उदयपुर : कबड्डी के ‘दंगल’ में चार बेटियों को लेकर आया किसान महावीर, चारों मचा रही धमाल

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फिल्म ‘दंगल’ की कहानी से मेल खाता दृश्य बना उदयपुर में – स्पोर्ट्स शूज के अभाव में नंगे पैर खेल रहीं बारां की बेटियों ने दिखाया जलवा, और तो और, जूनियर हैं सभी, जो वजन के हिसाब से सीनियर में पहुंच सकीं हैं 



उदयपुर, 08 नवम्बर (हि.स.)। आपने फिल्म ‘दंगल’ में एक किसान पिता को अपनी बेटियों को कुश्ती पहलवान बनाने की कहानी देखी होगी, ऐसी ही एक कहानी उदयपुर में सामने आई है। यहां अटल बिहारी वाजपेयी इंडोर स्टेडिमय में चल रहे राज्यस्तरीय कबड्डी के ‘दंगल’ में भी ऐसा ही कुछ नजर आया है। संयोग की बात यह है कि इस कहानी के पिता का नाम भी फिल्म की तरह महावीर है। बारां जिले का महावीर गुर्जर अपनी चार बेटियों को लेकर आया है जिन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर टूर्नामेंट के पहले दिन ही खूब दाद पाई।
पांचवीं पास महावीर भी कभी खेलते थे। वे बताते हैं कि उनके साथ के तीन खिलाड़ियों की सरकारी नौकरी लग गई, लेकिन वे कम पढ़े-लिखे थे इसलिए सरकारी सेवा नहीं पा सके। उनकी चारों बेटियां कबड्डी प्लेयर हैं। गृहिणी मां की बेटियां 12वीं में पढ़ने वाली सूरज, 11वीं में पढ़ने वाली भूरी और पूजा और 9वीं में पढ़ने वाली नेराज कबड्डी में रेड (चुनौती) देने में भी अपनी प्रतिभा दर्शा रही थीं तो टीम के साथ मिलकर सामने वाले खिलाड़ी को टेकल (प्रतिरक्षा) करने में भी उन्होंने दर्शकों की दाद पाई।
महत्वपूर्ण यह है कि इस टीम के पास स्पोर्ट्स शूज नहीं हैं। वे व्यवस्थित जर्सी में भी नहीं थीं। कोच नरेन्द्र नरू ने बताया कि उन्हें अचानक मैदान में उतरना पड़ा जबकि जर्सी बैगों में ठहरने वाले स्थल पर थीं। वो कहते हैं कि इतना बजट उपलब्ध नहीं हुआ कि स्पोर्ट्स शूज लिए जा सकें। लेकिन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा, ये बच्चियां बिना शूज के भी मेट पर भी मिट्टी के मैदान की तरह पैर जमाकर खेल रही हैं। टोंक जिले के साथ मैच में उनके खेल को दर्शकों ने सराहा। अब आगे का प्रदर्शन कैसा रहता है, यह देखना है।
दरअसल, यह टीम जूनियर यानी अंडर-17 वाली है। बारां में सीनियर टीम उपलब्ध नहीं होने से इस टीम को ही आनन-फानन में लाने का निर्णय हुआ। सभी बालिकाएं अलग-अलग गांवों से हैं और इनके पास पूरी किट नहीं हैं। सीनियर वर्ग के महिला-पुरुष की चैम्पियनशिप होने के कारण यहां आते ही इन सभी का वजन हुआ और निर्णायक मंडल ने सारे नियम और तकनीकी बातों को देखकर इस टीम को खेलने की अनुमति दी। इस जूनियर टीम का खेल देखकर सभी ने पीठ थपथपाई।
महावीर बताते हैं कि वे 1200 रुपये का टिकट लेकर बेटियों को यहां लाए हैं और उनकी उम्मीद यह है कि इन बेटियों का खेल देखकर इनके खेल को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी उपकरणों व संसाधनों के बारे में वरिष्ठ खिलाड़ी व खेल अधिकारी विचार करें। उनकी इस उम्मीदों में ‘छोटी सी आशा’ कम से कम स्पोर्ट्स शूज मिल जाने की है।

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