1981 में भाजपा के प्रांतीय अधिवेशन में अटल जी ने जुहू चौपाटी से की थी पलामू के कोयल तट की तुलना

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तालियों की यह गड़गड़ाहट आज भी पलामू के लोगों के मानस पटल पर जस-का-तस अंकित है। तब उन्होंने कहा था- यह कोयल नदी का किनारा मुझे बंबई (अब मुंबई) की चौपाटी की याद दिला रहा है।



रांची, 17 अगस्त (हि.स.)।

मौक़ा- भाजपा का तीन दिवसीय प्रांतीय सम्मेलन

स्थान- डालटनगंज (अब मेदिनीनगर)

तारीख़- 30 दिसंबर 1981

तब एकीकृत बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था। भारतीय जनता पार्टी का गठन भी एक साल पहले ही 1980 में हुआ था। अटल जी इस नयी पार्टी के अध्यक्ष थे फिर भी जन-जन के नेता के तौर पर देशभर में लोकप्रिय थे। 29, 30 और 31 दिसंबर 1981 को डालटनगंज के शाहपुर में भाजपा का तीन दिवसीय प्रांतीय अधिवेशन था। जिसके लिए 30 दिसंबर को वो यहां पहुंचे। शाहपुर कोयल नदी के तट पर संकल्प नगर (अधिवेशन स्थल) बसाया गया था। अधिवेशन के अंतिम दिन 31 दिसंबर को कोयल नदी के किनारे शाहपुर की तरफ रेत पर ऐसी विशाल जनसभा हुई, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। दूर-दूर से लोग अटल जी को सुनने आए थे। मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता श्याम नारायण दूबे भी मौजूद थे। वे बताते हैं कि अत्यधिक भीड़ देखकर अटल जी भी अचंभित थे।

सभा के मुख्य अतिथि के रूप में अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने जब कोयल तट की तुलना जुहू की चौपाटी से की तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा इलाका गूंज गया। तालियों की यह गड़गड़ाहट आज भी पलामू के लोगों के मानस पटल पर जस-का-तस अंकित है। तब उन्होंने कहा था- यह कोयल नदी का किनारा मुझे बंबई (अब मुंबई) की चौपाटी की याद दिला रहा है।

विशाल जनसभा के दौरान क्या समां बांधा था अटल जी ने। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। तर्कपूर्ण तथ्यों और तुकबंदियों से विपक्षियों पर जबरदस्त शाब्दिक आक्रमण किया था। उनकी कही गयी तुकबंदी आज भी लोग याद करते हैं। उन्होंने कहा था- भला शासक दल भी कोई रैली करता है, लेकिन इन्हें क्या है..

चलो दिल्ली,

दिल्ली का दरबार देखो,

लालकिले की दीवार देखो,

चांदनी चौक की बहार देखो,

कुतुबमीनार देखो,

ऊपर जय-जयकार देखो,

और नीचे हाहाकार देखो… !

रेंजर ने कहा- महान विभूति आये हैंबेतला का सैर करना है बैठ जाओ तो हथिनी रजनी ने न में सिर हिलाया

भाजपा का अधिवेशन समाप्त होने के बाद एक जनवरी 1982 को अटल बिहारी वाजपेयी बेतला नेशनल पार्क (व्याघ्र परियोजना) गये थे। अन्य नेताओं के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता श्यामनारायण दूबे भी उनके साथ थे। वे बताते हैं, बेतला में अटल जी ने रजनी नामक हथिनी की सवारी की थी। उस समय वहां के रेंजर केपी सिंह थे। रेंजर ने हथिनी से कहा कि महान विभूति आए हुए हैं, इन्हें बेतला का सैर करना है। फिर हथनी को सवारी के लिए बैठ जाने का इशारा किया, लेकिन रजनी हथिनी ने ना में सिर हिला दिया। तो अटल जी ने कहा, इन्हें हमारी सवारी पसंद नहीं। इस पर कसकर ठहाका लगा। इसके बाद सीढ़ी मंगाई गयी। उसी के सहारे अटल जी हथिनी पर सवार हुए। करीब 10 मिनट घूमने के बाद जब वे वापस आये तो रेंजर ने हथिनी से फिर कहा अब तो बैठ जाओ। सीढ़ी से हमारे मेहमान कैसे उतरेंगे, उन्हें परेशानी होगी। यह सुनकर हथिनी बैठ गई। उसके बाद अटल जी हथिनी की पीठ से नीचे उतरे थे। बाद में कैलाशपति मिश्र ने अटल जी और सुश्री रजनी का प्यार शीर्षक से एक लेख भी लिखा था।

