमें लगे सभी उपकरण स्वदेशी हैं। एसआरजीएम के उन्नत संस्करण में मिसाइलों और तेज हमलावर विमानों जैसे तेज पैंतरेबाज लक्ष्यों के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन करने और अधिकतम दूरी तक मारक क्षमता को बढ़ाया गया है।
इसी साल 11 फरवरी को भेल कंपनी को भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए दो सुपर रैपिड गन माउंट की आपूर्ति का ठेका दिया गया था। इनका निर्माण भेल के हरिद्वार स्थित संयंत्र में सफलतापूर्वक किये जाने के बाद अब गोवा शिपयार्ड ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) को आपूर्ति के लिए पहला आदेश दे दिया है। इस आदेश में भारतीय नौसेना के ट्रिपुट क्लास फ्रिगेट्स के लिए संपूर्ण सिस्टम – अपग्रेडेड एसआरजीएम और एक्सेसरीज की आपूर्ति, स्थापना और कमीशनिंग की परिकल्पना की गई है, जिसका निर्माण भेल की हरिद्वार इकाई में किया जाएगा।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भेल ने एक बयान में कहा कि कंपनी ने इन तोपों का स्वदेशीकरण किया है और इनका विनिर्माण हरिद्वार स्थित संयंत्र में किया जाएगा। भारतीय नौसेना ने अपने सभी प्रमुख युद्धपोतों के लिए इन तोपों को मानकीकृत किया है, जिसके चलते इनकी लागत में कमी आने के साथ ही आत्मनिर्भरता भी बढ़ी है। भेल इन तोपों के उन्नत संस्करण पर भी काम कर रही है। भेल तीन दशकों से अधिक समय से रक्षा और विमानन क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपकरणों और सेवाओं की आपूर्ति कर रही है। कंपनी ने कहा कि रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में योगदान करने के लिए उसने विशेष विनिर्माण सुविधाओं और क्षमताओं को स्थापित किया गया है तथा वह भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।