दिल्ली दंगों ने खोली केजरीवाल सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की कलई
नई दिल्ली, 02 मार्च (हि.स.)। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा ने दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खोल दी है। इतना ही नहीं दिल्ली मिल्क स्कीम (डीएमएस) और मदर डेयरी के माध्यम से दंगा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को उचित रेट पर दूध सहित अन्य दैनिक उपयोग का सामान उपलब्ध कराने में भी दिल्ली सरकार विफल साबित हुई है।
नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम ने दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार की जिसके आधार पर सोमवार को प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दावा किया गया कि दंगा प्रभावित लोगों के लिए तमाम राहत घोषणाओं के बावजूद अभी तक सरकारी एजेंसियों ने पर्याप्त और उचित सहायता प्रदान करना शुरू नहीं किया है।
अंजलि भारद्वाज, एनी राजा, पूनम कौशिक, गीतांजलि कृष्णा और अमृता जौहरी सहित टीम ने 29 फरवरी को भजनपुरा, चमन पार्क और शिव विहार का दौरा किया और बड़ी संख्या में निवासियों के साथ बातचीत की। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र और दिल्ली सरकार हिंसा प्रभावित व विस्थापित होने वालों को राहत देने में विफल रही हैं। हिंसा के कारण घर छोड़ने वालों को या तो अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेनी पड़ी है या फिर अन्य लोगों द्वारा उनके लिए अस्थाई व्यवस्था की गई है।
टीम ने कहा कि केंद्र और दिल्ली सरकार ने अपने क्षेत्रों में एक भी राहत शिविर नहीं लगाया है। पीड़ितों को भोजन, कपड़े और दवाओं सहित सभी राहत केवल निजी संस्थाओं द्वारा प्रदान की जा रही है। टीम ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों, सांसदों और विधायकों सहित तमाम जन प्रतिनिधियों से दंगा प्रभावित इलाकों में दौरा करने की अपील की है।
दिल्ली में हिंसा के बाद सरकार की भूमिका के संदर्भ में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह भट्टी ने कहा कि जब वे दंगों में गोली से घायल व्यक्ति को अल हिंद अस्पताल से बड़े अस्पताल ले जा रहे थे, तो पुलिस ने उनकी एम्बुलेंस को 4 स्थानों पर न केवल रोका बल्कि हर बार गोली की चोट को देखने के लिए ड्रेसिंग को खोला गया। उन्होंने कहा कि घटना वाली रात पीड़ितों को बड़े अस्पताल में पहुंचाने के लिए बार-बार कॉल करने पर भी एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी। गंभीर रूप से घायलों को भी अस्पताल से प्लास्टर आदि के बाद तत्काल छुट्टी दे दी जा रही थी।
इतना ही नहीं टीम ने दिल्ली सरकार की फरिश्ते स्कीम पर सवाल उठाते हुए कहा कि गुरू तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल और लोक नायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल ने मरीजों को एमएलसी और पूर्व जांच रिकॉर्ड नहीं होने के कारण वापस लौटा दिया। इस दौरान मोहल्ला क्लीनिक भी सक्रिय नहीं दिखाई दिए।अधिवक्ता पूनम कौशिक ने कहा कि दिल्ली सरकार केवल ट्विटर पर सक्रिय दिखाई देती है लेकिन दंगा प्रभावित इलाकों में लोग 150 रुपये किलो दूध खरीदने को मजबूर हैं जबकि डीएमएस और मदर डेयरी दिल्ली सरकार के अधीन आती है।
अंजलि भारद्धाज ने कहा कि दंगाग्रस्त इलाकों में पीड़ितों ने बताया कि दिल्ली सरकार की तरफ से अभी तक किसी भी सरकारी प्रतिनिधि ने उनसे संपर्क नहीं किया है। उन्होंने कहा कि घरों में आग लगने के कारण लोगों के आधार कार्ड और अन्य पहचान संबंधी दस्तावेज जल गये हैं। ऐसे में सरकार को तत्काल डुप्लीकेट दस्तावेज बनाने के लिए कैंप लगाना चाहिए।