बांस का अचार बेहद पसंद आयाले जाने की जतायी थी इच्छा 

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी कुछेक बार पलामू आये। इस क्रम में वह तत्कालीन एकीकृत पलामू जिले के गारू (अब लातेहार जिला में) में संचालित वनवासी कल्याण केंद्र के आश्रम भी गये थे। केंद्र में ही बच्चों के बीच उन्होंने दिन बिताया था। नाश्ता और दोपहर का भोजन किया। नाश्ते में उन्हें आलू पोहा और बांस का अचार (जिसे पलामू में बांसकरिल और छोटानागपुर में सधना का अचार कहा जाता है) परोसा गया। बांसकरिल का अचार पहली बार वे खा रहे थे। उन्हें खूब स्वादिष्ट लगा। उन्होंने अचार के बारे में भी जानना चाहा और साथ ले जाने की इच्छा जतायी। वहां मौजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी जगत नंदन प्रसाद (अब स्वर्गीय) और वनवासी केंद्र के गारू प्रमुख वैद्य शिवनारायण पाठक ने उन्हें बताया कि यह बांस का अचार है। बांस से निकलनेवाले नये पौधे को करिल कहा जाता है। यह अचार उससे ही तैयार होता है। इसके बाद उन्हें एक डब्बा अचार भी उपहार स्वरूप दिया गया। शिव नारायण पाठक बताते हैं कि गारू जाने की इच्छा अटल जी ने जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री कैलाशपति मिश्र से व्यक्त की थी। गारू जाने से पहले अटल जी ने एक रात बेतला नेशनल पार्क में भी बितायी थी।

हाथियों का झुंड देख बीच जंगल में सड़क पर उतर गये

भाजपा नेता श्याम नारायण दूबे बताते हैं कि अटल जी ने जंगल देखने और गारू जाने की इच्छा जतायी थी। उनके दिन के भोजन का प्रबंध मारोमार स्थित वन विभाग के विश्रामागार में किया गया था। मारोमार जाने के दौरान जंगल में जंगली हाथियों का झुंड देखकर अटल बिहारी वाजपेयी गाड़ी रुकवा कर सड़क पर उतर गये और हाथियों को देखने के लिए नजदीक जाने लगे थे। काफी मुश्किल से उन्हें रोका गया और बताया गया कि जंगली हाथियों का झुंड हमला भी कर सकता है। इसके बाद वे गाड़ी में बैठे।

ये वाइफ हैं तो पत्नी कहां हैं यमुना सिंह जी…

श्यामनारायण दूबे बताते हैं कि मारोमार वन विश्रामागार में अटल जी से मिलने मनिका विधानसभा क्षेत्र से तत्कालीन विधायक यमुना सिंह की पत्नी भी जंगल के रास्ते पहुंच गयी थीं। उन्होंने अटल जी के पैर छूए। तब यमुना सिंह ने परिचय कराते हुए कहा था कि यह हमारी वाइफ हैं। तपाक से अटल जी पूछ बैठे, यमुना सिंह जी ये आपकी वाइफ हैं तो पत्नी कहां हैं? और पूरा मारोमार वन विश्रामागार ठहाके से गूंज उठा।

 


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