जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया के काफ़िले को डकैतों ने घेर लिया

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रायबरेली, 18 जून(हि.स.)। आपातकाल और उसके बाद भी राजनीति रायबरेली के ही इर्द गिर्द घूमती रही। यहां से राजनीति के कई दिग्गजों ने अपनी अपनी किस्मत आजमाई है। 1980 के लोकसभा चुनाव में भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनौती देने राजमाता विजया राजे सिंधिया मैदान में उतरी थीं। देश की राजनीति की दो दिग्गज महिलाओं के बीच मुकाबला था।
इस चुनाव को लेकर राजमाता विजया राजे भी बेहद उत्साहित थीं। पूर्व मंत्री और उनके चुनाव की देखभाल करने वाले गिरीश नारायण पांडे का कहना है कि राजमाता ने रायबरेली के लोगों से एक भावनात्मक रिश्ता कायम कर लिया था। चुनाव के बाद भी वह यहां के कार्यकर्ताओं से मिलती रहती थी। रायबरेली के चुनाव को लेकर विजया राजे सिंधिया ने भी अपनी आत्मकथा ‘राजपथ से लोकपथ पर’ में काफ़ी कुछ लिखा है। 1980 के इस चुनाव में उनकी हार हो गई, लेकिन बहुत सारे रोचक किस्से इससे जरूर जुड़े गए।
जब राजमाता के काफ़िले को डकैतों ने घेर लिया था
विजया राजे सिंधिया के अनुसार रायबरेली का चुनाव बहुत रोमांचक था। जब वह यहां के लिए आ रही थी तो ग्वालियर की सीमा के पार जंगलों के बीच चंबल के डकैतों से उनकी गाड़िया घिर गई थे। वह लिखती हैं कि अचानक गोलियां चलने की आवाज आई और चारों ओर धूल का गुबार उठ गया। गोली चलने से काफ़िले के पीछे वाली कार का सीसा टूट गया था और उस गाड़ी के चालक जय सिंह के हाथ में भी सीसे का टुकड़ा लग गया था।
 राजमाता के अनुसार कुछ ही देर बाद हमने देखा कि वह हमारी गाड़ी को निकलवा रहे हैं और हमें हाथ जोड़कर नमस्कार कर रहें हैं। अगले ही दिन डकैतों के मुखिया का सन्देशा बाल आंग्रे के पास आया कि गाड़ी में राजमाता थी, हमें मालूम नहीं था। क्षमा करें’। इस तरह रायबरेली के चुनाव की उनकी शुरुआत हुई।
ग्वालियर की तरह रायबरेली में हुआ स्वागत
 विजया राजे सिंधिया का प्रचार जोर शोर से शुरू हो चुका था। रायबरेली में वह जहां कहीं जाती थी, स्वागत के लिए जनता उमड़ पड़ती थी। ग्वालियर में भी ऐसा होता था। चुनाव सभाओं में भी भीड़ होती थी। जगह-जगह स्वागत से वह अभिभूत थी। हालांकि वह आत्मकथा में स्वीकार करती हैं कि उन्हें पता है उनकी जय जयकार करने वाले सभी लोग उन्हें वोट देने वाले नहीं है। बावजूद इसके उन्होंने कार्यकर्ताओं की मेहनत के दम पर पूरी मजबूती से चुनाव लड़ा।
मतदान केन्द्रों पर कराया गया कब्ज़ा
 विजया राजे सिंधिया चुनाव में मतदान के दिन हुई धांधली से दुःखी थी। आत्मकथा में मतदान के दिन की कहानी बयां करते हुए लिखती हैं कि हम दोनों के अलावा अन्य 24 उम्मीदवार और भी थे,जिन्हें मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने के लिए खड़ा किया गया था। इन उम्मीदवारों के जो एजेंट थे वह पहलवान और लठैत बनाये गए थे। जिन्होंने उनके प्रतिनिधियों को मतदान केन्द्रों से खदेड़ दिया और कांग्रेस के पक्ष में ठप्पा लगाने का दबाब डाला। रायबरेली के सत्तर केन्द्रों में घटी इस तरह की घटनाओं की लिखित शिकायत की गई, लेकिन सब व्यर्थ कोई सुनवाई नहीं हुई।
 आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि इस तरह की घटनाएं रायबरेली के अन्य क्षेत्रों में घटी। राजमाता विजया राजे सिंधिया के अनुसार कांग्रेस को इस काम में महारत हासिल है और यही काम उन्होंने इस चुनाव में भी किया।

 


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