पटना, 27 अगस्त (हि.स.) पिछले लोक सभा चुनाव में बुरी तरह मात खा चुके, अपनी ही पार्टियों में किनारे लगा दिए गए और जिन्हें कहीं कोई राजनितिक शरण नहीं मिल रही ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञ ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जहाँ उन्हें या तो कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है या वह कोई नया रास्ता बनाने की कोशिश में लगे हैं. उनमें अधिकतर ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें पूरी तरह नजर अंदाज करते हुए अपमानित किया है.
एक दूसरे के घाव पर मरहम लगाते हुए ये लोग निकट आ रहे हैं ताकि अपने शत्रु से बदला ले सकें और इनका शत्रु एक ही है, वे हैं नीतीश कुमार. हालाँकि ये नेता, जो दल बदलने में माहिर हैं, अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि वह कैसे अपने दुश्मन से निपटेंगे. उनमें अधिकतर ऐसे हैं जो नीतीश के मंत्रिमंडल में कभी न कभी मंत्री रह चुके हैं. आज वह अलग -अलग दलों में हैं परन्तु सब के दिलों में नीतीश कांटे की तरह चुभ रहे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, जो नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्री थे और जिन्हें नीतीश ने 2014 में अपनी कुर्सी पर बिठाया था, ऐसे ही एक नेता हैं जिनका मन हमेशा डोलता रहता है. अभी उनका दल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) महागठबंधन में है लेकिन मांझी वहां बहुत संतुष्ट नहीं हैं. हाल ही में उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि उनकी पार्टी अगले विधान सभा चुनाव में अकेले लड़ सकती है. महागठबंधन में रहते हुए मांझी कई बार राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव से वार्ता कर चुके हैं और राजनितिक हलकों में यह भी चर्चा है कि हम और यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) का विलय भी हो सकता है.
पप्पू यादव जो राजद से निष्काषित किये जाने के बाद कहीं कोई राजनीतिक घर नहीं पा सके, अभी इस चिंता में लगे हैं कि कैसे उन नेताओं को एकजुट किया जाये जो राजग से अलग हैं. मांझी के अलावा वह और भी कई लोगों से मिल चुके हैं जैसे पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा और पूर्व सांसद अरुण कुमार और लोजपा से अलग हुए कार्यकर्त्ता.
लेकिन इससे पहले कि वह कोई मोर्चा बनाते पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता नरेन्द्र सिंह ने रेणु कुशवाहा और अरुण कुमार को लेकर एक “गैर राजनीतिक” मोर्चा बनाने का एलान कर दिया. मात खाए हुए नेताओं का टारगेट एक ही है कि कैसे नीतीश कुमार को शह दी जा सके.
दिलचस्प बात यह भी है कि नरेंद्र सिंह, जो एक समय में बहुत प्रभावशाली मंत्री और दो विधायकों के पिता थे, अभी जदयू में हैं. लोक सभा चुनाव से ठीक पहले वह मांझी का साथ छोड़ कर जदयू में वापस लौट आये थे. वहीँ रेणु कुशवाहा जदयू छोड़ कर भाजपा में चली गयी थीं और अभी उसी पार्टी में हैं.
महागठबंधन की दोनों बड़ी पार्टियों राजद और कांग्रेस के रिश्ते भी मधुर नहीं हैं. लोक सभा चुनाव में करारी हार के बाद राजद में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कांग्रेस ने एक सीट जीती थी जबकि राजद का खाता भी नहीं खुला था. राजद ने आने वाले विधान सभा चुनाव के लिए तेजस्वी प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने का एलान कर दिया है लेकिन कांग्रेस इस से सहमत नहीं है.
गैर राजग दलों में इतना बिखराव और मनमुटाव है कि शायद ही वह एक मंच पर आ सकें. जो राजनेता एकता का प्रयास कर रहे हैं उनकी ज़मीनी हैसियत नगण्य है और जनता उन्हें कई बार ठुकरा चुकी है.