दक्षिण बंगाल फ्रंटियर बीएसएफ में भव्य स्वागत स्वर्णिम विजय मशाल का
नई दिल्ली, 22 मार्च (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते साल 16 दिसंबर को दिल्ली से रवाना की गई स्वर्णिम विजय मशाल सोमवार को दक्षिण बंगाल फ्रंटियर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के मुख्यालय पहुंच गई।
बीएसएफ के प्रवक्ता कृष्णा राव ने सोमवार को बताया कि मुख्यालय पर सीमा सुरक्षा बल के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर ने मशाल लेकर आए भारतीय सेना के कर्नल पार्था ए. पथराडू, कमान अधिकारी, 20 मद्रास बटालियन, मेजर हगे कपा, जे.सी.ओ. साहिवान व अन्य साथियों का भव्य स्वागत किया गया। अंत में दक्षिण बंगाल फ्रंटियर, बीएसएफ के महानिरीक्षक अश्वनी कुमार ने स्वर्णिम विजय मशाल का स्वागत किया तथा कार्यक्रम के बाद मशाल को मेजर हगे कपा को वापस सौंप दी।
क्या है स्वर्णिम विजय मशाल
प्रवक्ता के अनुसार, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत के विजय की 50वीं वर्षगांठ के आयोजन की शुरुआत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष 16 दिसंबर को नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचकर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की 50 वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ‘स्वर्णिम विजय मशाल’ को प्रज्वलित किया था। उसके बाद नेशनल वॉर मेमोरियल की अनंत ज्योति से प्रज्वलित चार ‘विजय मशाल’ 1971 युद्ध के परमवीर चक्र और महावीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के गांवों सहित देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाई गई। ज्ञात हो कि 16 दिसंबर, 1971 को देश की पश्चिमी सीमा पर बसंतर नदी के किनारे खुले मोर्चे पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हरा दिया था। इसलिए भारतीय सेना 16 दिसम्बर को ‘विजय दिवस’ मनाती है। पाकिस्तान ने इस युद्ध में 93 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर किया था।
यहां ले जाई गई मशाल
यह मशाल 1971 के युद्ध के लिए वीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के गांवों में गई। इन पदक विजेता वीरों के गांवों और जहां अहम लड़ाई लड़ी गई, उन जगहों की मिट्टी नेशनल वॉर मेमोरियल लाई गई। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय हासिल किए जाने की याद में भारत 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाता है। इसी विजय से बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
कहां-कहां से गुजरेगी
इस मौके पर चार विजय मशाल को विजय यात्रा देशभर में ले जाई गई। विजय यात्रा दिल्ली से चलकर मथुरा होते हुए भरतपुर, अलवर, हिसार, जयपुर, कोटा, आदि सैन्य छावनी क्षेत्रों और उनके दायरे में आने वाले शहरों में घूमते हुए दक्षिण बंगाल फ्रंटियर बीएसएफ के मुख्यालय पहुंची।
सेना के साथ बीएसएफ ने भी अहम भूमिका निभाई
प्रवक्ता कृष्णा राव ने बताया कि 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना के साथ सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों और जवानों ने कंधे से कंधा मिलाकर विजय हासिल करने में अहम भूमिका निभाई थी। बीएसएफ ने बांग्लादेश के मुक्तिवाहिनी को इस युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया इसके साथ ही संघर्ष की रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। इस युद्ध के दौरान बीएसएफ के 125 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 392 घायल हुए और 133 गुम हो गए। बीएसएफ के 23 बटालियन ने इस युद्ध मे भाग लिया तथा 12 अधिकारियों एवं जवानों को युद्ध का हीरो घोषित किया गया था। इसके साथ ही बीएसएफ को दो पद्मभूषण, दो पद्मश्री, एक परम विशिष्ट सेवा मेडल, एक महावीर चक्र, एक अतिविशिष्ट सेवा मेडल, 11 वीर चक्र, 46 सेना मेडल, पांच विशिष्ट सेवा मेडल, 44 मेंशन इन डिस्पैच तथा 63 अन्य मेडलों से सम्मानित किया गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था आभार व्यक्त
सीमा सुरक्षा बल द्वारा 1971 की लड़ाई में प्रथम पंक्ति में रहकर युद्ध का सामना करने तथा युद्ध में भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सफलता प्राप्ति में शूरवीरता एवं कर्तव्यनिष्ठा के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी बीएसएफ का आभार व्यक्त किया था।