नई दिल्ली, 03 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की पुस्तक ‘भविष्य का भारत’ का उर्दू अनुवाद ‘मुस्तकबिल का भारत’ उर्दू भाषी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि पुस्तक का विमोचन आगामी पांच अप्रैल को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित होने वाले एक समारोह में किया जाएगा, लेकिन इस पुस्तक के कुछ अंशों के मीडिया में आने की वजह से इस पर खासी चर्चा की जा रही है।
इस पुस्तक का उर्दू अनुवाद राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) के निदेशक डॉक्टर शेख़ अकील अहमद ने किया है और पुस्तक को छापने का काम भी एनसीपीयूएल के जरिए ही अंजाम दिया गया है। बताया जा रहा है कि यह पुस्तक 2018 में आयोजित तीन दिवसीय एक समारोह के दौरान दिए गए डॉ. भागवत के भाषणों पर आधारित है। इस पुस्तक के माध्यम से डॉ. भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यप्रणाली, नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। साथ ही देश के विभिन्न वर्गों में आरएसएस को लेकर के फैली तमाम भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया गया है। माना जा रहा है कि यह पुस्तक भारतीय मुसलमानों को आरएसएस के करीब लाने और उसे समझने में मदद करेगी।
पुस्तक में यह बताने का प्रयास किया गया है कि आरएसएस एक राष्ट्रीयता से ओतप्रोत संगठन है। पुस्तक के उर्दू अनुवाद के सामने आने से यह आशंका जताई जा रही थी कि इसका अल्पसंख्यक समुदायों खासतौर से मुसलमानों की तरफ से विरोध किया जाएगा, लेकिन बड़ी बात यह है कि अभी तक इस पुस्तक को लेकर के किसी भी तरह का विरोध सामने नहीं आया है। यही नहीं इस पुस्तक को मुसलमानों के जरिए पढ़ने और समझने पर जोर दिया जा रहा है।
आरएसएस को करीब से समझने और उसके उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के बारे में लंबे समय से काम कर रहे मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी का कहना है कि डॉ. भागवत की इस पुस्तक को मुसलमानों को जरूर पढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि इस पुस्तक के जरिए लोगों को आरएसएस को करीब से समझने में मदद मिलेगी। नोमानी ने अपने साप्ताहिक कॉलम में इस पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा है कि यह पुस्तक आरएसएस की नीतियों, उसके कार्यक्रमों और समाज में एकजुटता पैदा करने के लिए लिखी गई है इसलिए इसके विरोध की कोई गुंजाइश नहीं है।
इस पुस्तक का उर्दू अनुवाद करने वाले राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शेख़ शकील अहमद का कहना है कि 2018 में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में वह स्वयं उपस्थित रहे हैं। उसमें सरसंघचालक डॉ. भागवत ने यह बताने का प्रयास किया कि आरएसएस एक राष्ट्रवादी संगठन है और इसका मकसद एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना है। उनका कहना है कि इस सम्मेलन में डॉ. भागवत ने आरएसएस से जुड़ी सभी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया था और यह बताने का प्रयास किया था कि आरएसएस की नीतियां देश के अन्य वर्गों, अल्पसंख्यक समुदाय और मुसलमानों के लिए किसी भी तरह से हानिकारक नहीं है बल्कि यह संगठन सभी को साथ लेकर राष्ट्र निर्माण में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
डॉ. अकील का कहना है कि इस पुस्तक के सामने आने से विश्वभर में उर्दू भाषी लोगों को यह पता चलेगा कि जिस आरएसएस से वह नफरत करते हैं, वह उनके लिए कितनी लाभदायक है। उनका कहना है कि कुछ राजनीतिक दलों और स्वार्थी लोगों ने आरएसएस को अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के बीच बदनाम करने का प्रयास किया है, जिसे यह पुस्तक कुछ हद तक दूर करने का प्रयास करेगी। उनका कहना है कि एनसीपीयूएल को बड़ी मात्रा में पुस्तक उपलब्ध कराने के लिए देशभर से आर्डर मिल रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि जितनी भी पुस्तक छापी गई है, वह हाथों-हाथ बिक जाएगी और यह एक रिकॉर्ड कायम करेगी।