सुंदरवन दशकों से राजनीतिक उपेक्षा और प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा

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कोलकाता, 28 मई (हि. स.)। समुद्र के तट पर बसे होने की वजह से पश्चिम बंगाल में अमूमन चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। खासकर तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर इन आपदाओं की सबसे ज्यादा मार पड़ती है। समुद्र तट के निकट ऐसा ही एक इलाका है, दक्षिण 24 परगना जिले का सुंदरवन। जहां का जनजीवन हर बार चक्रवात से तहस-नहस होकर फिर से उठ खड़े होने की जद्दोजहद करता है। हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियां इस क्षेत्र के विकास को लेकर बड़े-बड़े वादें करती हैं लेकिन चुनाव गुजरते ही सभी वादे महज छलावा बन रह जाते हैं। हाल ही में आये चक्रवात यास ने यहां जो तबाही मचाई है, उसके निशान लंबे समय तक मौजूद रहने वाले हैं। राज्य में सुंदरवन विकास के लिये अलग मंत्रालय होने के बावजूद यह इलाका दशकों से वास्तविक विकास की बाट जोह रहा है।
गंगा और समुद्र के संगम से सटे सुंदरवन की भौगोलिक स्थिति थोड़ी जटिल है। यहां बड़े भूभाग पर जंगल और छोटी बड़ी नदियों की भरमार है। इससे पहले दो बड़े चक्रवात आईला और अम्फन ने पूरे क्षेत्र को तहस-नहस कर दिया था। अब यास चक्रवात की वजह से इलाके में बने लगभग सभी तटबंध टूट गए हैं। जंगली क्षेत्र होने की वजह से अस्थाई तौर पर बनाए गए लोगों के घर-बार पानी में बह गये और लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। चक्रवात की वजह से इलाके की सभी नदियां उफान पर है। नदियों के पानी को रिहायशी क्षेत्रों में जाने से रोकने के लिए कच्चे बांध बनाये गये हैं। जब नदी का बांध टूटता है तो दूसरी जगह से मिट्टी लाकर बांध को दोबारा ठीक किया जाता है। हर बार जब चुनाव आते हैं तो नेता कच्चे बांधों को पक्के बांध में तब्दील करने का वादा कर जाते हैं पर सदियों से बांध के साथ-साथ वादे भी कच्चे ही निकलते रहे हैं।
वाम सरकार में लगातार दस सालों तक सुंदरवन विकास मंत्री रहे वरिष्ठ माकपा नेता कांति गांगुली चक्रवात के बाद से क्षेत्र में लोगों की मदद में जुटे हुए हैं। उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि गोसाबा, लिबासपुर, रंगाबेलिया, कैखाली, हलदरबाड़ी आदि क्षेत्रों में पानी भरा है। उन्होंने कहा कि विगत एक दशक से इस दुर्गम क्षेत्र के विकास को लेकर राज्य सरकार की सद्इच्छा नहीं दिखी है। उन्होंने कहा कि सुंदरवन में 46 लाख लोग रहते हैं। मुख्यमंत्री अगर मुझे पर भरोसा कर जिम्मेदारी दें। यहां के लोगों की बेहतरी के लिए सरकारी मदद से पूरे क्षेत्र की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
वाममोर्चा सरकार में 2001 से 2010 के बीच सुंदरवन विकास मामलों के मंत्री रहे कांति गांगुली से जब पूछा गया कि आपकी सरकार ने 34 सालों में सुंदरवन के लिए क्या किया तो उन्होंने कहा कि 1972 में सिद्धार्थ शंकर रॉय ने सबसे पहले सुंदरवन उन्नयन परिषद तैयार किया था, जिसका बजट सिर्फ एक लाख रुपये था। वामपंथी दलों की सरकार बनने के बाद सुंदरवन के लिए अलग से मंत्रालय बनाया गया और काफी जद्दोजहद के बाद 5 हजार 32 करोड़ रुपये की धनराशि केंद्र से आवंटित कराई गई। 2011 में सरकार बदल गई और कोई काम नहीं हुआ, जिसकी वजह से चार हजार करोड़ रुपये केन्द्र सरकार को वापस चले गए। उन्होंने बताया कि पूरे इलाके में मैंग्रोव के पेड़ लगाने से लेकर कंक्रीट बांध बनाने के लिए कई बार धनराशि का आवंटन हुआ लेकिन यहां काम नहीं होता केवल वादे किए जाते हैं।
ममता बनर्जी के शासन में 10 सालों (2006-2016) तक सुंदरबन विकास मामलों के मंत्री रहे मंटू राम पाखिरा से जब सुंदरवन की बदहाली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि आईला चक्रवात के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री के तौर पर सुंदरवन में स्थाई कंक्रीट बांध निर्माण के लिए तीन हजार करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की थी। उसका छोटा सा हिस्सा बंगाल आया था जिसके बाद काम भी शुरू हो गया था लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया और अब तक पेरी धनराशि आवंटित नहीं की गई। राज्य में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंटू राम पाखिरा की जगह बंकिम चंद्र हाजरा को सुंदरवन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है। सुंदरवन के विकास की योजनाओं पर कार्य करने के सवाल पर दो टूक जबाब मिला, “अभी अभी तो मंत्री बना हूं। सुंदरवन के विकास के लिए जो कुछ करना होगा, करूंगा।” अब देखना है कि मंत्री बदलने से सुंदरवन क्षेत्र के बदहाली की तस्वीर कितनी बदलती है?

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