हेमंत की साख पर संकट

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झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन बदलाव यात्रा पर निकले हैं।



रांची, 09 अक्टूबर (हि. स.)। झारखंड विधानसभा चुनाव की तिथि निकट आते ही सियासी पारा चढ़ने लगा है। प्रदेश की लगभग सभी पार्टियां इलेक्शन मोड में आ गयी हैं। चुनाव में भाजपा के बाद कोई पार्टी सबसे ज्यादा सक्रिय है तो वह है झारखंड मुक्ति मोर्चा। झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन बदलाव यात्रा पर निकले हैं।
पिछले एक माह से बदलाव यात्रा के जरिये झामुमो के कार्रकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भाजपा को टक्कर देने के लिए लगातार पसीना बहा रहे हैं। झामुमो का गढ़ कहे जाने वाले संथाल परगना से हेमंत सोरेन ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। हेमंत झामुमो को ग्रास रूट पर मजबूत पकड़ बनाने की भरपूर कोशिश में लगे हैं। हर कार्यक्रम में वह रघुवर सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के लिए झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल झामुमो प्रतिद्वंद्वी भाजपा को पछाड़ने के लिए हर दांव अपना रहा है। लोकसभा चुनाव में संथालपरगना के दुमका से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन की हार के बाद झामुमो ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए भाजपा के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। शिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पार्टी को नये सिरे से खडा करने की कवायद तेज कर दी है। इस क्रम में उन्होंने झारखंड के गैर आदिवासी जमात को पार्टी के साथ जोड़ने की मुहिम तेज कर दी है। इसके तहत उन्होंने जमशेदपुर के आस्तिक महतो को पार्टी का सचिव बना कर कुर्मी समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है। आस्तिक की प्रोन्नति से इस धारणा को बल मिला है कि झामुमो में अभी गुरूजी का दौर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इसके साथ ही हेमंत ने एक बार फिर आदिवासी-मूलवासी के अधिकारों के साथ ही जल, जंगल और जमीन का मुद्दा उठना शुरू कर दिया है। संथाल के किले को मजबूत करने के लिए विधानसभा चुनाव के मद्देनजर झामुमो की बदलाव यात्रा साहेबगंज से शुरू गई है। यह यात्रा विभिन्न जिला मुख्यालयों से होकर 19 अक्टूबर को रांची में संपन्न होगी।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 2014 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दल मोदी लहर में अपना अस्तित्व बचाने में नाकामयाब रहे। राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय नमो लहर के आगे कोई भी दल टिक नहीं पाया। हालांकि इन सबके बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा अपना वजूद बचाने में कामयाब रहा और 19 सीटें लाकर झामुमो झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल के तौर पर उभर कर सामने आया। वहीं लोकसभा चुनाव में भी राजमहल और दुमका पर कब्जा करने में सफल रहा। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता शिबू सोरेन को दुमका से हार का सामना करना पड़ा। बहरहाल, वर्तमान सियासी चुनौतियों को समझते हुए हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव में अपना किला बचाने के लिए करो या मरो की तर्ज पर दिन-रात काम में लग गए हैं। अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए जी तोड़ मेहनत के साथ मैदान में हैं। पार्टी इस बार के विधानसभा चुनाव में बदले-बदले से रूप में नजर आ रही है। राज्य में बदलाव यात्रा के जरिये पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन विधानसभावार घूम रहे हैं। झामुमो भी उम्मीदों से लबरेज है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष यह भलिभांति जानते हैं कि एक बार अगर उनकी सियासी जमीन खिसक गई तो उसे भाजपा जैसी पार्टी से दोबारा हासिल करना मुश्किल है। इसलिए उन्होंने रघुवर सरकार पर आदिवासी-मूलवासी विरोधी होने का आरोप मढ़ा है। हेमंत जानते हैं कि भाजपा कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर झामुमो से ज्यादा व्यवस्थित और संगठित हैं। झामुमो का उदय चार फरवरी 1973 को अविभाजित बिहार में जब झामुमो एक पार्टी के रूप में उभरा। झामुमो की स्थापना विनोद बिहारी महतो व शिबू सोरेन ने प्रसिद्ध मा‌र्क्सवादी चिंतक कॉमरेड एके राय के साथ मिलकर धनबाद में की थी। विनोद बिहारी महतो अध्यक्ष व शिबू सोरेन महासचिव बने थे। विनोद पार्टी के नंबर वन व शिबू नंबर टू नेता थे। शिबू विनोद को अपना धर्म पिता मानते थे, लेकिन कुछ साल बाद ही पार्टी पर कब्जे को लेकर राजनीतिक जंग छिड़ गई और धीरे-धीरे शिबू सोरेन पार्टी के शीर्ष पर बैठ गए। हालांकि पार्टी पर उनका कब्जा नहीं हुआ। विनोद बिहारी के युग के बाद कभी निर्मल महतो, सूरज मंडल, सुधीर महतो, प्रो. स्टीफन तो कभी टेकलाल महतो पार्टी में नंबर टू नेता बने रहे, लेकिन धनबाद के मैथन में हुए 11वें अधिवेशन के बाद पार्टी पर पूरी तरह से शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी एंड फैमिली का कब्जा हो गया है। तभी से सोरेन परिवार की पार्टी होने का लेबल चस्पा दिया गया। इसके साथ ही महतो और आदिवासी नेतृत्व के साथ झारखंड में अपनी विशेष पहचान बनाने वाली झामुमो में एक समय में दिग्गज कुर्मी नेताओं की राजनीति देखी गई। लेकिन समय के साथ पार्टी में आदिवासियों की पार्टी होने का भी लेबल लग गया।

 


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