लखनऊ, 04 अगस्त (हि.स.)। अपने स्थापना काल से लेकर अब तक के इतिहास में समाजवादी पार्टी इस समय सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। स्थिति यह है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नवरत्नों में से एक सुरेंद्र नागर ने भी सपा का दामन छोड़ दिया। इसके साथ ही नवरत्नों में से ही दो नेताओं सहित एक दर्जन नेता भाजपा से संपर्क बनाए हुए हैं। वे अगले 15 दिनों में कभी भी भाजपा का दामन पकड़ सकते हैं। सपा अध्यक्ष के नजदीकी लोगों का सपा का साथ छोड़ने का कारण लोकसभा चुनाव के बाद अभी तक सपा अध्यक्ष का सदमे से मुक्त न हो पाना है।
सपा नेताओं का कहना है कि लोक सभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करना सबसे बड़ा असफल प्रयोग था। उसमें सपा प्रमुख ने मायावती की अधिकांश बातें भाजपा को पूरी तरह मात देने के लिए मानीं लेकिन हुआ उल्टा। सपा के एक प्रमुख नेता ने बताया कि लोक सभा चुनाव में कई सीटों पर तो मायावती के इच्छा अनुसार सपा ने अपना टिकट दिए। यही नहीं, जितनी भी संयुक्त रैलियां हुईं, उसका पूरा खर्च सपा ने उठाया। इसके बावजूद कुछ हासिल नहीं हुआ। यही कारण है कि सपा प्रमुख अब आगे की रणनीति ही नहीं समझ पा रहे हैं।
सपाइयों को सताने लगी है भविष्य की चिंता
वर्तमान में स्थिति यह है कि वे अपने खास लोगों से भी ज्यादा बात नहीं करते। सपा के एक प्रमुख नेता का कहना है कि अब तो सपा के भविष्य की ही चिंता सताने लगी है। ला एंड आर्डर के मामले में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बावजूद सपा प्रमुख का कहीं न जाने से सपाई नेता भी असंतुष्ट होते जा रहे हैं, जबकि पहले सपा अपने दबंगई और धरना-प्रदर्शन के लिए ही जानी जाती थी। विपक्ष में रहते हुए भी हम अपने कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी सहयोग करते रहे हैं लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। इस कारण हमारा कार्यकर्ता खिसकता जा रहा है। यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में सपा सिकुड़ कर रह जाएगी।
सपा कार्यकर्ता खुद को पा रहे असहाय
सितंबर 1992 में मुलायम ने जब सजपा से नाता तोड़कर चार अक्टूबर को लखनऊ में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की। तब से आज तक का इतिहास देखा जाय तो सपा की इतने बुरे दौर से कभी नहीं गुजरी थी। विपक्ष में रहते हुए भी सपा ने हमेशा दमदारी से धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व किया। अपने लोगों के समर्थन में हर वक्त मुलायम सिंह और अन्य बड़े नेता खड़े रहते थे लेकिन अब सपा कार्यकर्ता ही अपने आप का असहाय पा रहे हैं। हर ऊंचा पदाधिकारी अपनी-अपनी राग अलापने में लगा हुआ है।
दबंग की छवि सुधारने में बिगड़ गयी सपा की सूरत
एक सपा नेता का कहना है कि जब आप अपने मूल स्वरूप को बदलने का प्रयास करने लगेंगे तो अधिकांश बार धोखा खाने की उम्मीद रहती है। सपा के साथ यही हाे रहा है। सपा की छवि हमेशा दबंग की रही है। अखिलेश यादव जबसे आये, तब से अपनी छवि विकासवादी की बनाने लगे। उसमें उन्होंने बहुत कुछ किया भी लेकिन अचानक आये बदलाव को अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता पचा नहीं पाये, क्योंकि कार्यकर्ताओं की पहले से दबंगई से अपना कार्य कराने की आदत बन चुकी थी। हम भाजपा का अनुकरण करेंगे तो हमें निराशा ही हाथ लगेगी। यही हुआ भी। हमने शिवपाल को किनारे कर दबंगई की छवि ही हटा दी। अब सत्ता तो रही नहीं, विपक्ष में भी दबंगई की भूमिका खत्म हो गयी। इस कारण पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा है।
सपा अध्यक्ष को निकालनी चाहिए रथयात्रा
प्रयागराज के एक वरिष्ठ सपा नेता का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष को नोयडा से बलिया तक एक रथयात्रा निकालनी चाहिए। इससे कार्यकर्ताओं में एकजुटता रहेगी और लोगों के दर्द को भी पार्टी अध्यक्ष समझ सकेंगे लेकिन साथ ही यह भी बताते हैं कि खुद अवसाद से मुक्ति न पाने की स्थिति में वे लोगों का कैसे हौसला आफजाई कर सकते हैं।